Chhath Puja 2025: बच्चों को छठ की परंपरा और महत्व से परिचित कराने के आसान तरीके

छठ पूजा हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है। साल 2025 में यह पर्व 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर तक चलेगा। दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाने वाला यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है। कहा जाता है कि सूर्य देव जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के दाता हैं, जबकि छठी मैया संतान की रक्षक देवी हैं। इसी कारण महिलाएं अपने परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती हैं।

बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और देश के कई हिस्सों में छठ महापर्व बड़े उत्साह और भव्यता के साथ मनाया जाता है। लेकिन आज के समय में बच्चों को त्योहारों की परंपराओं और उनके महत्व की जानकारी कम होती है। इसलिए माता-पिता के लिए यह ज़रूरी है कि वे बच्चों को छठ पूजा से जोड़ें।

सूर्य का महत्व समझाएं

छठ पूजा में सूर्य देव का विशेष महत्व है। इस दिन उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। आप अपने बच्चों को यह समझा सकते हैं कि सूर्य की पूजा क्यों की जाती है और इसका जीवन में क्या महत्व है। यह उन्हें सिखाएगा कि हर शुरुआत और अंत का सम्मान करना ज़रूरी है। साथ ही, यह उन्हें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आभार की भावना भी सिखाएगा।

नहाय-खाय की परंपरा से परिचित कराएं

छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय कहलाता है। इस दिन व्रती महिलाएं विशेष सात्विक भोजन बनाकर खाती हैं। इसमें चने की दाल और लौकी की सब्जी देसी घी और सेंधा नमक में बनाई जाती है। बच्चों को यह समझाएं कि यह परंपरा साफ-सफाई, सादगी और पवित्रता का संदेश देती है।

त्याग और संयम की सीख दें

छठ पूजा का सबसे कठिन हिस्सा 36 घंटे का निर्जला व्रत होता है। महिलाएं बिना जल और अन्न के 36 घंटे बिताकर अपने बच्चों की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। बच्चों को यह बताना जरूरी है कि यह त्याग और समर्पण का प्रतीक है। इससे वे माता-पिता और महिलाओं का सम्मान करना सीखेंगे।

परंपरा के महत्व को अनुभव कराएं

संभव हो तो बच्चों को घाट पर लेकर जाएं, जहाँ छठ पूजा होती है। सूर्योदय के समय जल में खड़े होकर पूजा और लोकगीत सुनने से बच्चे छठ के महत्व और उसकी आध्यात्मिकता को समझ पाएंगे।

मेले और लोक संस्कृति से जोड़ें

छठ के समय कई जगहों पर मेले भी आयोजित होते हैं। यह बच्चों के लिए ज्ञान और मनोरंजन दोनों का माध्यम होते हैं। इन मेलों में लोकगीत, पारंपरिक वेशभूषा और पूजा सामग्री देखकर बच्चे अपनी संस्कृति और परंपराओं के करीब आएंगे।