रामायण में कई तरह की ज्ञान की बातें बताई गई हैं। ये ग्रंथ केवल कथा नहीं है। इससे जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए और साथ ही ये भी सीखना चाहिए कि आपको किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करना चाहिए। रामायण में हर रिश्ते की आदर्श स्थितियाें के बारे में भी बताया गया है। हमें रामायाण से धर्म और समझदारी के साथ जीवन जीने की शिक्षा भी मिलती है। इन दिनों रामायण दूरदर्शन पर प्रसारित की जा रही है। इसे केवल देखें नहीं इससे सीख भी लें।
समान व्यवहार ही बनाता है सबसे बेहतररामायण की सबसे बड़ी सीख है सबके साथ समान व्यवहार करना। भगवान राम ने अपने पूरे जीवन काल में सभी के साथ समान व्यवहार किया। उन्होंने कभी भी लोगों को जाति, धर्म, लिंग आदि के भेदभावों से नहीं देखा, उन्होंने सभी के साथ एक ही व्यवहार रखा। उन्होंने प्रकृति और मनुष्य के बीच एक नया संबंध बनाया, जो बताता है कि सच्चा मनुष्य वही है जो सभी के साथ समान व्यवहार करे।
मर्यादा और अनुशासनअनुशासन और मर्यादा किसी भी मनुष्य का सबसे अच्छा गुण माना गया है। भगवान राम का व्यक्तित्व मर्यादित और अनुशासन से पूर्ण रहा है। भगवान राम ने अपनी मर्यादाओं और अनुशासन में रहकर जीवन की हर एक जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाहन किया है। भगवान राम के इन्हीं दो गुणों को अपने जीवन में उतार कर हम एक अच्छे इंसान बनकर सुख जीवन जी सकते है।
समर्पण हमेशा देती है संतुष्टिकिसी भी काम को पूरा करने के लिए मनुष्य को हमेशा समर्पित रहना चाहिए। इससे वह अपना आगे का रास्ता खोज सके और जीवन में जो चाहे, वह बन सके। जीवन में तरक्की पाने के लिए आपको बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और उस कार्य में पूरी तरह समर्पित होना पड़ेगा। भगवान राम के लिए हनुमानजी का प्रेम और निस्वार्थ सेवा हमें सिखाती है कि आराध्य के चरणों में बिना किसी संदेह के समर्पित कर देना चाहिए।
दया और प्रेम का भावदयावान बनना और सभी के साथ प्रेम भाव रखना रामायण जैसे महाग्रंथ से सीखा जा सकता है। भगवान राम ने एक साथ कई रिश्तों को दया और प्रेम के भाव में रखकर निभाया है। उन्होंने पुत्र, भाई, पति और एक राजा की जिम्मेदारी प्रेम के भाव में निभाई है। व्यक्ति अगर भगवान राम के इन्हीं दो गुणों को अपनाकर चले तो उसके जीवन में हमेशा खुशहाली और संतोष का भाव रहेगा।
विश्वासविश्वास किसी भी रिश्ते की सबसे बड़ी पूंजी होती है। भगवान राम ने 14 वर्षों तक वनवास काटकर कैकई को दिए वचन को निभाया। इन सब के बाद भी भगवान राम का सभी भाइयों से बराबर प्रेम था। जहां राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने 14 साल तक राम के साथ वनवास काटा था तो वहीं भरत ने अयोध्या के राज पाठ को ठुकरा दिया। यह सब विश्वास और रिश्तों की डोर को मजबूती के लिए प्रेरित करती है।