माँ- बेटी का रिश्ता किसी परिभाषा का मोहताज़ नहीं है, ना ही इसे शब्दों में बाँधा जा सकता है। इस रिश्ते की डोर उस समय और भी मजबूत होने लगती है, जब कुछ ही दिनों में आपकी बेटी की शादी होने वाली होती है। मन में हज़ार तरह के ख्याल आते है। बेटी हमारे बिना कैसे रहेगी, नए घर में कैसे एडजस्ट होगी आदि। कभी -कभी माँ के मन की ये चिंताए बेटी की परेशानी का सबब बन जाता है।इसलिए दुल्हन की माँ को कुछ ख़ास बाते ध्यान में रखनी चाहिए जो आज हम आपको बताएगे
नए रिश्तो को संजोना सिखाये बेटी की सुरक्षा और उस के सुखद भविष्य के लिए मां हर मुमकिन प्रयास करती है। दोनों एकदूसरे की दुनिया होती हैं, पर जब बेटी की शादी हो जाती है तो बेटी एक दूसरी दुनिया में प्रवेश करती है। उस के जीवन में नए लोग और नए रिश्ते आते हैं। इन नए रिश्तों को प्यार से सींचने के लिए बेटी को काफी कंप्रोमाइज करने होते हैं बेटी को इन सब बातो के लिए पहले से तैयार करे।
दखलंदाजी न करे बेटी जब बिदा हो कर ससुराल चली जाए तो मां को बाद में भी उस के साथ चिपके नहीं रहना चाहिए। बेटी को अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने दें। अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने का मौका दें। अपनी परिस्थितियों के साथ एडजस्ट करने दें।
बेटी की भावनाओ को समझे दुल्हन बनते ही आपकी बेटी पर एक साथ कई जिम्मेदारियां आ जाती है। आइए में उसके मन में कई उधेड़बुन चलती रहती है।एक माँ होने के नाते अपनी बेटी के मन की बात समझे। वह सब आसानी से संभाल सकती है ऐसा कहकर उसे प्रोत्साहित करे
आत्मनिर्भर बनने की दे शिक्षाआज के दौर में पति पत्नी दोनों कमाए तब ही घर चलता है।ऐसे में किसी आलस या शौक के कारण वह अपने पति पर ही पूरी तरह निर्भर होने के लिए न सोचे। बेटी को अपने पति के साथ कदम से कदम मिला कर चलने की शिक्षा दें।
स्वतंत्र निर्णय लेना सिखाये बातबात पर यदि मां बेटी को अपनी सलाह देती रहेगी तो बेटी कभी स्वतंत्र निर्णय लेना नहीं सीख पाएगी। वैसे भी जब मां उस घर में नहीं है, तो सारी परिस्थितियों को समझे बगैर दी गई सलाह एकतरफा ही रहेगी और बेटी की समस्याएं सुलझने के बजाय उलझती चली जाएंगी।
घर के कामो में हाथ बटाना सिखाये एक लड़की के लिए पढ़ाई और नौकरी जितनी जरूरी है उतना ही जरूरी है उसे घर के कामकाज का आना। एक माँ होने के नाते अपनी बेटी को ये सब काम-काज सिखाये ताकि एक दम से उस पर भार न पड़े।