कोरोना संकट से निपटने को लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान देशभर में घरेलू हिंसा के मामले 95 फीसदी तक बढ़ गए हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग ने देशव्यापी बंद से पहले और बाद के 25 दिनों में विभिन्न शहरों से मिली शिकायतों के आधार पर यह दावा किया है। आयोग की मानें तो महिलाओं से घरेलू हिंसा के मामले लगभग दोगुने बढ़ गए हैं। समाज चाहे वह शहरी हो या ग्रामीण, महिलाओं के प्रति हिंसा तो जैसे आम बात है क्योंकि यह हिंसा उसके साथ दूसरे नहीं बल्कि उसके अपने ही करते हैं। हद तो तब हो जाती है जब महिलाओं को पता भी नहीं होता कि उनके साथ कहीं कुछ गलत हो भी रहा है।
वह इसे अपने अपनों का हक समझकर सह जाती है और यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होता, बल्कि बढ़ता जाता है। गृहिणियां अक्सर सब कुछ सहती जाती है और उनकी यह सहने की आदत ही जैसे उनकी दुश्मन बन जाती है। घरेलू हिंसा सिर्फ शादी के बाद मारपीट ही नहीं होती बल्कि अगर आपके परिजन आपको पढ़ने से रोकते हैं, आपकी मर्जी के खिलाफ शादी तय करते हैं, आपके पहनावे पर रोकटोक लगाते हैं तो ये भी घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है।
शारीरिक हिंसा किसी महिला को शारीरिक पीड़ा देना जैसे मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, लात-घूसा मारना, किसी वस्तु से मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक पीड़ा देना शारीरिक हिंसा के अंतर्गत आता है।
यौनिक या लैंगिक हिंसा महिला को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिए विवश करना, बलात्कार करना, दुर्व्यवहार करना, अपमानित करना, महिला की पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को आहत करना इसके अंतर्गत आता है।
मौखिक और भावनात्मक हिंसा
किसी महिला या लड़की को किसी भी वजह से उसे अपमानित करना, उसके चरित्र पर दोषारोपण लगाना, शादी मर्जी के खिलाफ करना, आत्महत्या की धमकी देना, मौखिक दुर्व्यवहार करना।
आर्थिक हिंसा बच्चों की पढ़ाई, खाना, कपड़ा आदि के लिए धन न उपलब्ध कराना, रोजगार चलाने से रोकना, महिला द्वारा कमाए जा रहे धन का हिसाब उसकी मर्जी के खिलाफ लेना।
ये बातें जानना जरूरी महिलाओं को जानना चाहिए कि ये सभी हिंसाएं घरेलू हिंसा क़ानून 2005 के अंतर्गत आती हैं इसके तहत महिला जिले में तैनात सुरक्षा अधिकारी के पास आईपीसी की धारा 498ए के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है।वहीं महिलाओं को यह भी जानना चाहिए कि डीआईआर को घरेलू घटना रिपोर्ट (डोमेस्टिक इंसीडेंट रिपोर्ट) कहते हैं जिसमें घरेलू हिंसा सम्बन्धी प्रारंभिक जानकारी दर्ज कराई जाती है।हर जिले में सुरक्षा अधिकारी सरकार द्वारा नियुक्त होता है। सुरक्षा अधिकारी ही घरेलू हिंसा रिपोर्ट दर्ज करता है। राज्य सरकार द्वारा हर राज्य के जिलों में स्वयंसेवी संस्था की नियुक्त होती है जो सुरक्षा अधिकारी के पास रिपोर्ट दर्ज कराने में मदद करती है।यह सब महिलाओं की मदद तब करते हैं जब स्वयं महिला खुद पर हो रही ज्यादती के खिलाफ आवाज उठाती है। तो महिलाओं को सहने की आदत छोड़कर अपने स्वाभिमान के लिए लड़ना चाहिए तभी समाज में बदलाव संभव हो सकता है।