इन 5 कारणों से बच्चों के लिए जरूरी है दादा-दादी का साथ, तजुर्बे से संवरता है जीवन

कहते हैं बच्चे की सबसे पहली पाठशाला उसका घर होता हैं और उसके अध्यापक घर के बुजुर्ग। खेल-खेल में हम अपने दादा-दादी से इतना कुछ सीख लेते हैं जिसका एहसास हमें बड़े होने पर होता हैं। जैसे किसी के दादा-दादी ने उन्हें गणित की टेबल याद कराई तो किसी ने घर के बुजुर्गों से अख़बार पढ़ना सीखा। इसके अलावा कई लोग ऐसे भी हैं जिनको किताब पढने की आदत अपने दादा-दादी से तोहफे के रुप में मिलती हैं। बच्चे भगवान के आगे हाथ जोडना, बड़ों का सम्मान, छोटो से प्यार सब बातें, उनके बड़े ही उनको सीखाते है। इतना ही नहीं अपने रीति-रिवाजों और संस्कृति का ज्ञान भी उन्हीं से प्राप्त होता है। जीवन के सबक के बारे में वह किसी किताब से नहीं बल्कि अपने दादा दादी से ही जानते है। आईये जानते है क्यों जरूरी है बच्चों के लिए दादा-दादी का साथ

दादा-दादी की कहानियां

भले ही आज इंटरनेट पर दादी-नानी की कहानियां उपलब्ध हैं, लेकिन असली मजा ग्रैंड पेरेंट्स की गोद में बैठकर ही सुनने से आता है दादा-दादी के पास अनेको अच्छी-अच्छी कहानियां व कविताये होती हैं और बच्चे भी उन्हें बड़े चाव से सुनते हैं। लेकिन कभी भी दादा-दादी की कहानियां ख़त्म नही होती। इससे आपके बच्चे की सोचने समझने कि शक्ति तो बढ़ेगी ही और वो खुद से भी नए-नए विचारो को सोचेगा।

संस्कार

सुबह उठकर सबके पैर छूना, किसी से मिलने पर उसे नमस्ते कहना, भगवान को रोजाना प्रणाम करना, सबसे प्यार से बात करना ऐसी कई चीज़े हैं जो दादा-दादी बच्चो को बहुत अच्छे से सिखा सकते हैं। इससे वो बड़ा होकर एक अच्छे लोग भी बनेंगे।

अच्छी तरह से देखभाल

यह तो सभी जानते हैं कि बढ़ते बच्चों को अधिक देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे में दादा-दादी न केवल बच्चों की देखभाल करते हैं बल्कि बच्चों के पहले दोस्त भी होते हैं। ग्रैंड पैरेंट्स की उपस्थिति से उन्हें सुकून मिलता है।

परिवार का इतिहास

अपने परिवार के बारे में इतनी जानकारी आपको भी नही होंगी जितनी दादा-दादी को होती हैं। इसलिये वे बच्चो से उन सबके बारे में बात करते हैं, उन्हें सभी रिश्तेदारों व पुरखो का बताते हैं। इससे आपके बच्चे में रिश्तो को लेकर समझ तो बनेगी ही व उनको निभाया कैसे जाता हैं, ये भी समझ आएगा।

खुशहाल साथ

विशेषज्ञ मानते हैं कि डिप्रेशन होने का खतरा उन बच्चों को ज्यादा होता है जो एकल परिवार में रहते हैं, जबकि ज्वाइंट फैमिली में रहने वाले बच्चों का विकास बेहतर तरीके से होता है। उन्हें डिप्रेशन होने की आशंका कम होती है। बड़े परिवार का मतलब है, चौबीसों घंटे हर किसी का साथ। ऐसे में बच्चे के मन में अकेलेपन की भावना नहीं आती है और टेंशन या परेशानी के वक्त भी दादा दादी का साथ मिल जाता है। हमेशा किसी से जुड़े रहने की यह भावना बच्चे को अवसाद का शिकार नहीं होने देती।