डेटिंग वह तरीक़ा है, जिसके माध्यम से आप अपने लिए परफ़ेक्ट पार्टनर की तलाश करते हैं। पर कई ऐसे लोग हैं, जो डेट पर जाने के नाम से डर जाते हैं। कारण? डेटिंग से जुड़ी कई ग़लतफ़हमियां और इंसानी स्वभाव के अनुरूप दिमाग़ में पैदा होने वाले डर।
पहला डर : मैं क्या बात करूंगा/करूंगी?
किसी ऐसे व्यक्ति,
जिसके बारे में हम बहुत नहीं जानते या कम से कम जानते हैं, के साथ बाहर
जाने पर थोड़ा अजीब लगना स्वाभाविक है। ऐसे में यह सवाल कि ‘मैं क्या बात
करूंगा/करूंगी’ भी उतना ही स्वाभाविक है। इस झिझक के चलते बहुत से लोग डेट
पर जाने से मना कर देते हैं। पर ज़रा यह सोचिए, जो सवाल आपके मन में चल रहा
है, वही सामने वाले के मन में भी तो चल रहा होगा। आप नर्वस हैं, तो वह भी
नर्वस ही होगा।
तो गणित में आपने पढ़ा होगा कि ‘माइनस और माइनस
मिलकर प्लस होते हैं’ तो उसी फ़ॉर्मूले को यहां भी अप्लाई करें, दो नर्वस
लोग मिलकर बातचीत कर ही लेंगे। तो बात करने के टॉपिक से जुड़ी चिंता को
छोड़ दीजिए। गहरी सांस भरिए और डेट के लिए हां कर दीजिए।
दूसरा डर: रिजेक्ट किए जाने का डर
यह
डर भी इंसानी स्वाभाव के माकूल ही है। हम सभी चाहते हैं कि लोग हमें पसंद
करें। डेटिंग के दौरान भी हर लड़का या लड़की यही चाहता है कि वह सामने वाले
को पसंद आए। हम किसी को मिलने से पहले ही यह सोच बैठते हैं कि ‘अगर वह
हमें पसंद नहीं करता तो क्या होगा?’ पर इस सवाल के बारे में ज़रा
प्रैक्टिकली सोचकर देखिए। हो तो यह भी सकता है कि सामने वाला आपको पसंद न
आए।
यानी यहां सिर्फ़ आपका रिजेक्शन नहीं होगा। सामने वाले के
रिजेक्ट होने की संभावना भी फ़िफ़्टी परसेंट है। तो अगर आपके मन में भी
रिजेक्शन का डर हो तो उसे निकाल फेंकिए। और खुले मन से डेट पर जाइए। हो
सकता है, रिजेक्ट करने का डिसिज़न आपको लेना पड़े। या उससे भी बेहतर यह हो
सकता है कि दोनों में से किसी को भी रिजेक्ट करने की नौबत ही न आए।
तीसरा डर : सबकुछ अच्छा-अच्छा हो जाने का डर
हम
इंसानों का सबसे अच्छा और सबसे बुरा गुण हमारी कल्पनाशीलता है। अभी आप
रिजेक्ट होने की सोचकर डर रहे थे, पर दूसरे ही पल यह डर भी सताने लगता है
कि अगर सबकुछ अच्छा-अच्छा हुआ तो क्या होगा? क्या यह बहुत जल्दबाज़ी वाली
बात नहीं हो जाएगी? हम किसी को इतनी जल्दी कैसे पहचान सकते हैं? देखिए पहली
डेट पर किसी के पसंद आने का यह मतलब नहीं है कि बस आप परमानेंट रिलेशन में
आ गए हैं या अगला स्टेप शादी ही है।
पहली डेट पर पसंद आने का
सिर्फ़ इतना ही मतलब निकालें कि उस व्यक्ति के साथ दूसरी डेट पर जाया जा
सकता है। दूसरी के बाद तीसरी, चौथी और कई डेट्स के बाद ही आप दोनों आगे
बढ़ने का फ़ैसला करें। ज़ाहिर है किसी से इतनी दफा मिलने के बाद तो आप उसको
ठीक से पहचान ही लेंगे।
चौथा डर : कमिटमेंट का डर
यह
डर भी तीसरे डर का ही एक्सटेंशन है। आम तौर पर इस तरह का डर पुरुषों की
तुलना में महिलाओं में अधिक देखने को मिलता है। महिलाओं को लगता है कि
डेटिंग का मतलब अगला स्टेप कमिटमेंट रिश्ता होना चाहिए। इसलिए अक्सर वे
डेटिंग के कॉन्सेप्ट से दूर भागती हैं। देखिए किसी को डेट करने का यह मतलब
नहीं है कि कल ही आपकी शादी उससे हो जानी है।
आपको प्रतिबद्ध
रिश्ते की शुरुआत से पहले ख़ुद को और सामने वाले दोनों को ही टाइम देना
होगा। अपनी और सामने वाले की अपेक्षाओं और भविष्य की योजनाओं पर बात करनी
होगी। इसके बाद अगर लगता है कि सबकुछ ठीक है तो कमिटमेंट से डरना क्या? पर
पहली ही डेट के बाद, भले ही आपकी वह शाम कितनी ही अच्छी क्यों न बीती हो,
कमिटमेंट की बात सोचना भी ग़लत है। तो इस डर को दिमाग़ से दूर रखकर, डेट के
माध्यम से पहले रिश्ते को परख तो लें।
पांचवां डर : सही व्यक्ति न मिलने का डर
इस
तरह के डर के साथ जीने वाले आप अकेले नहीं है। हां, हम सभी को यह डर लगता
ही है। इससे भी बुरा तो यह भी हो सकता है कि हम जिसे डेट कर रहे हों, वह
सही तो क्या, बिल्कुल बुरा व्यक्ति हो। कई बार डेट पर जाने के बाद भी आप
उसे न पहचान पाएं। इसी डर का दूसरा रूप है-हर बार अलग-अलग व्यक्ति के साथ
डेट पर जाकर भी अपने लिए मिस्टर या मिस परफ़ेक्ट न पा सकें।
जिसके
चलते आपको डेट के कॉन्सेप्ट से ही डर लगने लगा हो। देखिए यह एक जेनुइन डर
है, पर ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए आपको इससे पार पाना होगा। आप हर बार
के डेट को एक नंबर की तरह देखने के बजाय नए व्यक्ति से मिलने के नए मौक़े
की तरह देखें। हां, ख़ुद पर किसी को पसंद करने का दबाव न बनाएं।
कई
बार अच्छी चीज़ों को हासिल करने में वक़्त और मेहनत इनवेस्ट करना होता है।
धैर्य रखें, आपकी मेहनत भी रंग लाएगी। और हां, रही किसी बुरे व्यक्ति के
मिलने की तो, जैसे ही आपको इस बारे में पता चले, विनम्रता से उसे अपनी
ज़िंदगी की कॉन्टैक्ट लिस्ट से रिमूव कर दें।