मन को सुकून देगा देश के इन 7 गुरुद्वारों का दर्शन, वीकेंड पर बनाए अपना प्लान

भारत देश को विविधताओं का देश कहा जाता हैं जहां हर धर्म के लोग मिल-झूलकर रहते हैं। देश के हर हिस्से में विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थल स्थित हैं जिनमें से कुछ अपनी विशेषता और भव्यता के लिए जाने जाते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको देश के प्रसिद्द गुरुद्वारों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां दर्शन करने जाना आपके मन को सुकून देगा। इन गुरुद्वारों में आपको सिख संगत की अटूट आस्था देखने को मिलती है। अगर आप वीकेंड पर अपने परिवार या दोस्तों के साथ घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं तो यहां बताए जा रहे गुरुद्वारों का दर्शन करने पहुंच सकते हैं।

गुरुद्वारा हरमिंदर साहिब/स्वर्ण मंदिर, अमृतसर पंजाब

अमृतसर के इस गुरुद्वारे को हरमिंदर साहिब, श्री दरबार साहिब और स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। युवाओं में यह गुरुद्वारा 'गोल्डन टेम्पल' के नाम से भी प्रसिद्ध है। सोने से ढका ये गुरुद्वारा सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसे भारत के मुख्य धार्मिक स्थलों में गिना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस गुरुद्वारे को बचाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह जी ने इसके ऊपरी हिस्से को सोने से ढंक दिया था, इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर का नाम भी दिया गया था। यहां जाकर आप ना सिर्फ भक्तिमय हो जाते हैं बल्कि इसके आस-पास मौजूद स्ट्रीट मार्केट से शॉपिंग भी कर सकते हैं।

श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा, उत्तराखंड

सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस गुरुद्वारे का निर्माण किया था। यह उनकी तपोस्थली है। यह गुरुद्वारा उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है और सिखों का पवित्र धार्मिक स्थल है। चारों तरफ से पथरीले पहाड़ और बर्फ से ढंकी चोटियों के बीच बसा हेमकुंड साहिब समुद्र तल से 4329 मीटर की ऊंचाई पर है। मान्यता है कि यहां श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने बरसों महाकाल की आराधना की थी। यही वजह है कि सिख समुदाय की इस तीर्थ में अटूट आस्था है और वे तमाम दिक्कतों के बावजूद यहां पहुंचते हैं। श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है। गुरुद्वारे के पास ही एक सरोवर है। इस पवित्र जगह को अमृत सरोवर अर्थात अमृत का तालाब कहा जाता है।

हजूर साहिब गुरुद्वारा, महाराष्ट्र

हजूर साहिब सिखों के 5 तख्तों में से एक है। यह महाराष्ट्र के नान्देड नगर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। इस गुरुद्वारा को ‘सच खण्ड’ के नाम से भी जाना जाता है। गुरूद्वारे के भीतर के कमरे को 'अंगीठा साहिब' कहा जाता है। मान्यता है कि इस कक्ष में केवल 'ब्रह्मचारी' सेवक ही सेवा कर सकता है, इसके अलावा यहां किसी भी अन्य सेवक को जाने की अनुमति नहीं है। इतिहास के मुताबिक इसी स्थान पर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह का अंतिम संस्कार किया गया था। महाराजा रणजीत सिंह के आदेश के बाद इस गुरूद्वारे का निर्माण सन 1832-1837 के बीच हुआ था।

शीशगंज गुरुद्वारा, दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित गुरुद्वारे शीशगंज को बघेल सिंह ने सिख धर्म के नौवें सिख गुरु तेग बहादुर की शहादत की याद में बनवाया था। यह वही स्थान है, जहां बादशाह औरंगजेब ने सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर के इस्लाम स्वीकार न करने पर उनकी हत्या करवा दी थी। इसके निर्माण की नींव बघेल सिंह ने 1783 में डाली थी। 11 मार्च 1783 में सिख मिलिट्री के लीडर बघेल सिंह अपनी सेना के साथ दिल्ली आए। वहां उन्होंने दीवान-ए-आम पर कब्जा कर लिया। इसके बाद मुगल बादशाह शाह अलाम द्वितीय ने सिखों के ऐतिहासिक स्थान पर गुरुद्वारा बनाने की बात मान ली और उन्हें गुरुद्वारा बनाने के लिए रकम दी।

फतेहगढ़ साहिब, पंजाब

फतेहगढ़ साहिब पंजाब के फतेहगढ़ जिले में मौजूद है। ऐसी मान्याता है कि वर्ष 1704 में साहिबजादा फतेह सिंह और साहिबजादा जोरावर सिंह को फौजदार वजीर खान के आदेश पर यहां दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था। यह गुरुद्वारा उन्हीं की शहादत की याद में बनाया गया था। गुरुद्वारे की मुख्य विशिष्टता सिख वास्तुकला का नमूना है जिसमें सफेद पत्थर की संरचनाएं एवं स्वर्ण गुंबद है। प्रवेशद्वार सफेद पत्थर से बनाया गया है और यह संगमरमर से बने एक सफेद रास्ते की ओर ले जाता है। गुरुद्वारे का मुख्य विशिष्ट सिख वास्तुकला का नमूना है, जिसमें सफेद पत्थर की संरचनाएं व स्वर्ण गुंबद है।

पांवटा साहिब गुरुद्वारा, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित इस गुरुद्वारे में श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने जीवन के चार साल बिताए थे और दसवें ग्रंथ की रचना की थी। उन्हीं की याद में यहां गुरुद्वारा बनाया गया है। यहां हजारों पर्यटक हर वर्ष आते हैं। आज भी यहां गुरू गोबिंद सिंह जी की कलम इत्यादि सामान मौजूद है। जिन्हें दर्शन हेतु म्यूजियम में रखा गया है। सिख समुदाय में जन्म लेने वाला हर व्यक्ति इस गुरुद्वारे में दर्शन के लिए जाना चाहता है। गुरुद्वारा के अंदर श्री तालाब स्थान वह जगह है, जहाँ से गुरु गोबिंद सिंह वेतन वितरित करते थे। इसके अलावा, गुरुद्वारे में श्री दस्तर स्थान मौजूद है जहां माना जाता कि वे पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताओं में न्याय करते थे। गुरुद्वारा का एक अन्य आकर्षण एक संग्रहालय है जो गुरु के उपयोग की कलम और अपने समय के हथियारों को दर्शाती है।

श्री पटना साहिब गुरुद्वारा, बिहार

सिख इतिहास में पटना साहिब का विशेष महत्व है। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म यहीं 5 जनवरी, 1666 को हुआ था और उनका संपूर्ण बचपन भी यहीं गुजरा था। यही नहीं सिखों के तीन गुरुओं के चरण इस धरती पर पड़े हैं। इस कारण देश व दुनिया के सिख संप्रदाय के लिए पटना साहिब आस्था, श्रद्धा का बड़ा और पवित्र केंद्र व तीर्थस्थान हमेशा से है। महाराजा रणजीत सिंह ने इसका पुनर्निर्माण 1837-39 के बीच कराया था। यहां आज भी गुरु गोबिंद सिंह की वह छोटी कृपाण है, जो बचपन में वे धारण करते थे। गुरुद्वारे की चौथी मंजिल में पुरातन हस्तलिपि और पत्थर के छाप की पुरानी बड़ी गुरु ग्रंथ साहिब की प्रति को सुरक्षित रखा गया है, जिस पर गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने तीर की नोक से केसर के साथ मूल मंत्र लिखा था।