वर्तमान समय में लोग कुछ अधिक ही अधीर होते जा रहे हैं। एक तरह से कह सकते हैं कि हम सभी दूसरों को सुनने की क्षमता खो रहे हैं। साथ ही हमेशा ख़ुद को सही साबित करने की होड़ लगी रहती है। हमने दूसरों की भावनाओं को समझना भी बंद कर दिया है, जिससे हमारे रिश्तों में खटास पैदा होती जा रही है। यही कारण है कि हम बहुत सारे विवाहित जोड़ों को तलाक़ लेते हुए देखते हैं और कई युवा जोड़े टूट रहे हैं। रिश्तों में बहस या फिर वाद-विवाद अधिक हो रहा है। छोटी-छोटी बहस बढ़ते हुए बड़ा रूप ले लेती है और पति-पत्नी के रिश्ते बिखर जाते हैं।
#अपना ही तर्क चलाने की कोशिश ना करें। माना रिश्ते में बहस, वाद-विवाद, तर्क आदि सामान्यहैं, क्योंकि कोई भी दो व्यक्ति बिल्कुल समान नहीं होते। और जब मतभेद होते हैं, तो तर्क भी होंगे ही। इसलिए यदि आप जब कभी भी अपने पार्टनर के साथ बहस करते हैं, तो आपको इसे
अपने साथी को बेहतर तरीक़े से सीखने के अवसर के रूप में देखने की ज़रूरत है। सकारात्मक
बातचीत करें। परिस्तिथियों से भागे नहीं, बल्कि आपसी बातचीत से समस्या हमेशा के लिए हल
हो जाएगी।
# जब भी अपने साथी के साथ किसी बात पर बहस होती है, तो आपको अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए। अगर आप ग़ुस्सा दिखाते हैं, तो आप जीवनसाथी को कभी नहीं सुन सकते और
ना ही समझ सकते हैं। और जब आप सुन नहीं सकते, तो आप बहस के मूल कारण तक नहीं पहुंच पाएंगे। ऐसे में यदि आप दोनों यह नहीं जानते हैं कि आप दोनों किस बारे में बहस कर रहे हैं, तो भला कोई समाधान कैसे निकल सकता है? इसलिए यदि आप वास्तव में हमेशा के लिए वाद-विवाद को समाप्त करना चाहते हैं, तो अपने क्रोध को नियंत्रित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
# अपने गुस्से को नियंत्रित करने के बाद आप अपने साथी के साथ विनम्रता से बात करें। ध्यान
रहे विवाद को नियंत्रित करने और इसे हल करने के लिए आपको वास्तव में उस टोन की जांच
करने की आवश्यकता है जो आप उपयोग कर रहे हैं यानी कठोर और व्यंग्यात्मक लहजे का
प्रयोग ना करें। ऐसा करने से आपके साथी के मन में ग़ुस्सा पैदा होगा, जिससे बात बनते-बनते
बिगड़ जाएगी। विनम्रता एक तर्क को शांति से हल करने की कुंजी है। यह आपके साथी के ग़ुस्से
को कम करने में भी मदद करेगा।
# अपने पार्टनर के साथ बहस के दौरान विद्रोही तरीक़े से कार्य न करें। इसका मतलब है कि अगर
आपका जीवनसाथी कुछ विषय लाता है या उस पर बात करता है, तो उन पर हमले के अंदाज़ में
जवाब न दे। आपको एक आरोप का दूसरे आरोप से सामना नहीं करना चाहिए। यह समझने की
कोशिश करें कि आपका साथी अपनी बात के साथ क्या कहना चाहता है। यदि आप स्थिति को
उनके दृष्टिकोण से देख सकते हैं, तो क्या आप तर्क के बेयरिंग तक नहीं पहुंच पाएंगे। इस तरह
आप मुद्दे को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे।
# आपको स्थिति को नियंत्रित करने की आवश्यकता है और इसे वहां से जाने न दें, जहां से वापस
नहीं आ सके। क्योंकि एक बार स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाने पर समाधान थोड़ा मुश्किल हो
जाता है। और आमतौर पर यही वह समय होता है, जब अधिकांश रिश्ते टूट जाते हैं।