बच्चों को बचपन से ही सिखाए कि लड़का-लड़की दोनों है बराबर, इस तरह पेश करें उदाहरण

Gender Equality एक बड़ा मुद्दा हैं जिसको लेकर आए दिन बहस छिड़ती रहती हैं। असल में यह बहुत्ब कम दिखाई देती हैं। लैंगिक समानता को लाने के लिए जरूरी हैं कि बच्चों को बचपन से ही सिखाया जाए कि लड़का-लड़की दोनों ही बराबर हैं ताकि आने वाले समय में वे नेक इंसान बने और एक-दूसरे को समान आदर से देखें। लेकिन कई बार देखा जाता हैं कि पेरेंट्स खुद अनजाने में आसानी से बच्चों को डिफरेंस करना सीखा देते हैं। इसके लिए मां-बाप को समझने की जरूरत होती हैं कि वे बच्चों के सामने इस तरह पेश आए जो लड़का-लड़की को बराबर दिखाएं। इसलिए आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे है कि किस तरह बच्चों के सामने Gender Equality का उदाहरण पेश करें।


सिर्फ बेटी ही क्यों बनाए चाय?

जब भी घर में कोई मेहमान आए तो बेटी को ही चाय बनाने के लिए आगे ना करें। इससे लड़के इसे लड़कियों का काम समझने लगते हैं और बड़े होने पर अपना बहन या शादी के बाद पत्नी को ही मेहमानों के लिए चाय बनाने को कहते हैं। इसकी बजाए बेटे व बेटी की बारी लगा दें। वैसे भी चाय बनने में 5 मिनट लगते हैं। बेटों को भी आत्मनिर्भर बनाएं। अगर बेटे कहीं बाहर पढ़ने जाते हैं तो यह उनके काम भी आएगा। वहीं, शादी के बाद वो अपनी पत्नी का हाथ बटांने भी शर्म महसूस नहीं करेंगे।

गलती पर सॉरी बोलने का सबक

घर की महिलाएं, चाहे वह मां हो, बहन या पत्नी, जब पुरुष गुस्सा होते हैं तो महिलाएं उन्हें मनाकर खाना खिलाती हैं। अपनी गलती ना होते हुए भी माफी मांगती हैं। हालांकि यह अच्छी आदत है लेकिन ये आदत बेटे-बेटी दोनों को सिखाएं।

काम का बराबर बंटवारा करें

पोछा मारना, बर्तन धोना, टेबल साफ करना, भोजन के बाद बर्तन उठाना जैसे काम का बंटवारा कर दें। इसी तरह बाजार के कामों की भी बारी लगा दें।

खुद भी भरें बिल्स

भारत में 90% घर ऐसे हैं, जहां बिजली, पानी, पॉलीसी की किस्त या गैस बिल भरने के लिए महिलाएं घर के पुरुषों पर निर्भर रहती हैं। ऐसे में बच्चों को संदेश चला जाता है कि ऐसे काम पापा ही कर सकते हैं, जो उनके बाद बेटों को करने पड़ेंगे। ऐसे में आप खुद बिजली के बिल भरना शुरू करें। आज के डिजिटल जमाने में तो यह काम और भी आसान हो गया है। इसे भरने के लिए आपको बाहर जाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।

कपड़ों को लेकर रोक-टोक नहीं

अक्सर देखा जाता है कि मांएं बेटे पर तो तो किसी भी तरह के कपड़े पहनने पर रोक नहीं लगाती लेकिन लड़कियों को हमेशा ही एक मर्यादा में बांधा जाता है। इससे बेटे शादी के बाद पत्नी पर रोब डालते हैं कि उन्हें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए, उनकी लेंथ कितनी हो आदि। ऐसे में अगर आप बेटे को कपड़े पहनने की आजादी दे रही हैं तो दोनों को दें।