शादी का फैसला लेना किसी भी लडकी के लिए आसान नहीं होता हैं क्योकि इसके बाद वह अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपने कम्फर्ट से हटकर नई जिम्मेदारियां संभालने निकल पड़ती हैं। इसी के साथ कई लडकियों को ऐसा ससुराल मिलता हैं जहां वे ही अपनी बहू के बारे में सब कुछ तय करते हैं। वह ही बताते हैं कि उसे कौन से कपड़े पहनने हैं या फिर कब उन्हें मायके जाना है। ऐसे में कई बार ऐसे पल आते हैं जब लड़कियां शादी के बाद अपने मायके को याद करने लगती हैं। उन्हें अपने घर की याद हर पल आती है और हर समय कुछ कमी महसूस होती है। आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं उन बातों के बारे में जिनकी वजह से शादी के बाद लड़कियों को अपने मायके की याद आती हैं। आइये जानते है इसके बारे में...
मां के हाथ का खाना आता है याद
शादी से पहले भले ही आपने भिंडी को देखकर अपनी नाक सिकोड़ ली हो, लेकिन शादी के बाद मां के हाथ की वहीं भिंडी एक लड़की को सबसे ज्यादा याद आती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सुसराल में उससे पूछने वाला कोई नहीं है कि उसने अभी तक खाना खाया या नहीं। वह कल खाने में क्या खाना चाहती है। वह न केवल अपनों के लिए काफी सैक्रिफाइस करती हैं बल्कि अब उसके नखरे उठाने वाला भी कोई नहीं है।
मनपसंद कपड़े नहीं पहन सकती
'पापा आप क्यों टोकते रहते हो, ये आजकल का फैशन है' शादी से पहले भले ही आप अपने पैरेंट्स के घर पर कितनी भी शॉर्ट ड्रेस क्यों न पहन लें, लेकिन सुसराल में आपको वही कपड़े पहनने पड़ते हैं, जो आपके सास-ससुर को भाते हैं। हो सकता है कि ससुराल में सास-ससुर और बाकी घरवालों के साथ आपका अच्छा बॉन्ड हो, लेकिन इसके बाद भी आप बेधड़क अपने लिए कोई फैसला लेने से पहले सौ बार सोचती हैं।
देर तक सोये रहना
आप उस भाव से अवगत हैं जब आप बिस्तर नही छोड़ना चाहती? ठीक है, देर तक सोने की आदत को अलविदा कहें और सुबह सबसे पहले उठकर चाय और नाश्ता बनाने की आदत डाल लें। और हाँ एक बात और ध्यान रहे नाश्ता बनाते बनाते अगर भूख लग जाए तो कुछ भी खाने की गलती ना करें नहीं तो आपकी माँ के दिए हुए संस्कारों पे ऊँगली उठ सकती है! ऐसे में आप अपने बिस्तर को याद करेंगी, कि देर तक कम्बल में पड़े होकर आप कितना सहज और आराम महसूस करती थी।
बातचीत के वो पल
देर रात तक पेरेंट्स से गप्पे मारना, मां के साथ बैठ चाय पर घंटों बिता देना, ये कुछ ऐसे पल हैं जो हर लड़की मिस करती है। हो सकता है कि ससुराल में सास-ससुर और बाकी घरवालों के साथ आपका अच्छा बॉन्ड हो लेकिन बिना सोचे समझे अपनी बात कह देना, बात अच्छी ना लगे तो बहस कर देना या रूठ के चले जाना, ये शायद ही अब आप कर पाएं। हां कोई बात पसंद नहीं आएगी तो शायद आप चुप हो जाएंगी क्योंकि जिस हक से, जिस जिद्द से, जिस बेपरवाह, बेधड़क अंदाज़ में आप अपनी बात मायके में करती थीं, वो शायद ससुराल वालों को पसंद ना आए।
अपने लिए टाइम ही नहीं
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि शादी के बाद आप अपने सास-ससुर के साथ रह रही हैं या अकेले पति के साथ। घर की ज़िम्मेदारियों का सारा बोझ एकदम से आपके कंधे पर आ जाता है। नाश्ते में क्या बनाना है से लेकर पति लंच पैक करने तक, आप न केवल जार एक चीज का ध्यान रखती हैं बल्कि इन सब के चक्कर में आपको अपने लिए समय भी नहीं मिल पाता है। यही एक वजह भी है कि आपको न केवल शादी से पहले के दिन याद आने लगते हैं बल्कि अपने पेरेंट्स की नाराज़गी का भी एहसास होता है।
संभलकर करनी पड़ती है बात
इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि लड़कियां गुस्से में अपनी मां को कैसा भी जवाब दे देती हैं। हालांकि, जब बात ससुराल की आती है, तो उन्हें सोच-समझकर बात करनी पड़ती है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक सवाल के जवाब में उन्हें अलग से चार बातें और सुनने को मिल जाती हैं। हो सकता है कि उनके जवाब देने से उनकी सास बुरी तरह गुस्सा ही जाए, जिसके बाद उनके पति भी उनकी गलती का एहसास कराने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
कोई नहीं होता नखरे उठाने वाला
‘ये नहीं खाना’, ‘इसमें नमक कम है’।।ये
सारे नखरे तो आप अब उठाती हैं, कभी पार्टनर के तो कभी बच्चों के। कभी
गुस्सा आए तो छुपा लेना, कभी थकान में भी एक और एक्स्ट्रा काम कर लेना।।।जब
अपनों की एक मुस्कुराहट के लिए आप भी कई सैक्रिफाइस करती हैं तो आपको याद
आता है वो वक्त जब आपके नखरे उठाने के लिए आपके घरवाले क्या कुछ नहीं करते
थे।
हर काम को एकदम बढ़िया से करना
अपने घर पर भले ही आपने काम
किया हो या ना किया हो, लेकिन ससुराल वालों को अपनी प्यारी बहू से इसी बात
की उम्मीद रहती है की वह सब चीजों में एकदम परफेक्ट हो। ऐसा इसलिए क्योंकि
शादी के बाद आपसे यही एक्सपेक्ट किया जाता है कि आपको सब कुछ आता होगा। ऐसे
में अगर जरा भी गलती हो गई, तो न केवल खूब सारे ताने सुनने को मिल जाते
हैं बल्कि सही से बताने वाला भी कोई नहीं होता।
अपने वजूद की चिंता
शादी के बाद आपको अपनी स्वतंत्र ज़िन्दगी की बहुत याद आएगी जब आपको अपने
फैसले लेने के लिए दूसरों की इजाजत की ज़रुरत नहीं होती थी। आप अपनी मर्जी
से कहीं भी जा सकती थी और अपने दोस्तों को अपने घर बुला सकती थी। अपने
ससुराल वालों, यहाँ तक की अपने पति को खुश रखने के लिए खुद को किसी और
स्वरूप मे ढालती नजर आएंगी। यह दुखद है कि आप खुद की पहचान भूल जाएंगी,
आपके शौक, आपके हुनर सब दरकिनार कर दिये जाएंगे। आप अपनी वो पहचान याद
करेंगी जैसी आप तब थी जब आपको स्वतंत्र घूमने की आजादी थी।