बच्चों का एक्सप्रेसिव होना हैं बहुत जरूरी, इन टिप्स की मदद से बनाए उन्हें सोशल

लोगों के सामने हंस के बात करना, खुलकर अपनी बात कहना, अलग-अलग परिस्थिति में अपने आप को आत्मविश्वास के साथ प्रजेंट करना ही बच्चों का एक्सप्रेसिव होना हैं। कुछ बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में ज्यादा शर्मीले स्वभाव के होते हैं और वे अपनी बात को दूसरों को समझा नहीं पाते हैं। ऐसे बच्चे हर जगह चुप रहते हैं और उनके साथ गलत भी हो रहा हो तो भी किसी को कुछ कह नहीं पाते हैं जो कि उनके भविष्य और विकास के लिए उचित नहीं हैं। ऐसे में पेरेंट्स की जिम्मेदारी बनती हैं कि बच्चों को सोशल होना सिखाएं ताकि उनके आत्मविश्वास में इजाफा हो और खुद को खुलकर अभिव्यक्त कर पाए। आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस तरह वे बच्चों को सोशल बना सकते हैं।


आप बनिए आदर्श

आपका स्वभाव भले ही शांत हो लेकिन आपको अब ज्यादा से ज्यादा बात करनी है। अपने बच्चे से खूब बातें कीजिए। उसे किसी चीज के बारे में बताइए या फिर उसके बारे में उसकी राय पूछिए। लेकिन खूब बोलिए। आप चाहें तो कार्टून कैरेक्टर के बारे में बात कर सकती हैं या फिर किसी खास खाने के बारे में भी बातें की जा सकती है। आप बच्चे से अखबार में लिखी किसी खबर पर भी चर्चा कर सकती हैं। लेकिन उसकी उम्र का ध्यान रखते हुए।

अधिक से अधिक संवाद करें

शोधों में भी यह बात साबित हुई है कि जो पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ बहुत अधिक बातचीत और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, उन बच्चों का सामाजिक विकास तेज़ी से होता है। समय के साथ-साथ उन बच्चों में बेहतर बातचीत करने की कला भी विकसित होती है। पैरेंट्स को भी चाहिए कि वे बच्चों के साथ हमेशा आई-कॉन्टैक्ट करते हुए बातचीत करें। जब भी बच्चे दूसरे लोगों से बातें करें, तो उनकी बातों को ध्यान से सुनें।

लोगों से मिलने को कहें

आप अपने बच्चों को लोगों से मिलना-जुलना और उन्हें ग्रीट करना सिखाएं क्योंकि एक व्यक्ति का सोशल होना बहुत जरूरी होता है। उनमें इस आदत का विकास बचपन में ही कर दें, तो बेहतर है। अपने बच्चों को समझाएं की आपको स्कूल, घर या बाहर जहां भी कोई आपकी पहचान का व्यक्ति मिलता है, उसे जरूर ग्रीट करें। इससे दूसरों को खुशी मिलेगी, बच्चा भी सामाजिक बनेगा।

भूल जाने की एक्टिंग

आपको भूलने की आदत है या नहीं, लेकिन बच्चे के सामने आपको कई बार भुलक्कड़ बनना होगा। उसको दिखाना होगा कि ‘अरे आप तो भूल गईं’ फिर कोशिश कीजिए कि वो आपको बात याद दिलाए। जब वो बात आपको याद दिलाएगा तो वो बोलेगा और बोलने की आदत को थोड़ा और जोर मिलेगा। वो समय-समय पर आपको ऐसे ही बातें याद दिलाएगा और आप दोनों के बीच बातों को बढ़ावा मिलेगा। बच्चे की बोलने की आदत बनेगी। वो खुद से बात शुरू करने की कोशिश करेगा और बोलेगा। इस तरह वो खुद के दिल की बात सामने रख पाएगा।

सवाल-जवाब सेशन से बच्चों को होगा फायदा

किसी भी तरह के सोशल ईवेंट से पहले जब हम बच्चों को तैयार कर लेते हैं तो वे कॉन्फिडेंट बनते हैं। जैसे कि आप बच्चे को कह सकती हैं, 'अगर आपको भूख लगी तो आप किसके पास जाओगे, अगर आपको लग गई तो आप क्या करोगे, अगर आपको कोई प्रॉब्लम है तो मेरा नंबर याद है?, ये सवाल पूछने से बच्चे में कॉन्फिडेंस बढ़ता है। इससे बच्चा सोशल सिचुएशन्स को बेहतर तरीके से हैंडल कर सकता है। बच्चों को सोशल बनाना एक दिन का काम नहीं है। इसके लिए बच्चों की रोजाना प्रैक्टिस कराना जरूरी है। सीखना एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, इसीलिए आपको धीरज रखना चाहिए और बच्चे को प्यार से समझाना चाहिए ताकि बच्चे का आज और कल दोनों बेहतर बनें।

दोस्त बनाने को कहें

आप अपने बच्चों को दोस्ती करना सिखाएं और उनको समझाएं कि दोस्ती का जीवन में बहुत ही मूल्यवान होती है। इससे वो समाजिक रूप से जागरूक रहते हैं। इससे उनके ट्रेंडिंग चीजों के बारे में जानकारी मिलती है। साथ ही दोस्त के साथ वो अपना सुख-दुख बांट सकते हैं और वो आपकी बातों को आसानी से समझ भी सकते हैं क्योंकि उनकी उम्र और स्थिति आपके जैसे ही होती है।

जो करें वो बताएं

अक्सर माएं घर के काम निपटाती हैं और बिना कुछ बोलें इन्हें पूरा करती जाती हैं। लेकिन जब आपका बच्चा कम बोलने वाला है। वो एक्सप्रेसिव बिलकुल नहीं है तो आपको अपने काम भी बोलकर करने चाहिए। जैसे आप किचन में खाना बनाने जा रही हैं तो बच्चे को इस बारे में अपडेट करती रहें। जैसे मैंने सब्जी काट ली हैं, खाना खाने की तैयारी करो। फिर सब्जी बन जाए तो बताएं कि ‘देखो मैंने तुम्हारी पसंद की सब्जी बनाई है’, ‘तुम्हें जरूर पसंद आएगी।’ इस तरह की बातों से बच्चा बोलने के लिए थोड़ा खुलेगा। वो खुद भी काम करते हुए आपको अपडेट करता रहेगा और इसी बहाने आपसे बोलेगा भी।

इशारों-इशारों में बात

कई बार इशारों-इशारों में की गई बातें भी कई बार लंबी बातों का जरिया बन जाती हैं। बच्चा कम बोलता है तो आप भी इशारों में बात करना शुरू कीजिए। इससे आप मतलब भर की जरूरी बातों को जगह दें। जैसे पानी पीना है? पढ़ाई कर ली?। इसके जवाब में बच्चे भी इशारे में ही बात करेंगे लेकिन खुद को एक्स्प्रेस भी करने लगेंगे। फिर धीरे-धीरे इशारे शब्दों की जगह ले लेंगे। फिर बच्चे बोलेंगे और सिर्फ रोजमर्रा की बातें ही नहीं बोलेंगे बल्कि अपने दिल का हाल भी बताएंगे।

बदलें अपना पैरेंटिंग स्टाइल

जिन अभिभावकों के पैरेंटिंग स्टाइल में नियंत्रण अधिक और प्यार कम होता है, उनके बच्चे अधिक सोशल नहीं होते। अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि जो पैरेंट्स दबंग क़िस्म के होते हैं, उनके बच्चों का स्वभाव अंतर्मुखी होता है और इनके दोस्त भी बहुत कम होते हैं। ऐसे पैरेंट्स अपने बच्चे को बातचीत के दौरान हतोत्साहित करते हैं और कई बार तो सज़ा देने से भी नहीं चूकते। समय के साथ-साथ ऐसे बच्चे अनुशासनहीन, विद्रोही और अधिक आक्रामक हो जाते हैं।