किशोरावस्था लाती हैं लड़कों में बड़े बदलाव, पिता का ऐसा व्यवहार बनाएगा उन्हें समझदार

किशोरावस्था की उम्र में कदम रखते ही लड़के और लड़कियों में कई तरह के हार्मोनल परिवर्तन आते हैं। लड़कियों के बदलाव के प्रति तो सभी संवेदनशील होते हैं लेकिन लड़कों की ओर कम ही ध्यान दिया जाता है। ऐसे में लड़कों के विचारों और व्यवहार में भी कई परिवर्तन आते हैं जिन पर ध्यान देकर लड़कों को समझाना भी जरूरी हैं। आइए, जानते हैं किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते लड़कों के प्रति उनके पिता को उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए-

मानसिक संबल और सहानुभूति दें

किशोर होते लड़कों को भी उतने ही मानसिक संबल और सहानुभूति की दरकार होती है, जितनी लड़कियों को होती है। इस उम्र में लड़कों का भी मूड तेजी से बदलता है। किसी के दुःख से वे परेशान हो उठते हैं और किसी भी सीमा तक उनकी मदद करने को तैयार रहते हैं। कुछ बच्चे बहिर्मुखी हो जाते हैं तो कुछ अंतर्मुखी हो जाते हैं।

इंटरनेट यूज़ के बारे में ध्यान दें


किशोरावस्था में बच्चों के मन में अनेक सवाल होते हैं। घर में टीवी और इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है, जिनसे वे जो चाहें, वे सूचनाएं मिनटों में हासिल कर सकते हैं। अक्सर इंटरनेट पर घंटों चेटिंग चलती है और लड़के पोर्न साइट्स देखते हैं। यदि आप उन्हें ऐसा करते देखते हैं तो प्यार से समझाएं और बताएं कि उनकी उम्र अच्छी शिक्षा हासिल करके करियर बनाने की है।

प्राइवेसी का रखें ध्यान

फोन पर यदि वह आपको देखकर अचानक चुप हो जाए तो समझ जाएं कि उसे प्रायवेसी चाहिए। उसकी प्राइवेसी की कद्र करें। यदि वह अपने लिए अलग चीजों की मांग करता है, तो उसे पूरा करने का प्रयास करें। बच्चे का मानसिक संबल बनें। उनके साथ कलह न करें तो बच्चे प्यार से धीरे-धीरे आपकी समस्याओं को समझने का प्रयास करेंगे।

मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की मदद लें

इस उम्र में बच्चों का पढ़ाई पर ध्यान कम लगता है। छोटी-छोटी बात पर हाइपर एक्टिव होना, डिप्रेशन, ज्यादा सोचना इस तरह की समस्याएं होती हैं। गुस्से में वे अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाते। यदि उनका व्यवहार नियंत्रण से बाहर हो जाए तो मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग जरूरी हो जाती है।

सख्ती ना करें

किशोर उम्र के बच्चों की सबसे बड़ी समस्या है उनकी पहचान का संकट। पहले से ही पहचान के संकट से जूझते बच्चे को सख्ती और अनुशासन पसंद नहीं आता है। अपने और बच्चों के बीच थोड़ी दूरी भी बनाकर रखें। बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात की जासूसी नहीं करें।