बच्चों की सुरक्षा जुड़ी है उनकी समझदारी से, असामाजिक तत्वों से बचाने के लिए करें उन्हें तैयार

आज के बदलते परिवेश में मानवता ना जाने कहाँ खूने लगी हैं और असामाजिक तत्वों ने अपने पैर पसारना शुरू कर दिया हैं। ये असामाजिक टाटा सबसे ज्यादा हमारे बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं। ऐसे में बच्चों की समझदारी ही उन्हें इसका शिकार होने से बचा सकती हैं और इस समझदारी को लाने के लिए आपको अपने बच्चों को कुछ बातें सिखाने की जरूरत होती हैं। आज हम आपको उन्हीं बातों के बारे में बताने जा रहे है जिनकी मदद से आप अपने बच्चों को असामाजिक तत्वों से बचाने के लिए तैयार कर सकते हैं। तो आइये जानते है इसके बारे में।

* बात करें

बचपन से ही बच्चों को इस संदर्भ में जागरूक करना और सिखाना जरूरी है कि इस तरह की स्थिति आने पर अपनी सुरक्षा कैसे करें। बच्चों के आगे बात गोलमोल करते हुए उन के निजी अंगों के लिए कोई निकनेम देने के बजाय सही शब्दों का इस्तेमाल करें। उन्हें अपने शरीर के बारे में बातें करने को बढ़ावा दें। ऐसा कर के अभिभावक बच्चों के मन से झिझक और शर्म दूर कर उन के साथ ज्यादा दोस्ताना माहौल में बात कर पाएंगे।

* बॉडी प्राइवेसी के बारे में बताएं

बच्चों को समझाएं कि अपने शरीर पर सिर्फ उन का अधिकार है और किसी को भी उन के शरीर को छूने का अधिकार नहीं है। उन्हें बौडी प्राइवेसी के बारे में बताएं। उन्हें समझाएं कि शरीर के कुछ हिस्से प्राइवेट यानी निजी होते हैं। इन निजी अंगों को मातापिता के सिवा किसी और को देखने या छूने का हक नहीं होता। डाक्टर भी उन्हें तभी देख सकते हैं जब बच्चे के साथ कोई परिवार का व्यक्ति मौजूद हो। बच्चों को शुरू से ही यह समझाया जाता है कि उन्हें बड़ों की बात माननी चाहिए। मगर उन्हें यह बताना भी न भूलें कि कभीकभी न कहना भी जरूरी होता है ताकि कोई व्यक्ति अपनी सीमा पार करने की हिम्मत न करे यानी उन के शरीर के साथ कुछ गलत न करे।

* फीलिंग्स समझाएं

जब बच्चे इतने बड़े हो जाएं कि वे अपने इमोशंस को पहचानते हुए उन्हें नाम दे सकें तब उन्हें यह सिखाना शुरू कर दें कि कौन सी बातें या चीजें उन्हें अच्छा महसूस कराती हैं और कौन सी नहीं, कब उन्हें गुस्सा आता है और कब प्यार, कब कंफर्टेबल महसूस करते हैं और कब नहीं। उदाहरण के लिए अभिभावक उन्हें हग करते हैं तो उन्हें वार्म फील होता है और वे अच्छा महसूस करते हैं। मगर जब कोई उन के खिलौने छीन ले तो उन्हें बुरा महसूस होता है और गुस्सा आता है।बच्चों को अपनी फीलिंग्स के बारे में बात करना सिखाएं ताकि समय रहते वे अपनी समस्याएं जाहिर कर पाएं और कह पाएं कि किसी एडल्ट के किसी खास व्यवहार पर उन्हें गुस्सा आता है या बुरा लगता है। इस से आप सतर्क हो सकेंगे।

* गुड टच बैड टच की जानकारी

बच्चे को गुड टच और बैड टच के बारे में विस्तार से समझाएं जैसे मांबाप के अलावा किसी और के द्वारा प्राइवेट पार्ट के आसपास छूना बैड टच है। इसी तरह किसी और के द्वारा गलत तरीके से गाल, होंठ, कमर या दूसरे हिस्सों को छूने पर बुरा लगे, अच्छा महसूस न हो तो यह बैड टच है। वहीं गुड टच में किसी के छूने पर अच्छा महसूस होता है जैसे अपने परिवार का कोई सदस्य प्यार से गालों को छुए।

* अपनों से भी रखें सावधान

अकसर मांबाप बच्चों को अजनबियों से सावधान रहना सिखाते हैं। मगर हकीकत में बहुत से करीबी या पड़ोसी भी बच्चे के लिए खतरा बन सकते हैं। इसलिए बच्चों को ट्रिकी या अनसेफ बिहेवियर समझाने का प्रयास करें। उदाहरण के लिए बच्चों को समझाएं कि यदि कोई बाहरी व्यक्ति (भले रिश्तेदार या पड़ोसी ही क्यों न हो) उसे अभिभावकों से कोई बात छिपाने को कहे या बिना घर वालों से पूछे कहीं चलने को कहे तो वह ट्रिकी बिहेवियर है। ऐसा व्यवहार करने वालों से वे सावधान रहें और मांबाप से इस बारे में हर बात कहें।

* बातचीत का रास्ता खुला रखें

अभिभावकों को हमेशा बच्चों को बातें करने या अपने डर, चिंता और परेशानियों को शेयर करने का मौका देना चाहिए। यदि अभिभावक बच्चों द्वारा सैक्स या रिलेशनशिप से जुड़े सवाल करने पर सहजता से जवाब दे कर उन की जिज्ञासा शांत करते हैं तो बच्चे आगे चल कर अभिभावकों से कुछ भी नहीं छिपाते। यदि बच्चे अपने साथ घटी सैक्सुअल असौल्ट की घटना शेयर करते हैं तो ओवररिएक्ट करने के बजाय शांति से उन की बात सुनें और आगे क्या करना है यह तय करें।बच्चों को विश्वास दिलाएं कि आप के पास आ कर उन्होंने बिलकुल ठीक किया है।

* कैसे पहचानें बच्चे की समस्या

यदि बच्चा अचानक कुछ बेचैन और डरा सा रहने लगे, बिस्तर पर पेशाब कर दे, कपड़े उतारने से मना करे, अकेला रहने से कतराए, बातबात पर रोने लगे तो समझिए कि मामला गड़बड़ है। ऐसे में उस की फिजिकल जांच कर देखें कि सब ठीक है या नहीं। कहीं ब्लीडिंग वगैरह तो नहीं या फिर प्राइवेट पार्ट्स में इरिटेशन तो नहीं हो रही है।