बच्चों को इस तरह सिखाएं लैंगिक समानता, करेंगे एक-दूसरे का सम्मान

वर्तमान समय में पुरुष और महिलाएं दोनों कदम से कदम बढ़ाकर आगे बढ़ रहे हैं और सफलता की उंचाइयों को चूम रहे हैं। लेकिन आज भी कई लोग ऐसे हैं जो पुरुष प्प्रधान समाज को तवज्जो देते हैं और महिलाओं को वह सम्मान नहीं देते हैं जिनकी वे हकदार हैं। आज के समय में भी लैंगिक समानता नहीं दिखाई देती हैं जो कि कहीं ना कहीं समाज और देश के लिए नुकसानदायक हैं। हांलाकि इसकी सोच घर से ही शुरू होती हैं जहां सोचते हैं कि लड़का होगा तो बुढ़ापे का सहारा बनेगा और लड़की होगी तो बात उसकी शादी पर आकर रुक जाती है। इस तरह जन्म से पहले ही हम उन्हें दायरे में बांध देते हैं और यही भाव उन्हें मर्द और औरत बना देता है। लेकिन लड़का हो या लड़की दोनों को सीखने और बढ़ने के समान अवसर देना आज के ज़माने की ज़रूरत है। इसके लिए आपको अपने बच्चों को उनके बचपन से ही लैंगिक समानता का महत्व सिखाना होगा और उसके लिए यहां बताए जा रहे तरीके अपना सकते हैं।

किचन के काम में बराबरी

अक्सर हम किताबों में पढ़ते आए कि सीता खाना बनाती है और राम बाहर खेलने जाता है। लेकिन जैसे-जैसे फेमिनिज्म ने आवाज बुलंद करनी शुरू की तब ऐसी भेदभाव वाली सामग्री को कितीबों से दूर किया गया। आपके घर में लड़का और लड़की दोनों ही बच्चे हैं तो आप दोनों से ही किचन का काम करवाएं। लड़की सिर्फ वो लड़की है इसलिए आप उसे घर के तौर तरीके समझाना चाहते हैं तो ऐसा न करें। बल्कि आप लड़कों को भी खाना बनाना, सफाई करना आदि कामों को सिखाएं। इससे अगर बच्चे कभी घर से बाहर भी निकलते हैं तो स्वतंत्र रूप से अपना जीवन निर्वाह कर लेंगे। अगर उन्हें घरेलू काम नहीं आते हैं तो वे हमेशा दूसरों पर निर्भर रहेंगे। तो शुरुआत आप किचन के काम में बराबरी लाकर कर सकते हैं। आपकी परवरिश के तरीके से जेंडर की समझ बनेगी।

दोनों को सिखाएं एक-से काम

हम बच्चे की परवरिश, बच्चे की तरह करें। खिलौनों से लेकर उनके साथ बातचीत के शब्दों पर भी ध्यान दें। लड़का-लड़की सभी खाना खाते हैं तो रसोईघर का काम दोनों को सिखाएं। यदि बच्चों को ऐसी कविताएं सिखाई जा रही हैं, जहां किसी एक लिंग के साथ कोई विशेष काम जोड़ा जा रहा है तो उसका विरोध करें। जीवन स्त्री-पुरुष दोनों के लिए आसान बनाएं। पोछा मारना, बर्तन धोना, टेबल साफ करना, भोजन के बाद बर्तन उठाना जैसे काम का बंटवारा कर दें। इसी तरह बाजार के कामों की भी बारी लगा दें।

जेंडर पर बात करें


किसी भी बदलाव की शुरुआत बातचीत से होती है। अगर आप लैंगिक रूप से समान समाज चाहते हैं। अपने और अपने परिवार को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो जरूरी है कि आप घर में बच्चों के साथ जेंडर इक्वैलिटी पर बात करें। इस बातचीत से बच्चों के मन में जेंडर शब्द जाएगा। इस शब्द से वे आगे कहानी समझेंगे। इस शब्द से रूबरू होने के बाद उन्हें जेंडर इक्वैलिटी कोई नई बात नहीं लगेगी। इस तरह से ऐसे बच्चे जब आगे बढ़ेंगे तो उन घरों में गैरबराबरी कम दिखाई देगी।

कपड़ों को लेकर रोक-टोक नहीं

अक्सर देखा जाता है कि मांएं बेटे पर तो तो किसी भी तरह के कपड़े पहनने पर रोक नहीं लगाती लेकिन लड़कियों को हमेशा ही एक मर्यादा में बांधा जाता है। इससे बेटे शादी के बाद पत्नी पर रोब डालते हैं कि उन्हें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए, उनकी लेंथ कितनी हो आदि। ऐसे में अगर आप बेटे को कपड़े पहनने की आजादी दे रही हैं तो दोनों को दें।

बच्चों को जेंडर पर बोलना सिखाएं


देश में लैंगिक समानता तभी आ सकती है जब हम अपने बच्चों को जेंडर की सीख दें और उन्हें उस पर बोलने के तैयार करें। यही बच्चे बड़े होकर जब महिला अधिकारों के पैरोकार बनेंगे या महिलाओं को सिर्फ घर की दहलीज तक सीमित नहीं रखेंगे तब वे उन्हें बोलने लायक बनाएंगे साथ ही ऐसे ही लोग देश को समान रूप से आगे बढ़ाएंगे। लेकिन जेंडर की समानता के साथ-साथ सरकारों को भी ऐसे अवसर पैदा करने पड़ेंगे कि जेंडर की समझ से पैदा हुए बच्चों को भविष्य में बराबर अवसर मिलें। वे कहीं मात न खा जाएं।

रूढ़ियों के खिलाफ लड़ें

आपको सिर्फ खुद से ही नहीं बल्कि अपने परिवार से भी रूढ़ियों को खत्म करना होगा। बच्चों को भी ऐसी रूढ़ियों को तोड़ने की सीख देनी होगा। हमें अपने बच्चों को यह समझाना होगा कि लड़का और लड़की में कोई अंतर है। आप लड़के हैं और आप लड़की हैं यह फर्क हमें समाज ने सिखाया है। हमें अपने बच्चों को यह समझाना होगा कि शरीर की ताकत सिर्फ पुरुषों के पास नहीं होती है बल्कि लड़कियों के पास भी होती है।