भारत के अलग-अलग राज्यों में दीवाली मनाने के है अनोखे तरीक़े, जाने

भारत के राज्यों में दीपावली का उत्सव मनाने की परंपरा अलग-अलग है। हमारे देश में दीवाली पर्व मनाने की परंपराएं भी बड़ी अजीब हैं। हिमाचल में कई जगह बुड्ढी दिवाली मनाई जाती है और बलि दी जाती है तो छत्तीसगढ़ एक गांव में पांच दिन पहले ही ये त्योहार मना लिया गया। पूरे देश में दिवाली मनाने की तैयारियां हो रही हैं। पश्चिम बंगाल में ये उत्सव 15 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। देशों में माता लक्ष्मी की पूजा के साथ ही रातभर दीपक व आतिशबाजी से अंधकारमयी रात को प्रकाशमय बनाकर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। आइये जानते हैं दिवाली का त्योंहार कहाँ किस तरह बनाये जाता हैं।

# दक्षिण भारत :

दक्षिण भारत के तमिलनाडु में आइपसी या थुलम के महीने में मनाया जाता है। यहां दिवाली के एक दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन मनाया जाने वाला उत्सव दक्षिणी भारत के दिवाली उत्सव का सबसे प्रमुख दिन होता है। इसके लिए एक दिन विशेष तरह के पारंपरिक स्नान की तैयारी की जाती है व कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। अगले दिन सुबह पारंपरिक तरीके से स्नान (जो कि एक तरह का तेल स्नान होता है) किया जाता है। सुबह सभी अपने घर का आंगन साफ कर व धो कर रंगोली बनाते हैं। इस दिन नए कपड़े पहनने और मिठाई खाने का रिवाज हैं। दक्षिण में दिवाली से जुड़ा सबसे अनोखा रिवाज़ है जिसे थलाई दिवाली कहा जाता है।

# बस्तर की दियारी :

आदिवासियों की अधिकता वाले बस्तर अंचल के ग्रामीण इलाकों में ’दीपावली’ नहीं मनाई जाती। यहां नगरीय इलाकों से भिन्न ’दीपावली’ पर्व मनाने की बजाए ’दियारी’ का त्योहार परंपरागत तरीके से आज भी मनाया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या को ’दीपावली’ के मौके पर नगरीय इलाकों में आमतौर पर लक्ष्मीजी का पूजन करके घरों के बाहर रोशनी और पटाखे फोड़े जाते हैं। इसके उलट ग्रामीण इलाकों में ’दियारी’ तीन दिनों तक मनाई जाती है। इस दौरान मुख्य रूप से फसल रूपी लक्ष्मी, मिट्टी और पशुधन की पूजा की जाती है।

# उत्तर भारत :

उत्तर भारत में दिवाली उत्सव की शुरुआत दशहरे के साथ ही शुरू हो जाती है जिसमें रामायण की कहानी को नाटकीय रूप से दर्शाया जाता है। यह नाटक कई रातों तक चलता है, परंतु इसका अंत बुराई पर अच्छाई की जीत के साथ होता है। 5 दिनों तक चलने वाले दीपोत्सव के दिन यहां पारंपरिक व्यंजन और मिठाइयां बनाई जाती हैं, साथ ही लोग नए वस्त्र पहनकर एक-दूसरे से मिलते, जुआ खेलते, पटाखे छोड़ते और तरह-तरह के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखते हैं।

# हिमाचल की दिवाली :

परंपरा के मुताबिक, बुड्ढी दिवाली देशभर में मनाई जाने वाली दिवाली के बाद पड़ने वाली पहली अमावस्या से शुरू होती है। यह त्योहार ढोल-नगाड़ों के बीच पशुबलि देकर देवी-देवताओं की प्रार्थना करने, लोकगीत गाने और खुशियां मनाने का प्रतीक है। इस त्योहार के प्रतीक के रूप में सैकड़ों बकरियों और भेड़ों की बलि दी जाती है। परंपरा के अनुसार, पशुधन विशेषकर बकरी रखने वाले ग्रामीण अपने पशुओं को नजदीक के मंदिर में ले जाते हैं जहां त्योहार की पहली रात पशु की बलि दी जाती है और देवी-देवताओं की प्रतिमा के आगे पशुओं के कटे सिर पेश किए जाते हैं।