हर पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा समझदार और सुशील बने जिसकी सबी तारीफ़ करें। लेकिन कुछ बच्चे होते हैं जो शरारती स्वभाव के होते हैं और उसकी वजह से पेरेंट्स को कई बार शर्मिंदा भी होना पड़ता हैं। जिद्दी बच्चों को संभालना कई पैरेंट्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। बच्चों को नहलाने से लेकर, खाना खिलाने, सोने तक हर बात पर बच्चों को समझाने से मुश्किल काम औऱ कोई नहीं रह जाता है। ऐसे में बच्चों से समझदारी से डील करना बहुत अहम हो जाता है। आप उसकी शरारत और गलतियों के लिए ऐसी सजा दीजिए जिससे वह कुछ न कुछ सीखे। आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि अपने शरारती बच्चे को किस तरह हैंडल करें ताकि वे समझदार बच्चे बनें। तो आइये जानते हैं इन टिप्स के बारे में...
उन्हें सुनें, बहस ना करें
अगर आप चाहते हैं कि आपका जिद्दी बच्चा आपको सुने तो इसके लिए आपको खुद उनकी बात ध्यान से सुननी होगी। मजबूत इच्छाशक्ति वाले बच्चों की राय भी बहुत मजबूत होती है और वे कई बार बहस करने लगते हैं। अगर आप उनकी बात नहीं सुनेंगे तो वे और ज्यादा जिद्दी हो जाएंगे। अगर उन्हें यह महसूस होने लगे कि उनकी बात नहीं सुनी नहीं जा रही हो तो वो धीरे-धीरे आपकी हर बात को दरकिनार करना शुरू कर देंगे। अधिकतर समय जब आपका बच्चा कुछ करने या ना करने की जिद करे तो आपका शांति और धैर्य से उनकी बात सुनें जरूर, उनकी बात खत्म होने से पहले उन्हें ना टोकें। आप उनसे कभी भी गर्म मूड में बात ना करें।
अपने बच्चे की भावना को समझें
आपके लिए यह जानना जरूरी होता है कि आपके बच्चे ने कोई गलती क्यों की है। फिर उसे अपना पक्ष रखने का एक मौका दिया जाना चाहिए। हो सकता है वह पहले से ही बहुत गुस्से में हो। कहीं आप उसे गलती की सजा देकर और गुस्सा दिला दें। ऐसा करने से हालात और अधिक बिगड़ सकते हैं। इसलिए कोई भी फैसला करने से पहले अपने बच्चे की भावना और नजरिए को समझना चाहिए।
बच्चों के साथ जबर्दस्ती बिल्कुल ना करें-
जब आप अपने बच्चों के साथ किसी भी चीज को लेकर जबर्दस्ती करते हैं तो वे स्वभाव से विद्रोही होते चले जाते हैं। तत्कालिक तौर पर तो कई बार जबर्दस्ती से आपको समाधान तो मिल जाता है लेकिन आगे के लिए ये खतरनाक होता चला जाता है। बच्चों से जबरन कुछ करवाने से वे वही कुछ करने लगते हैं जिनसे उन्हें मना किया जाता है। आप अपने बच्चों से कनेक्ट होने की कोशिश करें।
उसे अपना प्यार दर्शाएं
हो सकता है किसी गलती से आपका बच्चा अपने आप में ही बहुत बुरा महसूस कर रहा हो। या फिर खुद को दोषी मान रहा हो, तो आपको उसे गिल्ट से बाहर लाने के लिए उससे प्यार से पेश आना चाहिए। ऐसा करने से वह धीरे-धीरे उस गिल्ट से उबर सकेगा।
बच्चे के सामने हार ना माने
कई बार बच्चे अपनी बात मनवाने के लिए बहुत आक्रामकता से पेश आते हैं। जोर-जोर से चिल्लाना, सिर पटकना, कूद-फांद मचाना, घर-भर में दौड़ लगाना जैसी एक्टिविटीज करके बच्चे चाहते हैं कि उनकी बात फौरन मान ली जाए। ऐसी स्थिति में आप बच्चे को इंस्पायर करें कि वह अपनी बात आपसे प्यार से कहे। आप उसकी बात संजीदगी से सुनें और प्यार से उससे बात करें, लेकिन अगर उसकी बात वाजिब नहीं है तो आप अपनी बात पर कायम रहें। बच्चा एक-दो बार जिद करता है, लेकिन जब उसे पेरेंट्स के व्यवहार में कंसिस्टेंसी दिखती है तो वह मान जाता है।
सीमाएं तय करें
बच्चे और पेरेंट्स के बीच जितना प्यार और विश्वास जरूरी है उतना ही शिष्टाचार होना भी। आपके बच्चे को पता होना चाहिए की छोटे और बड़ों से कैसे पेश आते हैं। बच्चों में अच्छा शिष्टाचार उन्हें अच्छा इंसान बनने में मदद करता है।
दोस्ती की भावना से समझाएं
अगर आप अपने बच्चे से बात-बात में गुस्से और ऑर्डर देने के लहजे से बात करती हैं, तो इस आदत को बदल डालें। ऐसा करने से आपका लाडला या लाडली आपसे दूर हो जाएंगे और आपसे बातें छिपाने लगेंगे। इसलिए आप उन्हें कोई भी बात दोस्त बनकर समाझाएं ताकि वह अपनी भावनाओं को सहजता से व्यक्त कर पाएं। ऐसा करने से उनका गलत रास्ते पर जाने की संभावना कम होती है।
बातचीत है जरूरी
बहुत से मां बाप अपने बच्चे को समझ ही नहीं पाते। न ही यह जान पाते हैं कि उनके दिमाग में चल क्या रहा है। वह अपने बच्चे से केवल कथित तौर पर जुड़े हुए होते हैं। लेकिन असल में उन्हें कुछ पता नहीं होता है। इसका कारण है संवादहीनता अगर आपके साथ भी ऐसे ही हालात हैं, तो आपको अपने बच्चे से दुबारा से जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए।
बच्चों का सम्मान करें
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपका और आपके फैसलों का सम्मान करे तो आपको भी उनका सम्मान करना होगा। आपका बच्चा आपकी अथॉरिटी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा अगर आप उन पर कुछ थोपती हैं। उनसे सहयोग मांगे, आदेश ना दें। अपने सभी बच्चों के लिए नियम बनाएं और सुविधा के अनुसार उनमें छील ना दें। उनकी भावनाओं और विचारों को तुरंत खारिज ना कर दें। आपके बच्चे खुद से जो काम कर सकते हैं, करने दें। इससे उन्हें यह एहसास होगा कि आफ उन पर भरोसा करती हैं। जो आप कहना चाहती हैं, वही कहें और वही करे जो कहती हैं क्योंकि आपके बच्चे कई चीजें आपके बिना सिखाए आपके ही व्यवहार से सीख जाते हैं।
सजा न दें
जिस प्रकार हम खुद से आगे बढ़ना,जिंदगी की परेशानियों का सामना करना, टूटना, रोना ,बिखरना और फिर से पूरे उत्साह के साथ खड़े हो जाना सीखते हैं, उसी तरह से हम मां बाप बनने के बाद बच्चे को सिखाना चाहते हैं, क्योंकि इसी का नाम जिंदगी है। एक बात और ध्यान रखें कि बच्चे को डांट फटकार कर या सजा देकर आप अपनी बात नहीं मनवाना चाहिए। इससे बच्चा जिद्दी हो जाता है।