बेशकीमती हैं समधी-समधिन का रिश्ता, इन तरीकों से लाए इसमें अपनेपन का अहसास

अक्सर समधी- समधन के रिश्ते में औपचारिकताये ज्यादा देखने को मिलती है। लेकिन ये रिश्ता अपने आप में कितने रिश्तो को सजोये हुए है इस बात को हमे समझना होगा। बहु के माता-पिता हो या बेटी के सास- ससुर दोनों ही तरफ से दो घरो के बीच मजबूत डोर का आधार है ये रिश्ता। बेटी और दामाद के माता पिता अपने रिश्ते से इन चीजों को निकाल कर तो देखें, उन का रिश्ता भी खुशनुमा और बेशकीमती बन जाएगा।आईये आपको बताते है कैसे समधी-समधन के रिश्ते को कैसे अपनेपन का एहसास दिलाये-

सम्मान दें

जिन परिवारों में बहू के मातापिता को उचित सम्मान प्राप्त नहीं होता, वहां बहू भी अपने सासससुर को समुचित मान नहीं दे पाती।भारतीय समाज पुरुषप्रधान है। अत: पुरातनकाल से ही लड़की के मातापिता को लड़के के मातापिता की अपेक्षा कमतर माना जाता रहा है, पर अब मान्यताएं बदल रही हैं। लड़कियों का पालनपोषण भी मातापिता लड़कों की ही तरह कर रहे हैं और आज बेटियां समाज में अनेक उच्च पदों पर आसीन हैं। अपने पति के बराबर और कई बार उस से भी अधिक वेतन पाने वाली लड़की किसी भी कीमत में अपने मातापिता को कमतर नहीं देखना चाहती।

उपहार दें

भारतीय समाज में अनेक रस्में और रिवाज ऐसे हैं, जिन में लड़की वाले को देना ही होता है। मसलन, विवाह बाद साल भर तक समस्त त्योहार चलाने की रस्म, गर्भावस्था के 7वें माह गोद भराई, संतानोत्पत्ति पर मुंडन संस्कार में वस्त्र व अन्य सामान आदि देने जैसी अनेक परंपराएं हैं। आप केवल लेने का भाव ही न रख कर उन के लिए भी उतना ही देने का भाव रखें। इस से कभी संबंधों में कटुता नहीं आ सकती।

मिलतेजुलते रहे

समधी चाहे दूर रहते हों या एक ही शहर में, कभी आप उन्हें बुलाएं और कभी आप उन के यहां जाएं। आपस में मिलतेजुलते रहने से प्रेम और सौहार्द बना रहता है।

उनके बच्चो की तारीफ करें

बहू के मातापिता के आने पर बहू की कमियों या बुराइयों का ही गुणगान न करें, बल्कि जितना हो सके उतनी तारीफ ही करें ताकि बच्चे के मातापिता आश्वस्त हो सकें।

ताना न मारें

मिलने पर पहले समय में हुई किसी अप्रिय घटना का जिक्र कर के ताना न मारें और न ही विवाह में हुई भूलचूक को दोहराएं।