परवरिश के दौरान की गई ये गलतियां बन रही बच्चों के डगमगाते आत्मविश्वास का कारण!

पेरेंट्स बनना जितना सुखद अहसास हैं, उतना ही मुश्किल काम भी। पेरेंट्स बनते ही आपके साथ कई जिम्मेदारियां भी आ जाती हैं जिनका निर्वाह करते हुए आपको अपने बच्चे की परवरिश करनी होती हैं। पेरेंट्स का फर्ज बनता है कि वे बेहतर तरीके से बच्चे की परवरिश करें। लेकिन कई बार परिजनों के लिए तय करना कठिन हो जाता है कि बच्चों की परवरिश का कौन सा तरीका ज्यादा बेहतर है। परवरिश के दौरान की गई कुछ गलतियों का बच्चों पर इस कदर असर पड़ता हैं कि उनका आत्मविश्वास डगमगाने लगता हैं। जी हां, पैरेंटिंग से जुड़ीं कुछ गलतियां कई बार बच्चों पर बुरा असर भी डालती हैं। आज इस कड़ी में हम आपको इसी से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं।

बच्चे की समस्याओं को जरूरत से ज्यादा महसूस करना

अगर आप बच्चे की हर समस्या को तुरंत अपनी समस्या मान लेते हैं तो आप बच्चे से उस समस्या का सामना करने की आजादी छीन रहे हैं। इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि आप बच्चे का साथ ना दें या उसकी परेशानियों को ना समझें। आप उसके पैरेंट हैं और आपका फर्ज है हर मुश्किल में उसके साथ खड़े रहना। लेकिन साथ खड़े रहने का ये मतलब नहीं कि आप उसकी हर प्रॉब्लम खुद सुलझाने पहुंच जाएं और उसे सोचने-समझने का मौका ही ना दें।

दूसरों के सामने अनुशासन में रखना

लोगों के लिए गुस्से पर काबू करना उस वक्त मुश्किल हो जाता है, जब बच्चे दूसरों के सामने मिसबिहेव या गलती कर देते हैं। दूसरों के सामने बच्चों को अनुशासन में रहने के लिए बाधित करने से वे शर्मिंदा या अपमानित महसूस करते हैं। इससे बच्चों के आत्मविश्वास और स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है। बेहतर होगा कि आप बच्चों को दूसरों के सामने धमकाने की बजाय थोड़ा शांत रहें और सही समय आने पर उन्हें प्राइवेट में समझाएं।

खुद के काम करना ना सिखाना

बेटी को तो फिर भी एक उम्र के बाद घर के काम करना सिखा दिया जाता है लेकिन बेटों की परवरिश इस तरह की जाती है कि बड़े होकर उसे अपने हाथ से पानी लेकर पीना तक अहंकार पर चोट जैसा लगने लगता है। बेटों और बेटियों दोनों को बराबर काम ना सिखाना और उनमें भेदभाव करना गलत परवरिश की निशानी है।

हर काम में कमी निकालना
बचपन में किसी काम में परफेक्ट होने में समय लगता है। ऐसे में उसके काम में गलती निकालने की भूल ना करें। इसके विपरित बच्चे की कोशिश अच्छी ना होने पर भी उसकी तारीफ करें। आप बच्चों को अलग-अलग एक्टिविटी में डाल भी सकती है। इससे आपको भी पता चलेगा कि आपके बच्चे की किस काम में रूचि है। साथ ही बच्चा सही दिशा में ध्यान लगाएं।

उसे अपने झगड़ों का हिस्सा बनाना

हर पति-पत्नी के बीच लड़ाइयां होती ही हैं। लेकिन बच्चे के जन्म के बाद आपको अपनी लड़ाइयों के दौरान ये खास ध्यान रखना पड़ता है कि आप बच्चे को उसका हिस्सा ना बनाएं। कई बार पैरेंट्स बच्चे को जज बना देते हैं और पूछते हैं कि उसकी नजर में कौन सही है! ये जगह बच्चे के लिए बहुत मुश्किल होती है क्योंकि वो आप दोनों से बेहद प्यार करता है और आप दोनों को एक साथ एक ही टीम में देखना चाहता है।

दूसरों से बच्चों की तुलना

अपने बच्चों की दूसरे बच्चों के साथ तुलना करने से वे असुरक्षित महसूस कर सकते हैं। ऐसा होने पर वे असहज महसूस करने लगेंगे। जब बच्चों की तुलना दूसरों से होती है तो उनका आत्मविश्वास और स्वाभिमान कमजोर पड़ने लगता है। योग्यताओं के आधार पर उनकी तुलना ना करें। उदाहरण के लिए, आपके बच्चे का क्लासमेट कितनी तेजी से गणित के सवाल हल कर लेता है, इस पर ध्यान देने की बजाय अपने बच्चे की ताकत और क्षमताओं को पहचानें।

सभी के सामने बच्चों का मजाक बनाना

बच्चों का दिल बेहद ही नाजुक होता है। ऐसे में उनके किसी काम को पूरा ना करने पर उनका मजाक बनाने की गलती ना करें। इससे बच्चे का हौंसला टूट सकता है। इसके अलावा बच्चा अगली वह काम करने से कतरा भी सकता है। इसलिए बच्चे की छोटी-बड़ी कोशिश पर उसका आत्मविश्वास बढ़ाएं।

छोटी-छोटी बातों पर डांटना या पीटना

बच्चे बेहद ही मासूम होते हैं। ऐसे में उनके द्वारा कोई गलती करने पर उन्हें डांटने या पीटने की जगह पर उन्हें प्यार से समझाएं। असल में, बच्चे का मन बेहद ही कोमल होता है। ऐसे में वे गुस्से की जगह प्यार से जल्दी बात को समझते हैं। इसके अलावा बच्चे को मारने से वे मां-बाप से डरने लगते हैं। कई बच्चे तो पेरेंट्स को लेकर असुरक्षित महसूस करने लगते हैं।