बीते दिनों देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया गया जहां कान्हा के जन्मोत्सव के तौर पर देश भर के मंदिरों को फूलों से सजाया गया। कान्हा की बाल लीलाएं हर किसी को मोहित कर देती हैं। माताएं अपने बच्चों को कान्हा के बचपन की कहानियां सीख के तौर पर सुनाती हैं। उनका पूरा जीवन ही मानव जाति के लिए एक सीख की तरह रहा। अपने जन्म से लेकर लीला समाप्ति तक, अपने पूरे अवतार के समय तक भगवान श्रीकृष्ण ने कई संघर्षों को सुलझाया और मानव जाति का मार्गदर्शन किया। आज इस कड़ी में हम आपको भगवान श्रीकृष्ण के उन गुणों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें अपने जीवन में उतारकर जिंदगी को संवारा जा सकता हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...
जीवन को भरपूर जिएं भगवान श्री कृष्ण बच्चों के देवता के रूप में जाने जाते हैं। जैसे कि बच्चे नादान मासूम और उल्लास से भरे होते हैं, ठीक उसी प्रकार श्री कृष्ण भी बच्चों की तरहनटखट और उत्तेजित हुआ करते थें। उनका खुशमिजाज स्वभाव और रंग-बिरंगा हाव भाव, हमें जीवन के अलग-अलग पड़ाव को मुस्कुराहट के साथ पार करना सिखाता है। श्री कृष्ण का जीवन प्रतिकूलताओं से भरा रहा है, परंतु वह कभी भी अपने जीवन से निराश नहीं हुए। उन्होंने हमेशा इसे एक उत्सव की तरह जीने की कोशिश की है। उनका यह स्वभाव हम सभी के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है।
सादगी और सरलताभगवान श्रीकृष्ण का पूरा जीवन प्रेम और सादगी से भरा ही रहा। गोकुल, वृंदावन या फिर द्वारका जहां कहीं भी वे रहे वे बहुत सादगी के साथ रहे। उन्हें कभी भी अपने ईश्वरीय अवतार होने या फिर अपनी शक्तियों का जरा भी अभिमान नहीं रहा और न ही कभी उन्होंने उसका दुरुपयोग किया। कान्हा के इस गुण को आधुनिक जीवन में अपनाने की बहुत जरूरत है, ताकि सुख-सुविधा को भोगते हुए भी दिखावे से दूर रहें और हमारे भीतर किसी भी प्रकार का अभिमान न आने पाए।
मन शांत और दिमाग स्थिर रखेंएक बार पांडवों के राजसूय यज्ञ में शिशुपाल कृष्ण को अपशब्द कहता रहा। वह छोटा भाई था, लेकिन बोलते-बोलते उसने सारी मर्यादाएं तोड़ दीं। सभा में मौजूद सभी लोग क्रोधित थे लेकिन भगवान श्रीकृष्ण शांत थे और मुस्कुरा रहे थे। एक बार कृष्ण शांति दूत बनकर दुर्योधन के पास गए तो उसने कृष्ण का बहुत अपमान किया। कृष्ण शांत रहे। इसलिए अगर हमारा दिमाग स्थिर है और मन शांत है तभी हम कोई सही निर्णय ले पाएंगे। गुस्से में हमेशा नुकसान होता है।
अच्छे दोस्त बनेंकृष्ण और सुदामा की मित्रता को आखिर कौन भूल सकता है। कृष्णा अपने बचपन से ही सुदामा से एक अटूट प्रेम करते थे। उन्होंने अपना बचपन पूरी तरह सुदामा के साथ ही बिताया है, हालांकि, कुछ वर्षों बाद उन्हें नियति ने ही अलग होने पर मजबूर कर दिया। वहीं जब कई वर्षों बाद कृष्ण सुदामा से मिले तो सुदामा की पत्नी ने उन्हें तो फिर के रूप में चिवड़ा यानी कि पीटा हुआ चावल दिया। कृष्णा के लिए यह किसी कीमती तौफे से कहीं ज्यादा बढ़कर था। आधुनिक दुनिया में रिश्तों ने अपनी गहराई अर्थ और पकड़ को कहीं न कहीं खो दिया है। यदि हम सभी मे कृष्ण का यह गुण आ जाता हैं, तो हम सार्थक संबंध बनाने के योग्य हो जाएंगे।
श्रेय लेने से बचेंभगवान श्रीकृष्ण ने दुनिया के कई राजाओं को हराया था। लेकिन कभी किसी राजा का सिंहासन छीना नहीं। कृष्ण के पूरे जीवन में कभी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने किसी राजा का सिंहासन छीना हो बल्कि दूसरे अच्छे लोगों को वहां के सिंहासन पर बैठाया। वह कभी किंग नहीं बनें बल्कि किंगमेकर की भूमिका निभाई। भगवान श्रीकृष्ण ने पूरा युद्ध कूटनीति से लड़ा पांडवों को सलाह देते रहे, लेकिन जीतने का श्रेय भीम और अर्जुन को दिया।
सही मार्गदर्शनश्रीकृष्ण ने हमेशा सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने महाभारत के समय गीता के उपदेश दिए। 'कर्म करते जाओ फल की इच्छा मत करो।',धर्म की रक्षा के लिए अपनों के भी विरुद्ध खड़े हो जाओ।, जैसे कई उपदेश उन्होंने अर्जुन को दिए और सारथी बनकर पूरे युद्ध में अर्जुन व पांडवों का साथ दिया। जब भी अर्जुन व्याकुल हुए उनका सही मार्गदर्शन किया।
तनाव और दबाव में ही श्रेष्ठ ज्ञान बाहर आता हैकुरुक्षेत्र के मैदान में जब दुश्मनों की सेना युद्ध के लिए तैयार थी तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो भी ज्ञान दिया, वो दुनिया का श्रेष्ठ ज्ञान में से एक है। गीता की उत्पत्ति युद्ध के मैदान में हुई थी। जीवन की अच्छी बातें तनाव और दबाव में ही होती हैं। अगर आप दिमाग को शांत रखने की कोशिश करेंगे तो कठिन समय में भी आप अच्छा परिणाम पा सकते हैं।