हर महिला को पता होने चाहिए ये कानूनी अधिकार

अक्सर यह देखा जाता है कि महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों के प्रति अधिक सजग नहीं रहती हैं। यही कारण है कि पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने से लेकर आपबीती बयान भी दर्ज करवाने से भी महिलाएं कतराती हैं। अधिकांश महिलाओं के साथ तो पुलिस भी बदसलूकी करने से नहीं चूकती है और महिलाओं के अधिकांश रिपोर्ट तो दर्ज भी नहीं किए जाते हैं। भारत में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार या अपराधों के खिलाफ भारतीय संविधान में कई तरह कानून और अधिकार दिए गए हैं। हमारे समाज में उन अधिकारों के बारे में बेहद कम ही लोग जानते हैं। ऐसे में यदि महिलाएं इस अधिकारों से अवगत रहेंगी तो इसे अपने रक्षा के लिए एक हथियार के रूप में प्रयोग कर सकती हैं। आज हम आपको बताते हैं उन भारतीय क़ानूनों के बारे में जो हर भारतीय महिला को पता होने चाहिए।

* कानूनी मदद के लिए मुफ्त मिलते हैं एडवोकेट : दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश के मुताबिक आपराधिक दुर्घटना की शिकार महिला द्वारा थाने में दर्ज कराई प्राथमिकी दर्ज के बाद थाना इंचार्ज की यह जिम्मेदारी है कि वह मामले को तुरंत दिल्ली लीगल सर्विस अथॉरिटी को भेजे और उक्त संस्था की यह जिम्मेदारी है कि वह पीड़ित महिला को मुफ्त वकील की व्यवस्था कराए। सामान्यतः देखा जाता है कि महिलाएं अनभिज्ञता में अक्सर कानूनी पचड़ों में फंसकर रह जाती हैं।

* पिता की संपत्ति का अधिकार : भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है। अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा। यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा।

* समान वेतन का अधिकार : एक पुरुष वर्ग और महिला वर्ग अगर समान पड़ पद पर कार्यरत हैं तो उन्हें समान वेतन का अधिकार है, समान वेतन अधिनियम,1976 में एक ही तरीके के काम के लिए समान वेतन का प्रावधान है। अगर कोई महिला किसी पुरुष के बराबर ही काम कर रही है, तो उसे पुरुष से कम वेतन नहीं दिया जा सकता, और अगर ऐसा होता है तो महिला अपने अधिकार के तहत लिखित शिकायत कर सकती हैं।

* लिव-इन रिलेशन में अधिकार : लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन का हक मिला हुआ है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो वह उसके खिलाफ शिकायत कर सकती है। लिव-इन में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिलेशनशिप कायम है, तब तक उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन संबंध खत्म होने के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है।

* मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार :
मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह (तीन महीने) तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं।

* पुलिस से जुड़े अधिकार : एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है। महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती। बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है और उसे जमानत संबंधी उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है।

* घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार : ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है। आप या आपकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है।