नुब्रा वैली में हिंदुस्तान को सिल्क रूट से जोड़ने वाले रस्ते में कराकोरम रेंज से घिरा तुरतुक, लद्दाख के उत्तर में खारदुंग ला के परे, श्योक नदी किनारे बसा एक छोटा सा गाँव है। तुरतुक यहाँ मिलने वाले मीठे खुबानी और खुशमिज़ाज बाशिंदों की वजह से आजकल काफी फ़ेमस हो गया है। अगर आपको भी घूमने का शौक है तो देश के इस आखिरी गांव की सैर जरूर करें। तो चलिए जानें क्या है खास इस गांव में देखने के लिए।
खूबसूरत नजारे - तुरतुक नाम के इस गांव की खासियत यहां के खूबसूरत नजारे हैं। लद्दाख के आखिरी छोर पर बसा ये गांव अपनी सभ्यता और संस्कृति की वजह से भी खास है। खार दूंगला दर्रे में बसा ये गांव ऊंचे पहाड़ों के बीच बसा हुआ है। यहां पर बाल्टी संस्कृति के लोग रहते हैं। जिनकी भाषा और संस्कृति बिल्कुल अलग और अनोखी है।
इतिहास - 1947 में बटवारे के बाद जब पाकिस्तान ने कश्मीर हथियाने के लिए भारत पर हमला किया तब युद्ध विराम की घोषणा होते-होते, कश्मीर और लद्दाख का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्ज़े में आ गया था। उसमें से एक गाँव तुरतुक भी था। पर सन 71 की लड़ाई के बाद तुरतुक फिर से हिंदुस्तान में शामिल हो गया। हालाँकि, सैलानियों को यहाँ की खूबसूरती से वाक़िफ़ होने के मौके के लिए सन 2010 तक का इंतज़ार करना पड़ा।
काराकोरम - अगर आप ट्रैकिंग के शौकीन है तो काराकोरम की पहाड़ियों पर जाएं। पर्यटकों की नजर से दूर लद्धाख के इस गांव की यात्रा एक अनोखा अनुभव देती है। यहां पर इंटरनेट की सेवाएं भी नहीं है। लेकिन इस गांव में मौजूद झरने का दृश्य बेहद खास है।
ठहरने की व्यवस्था - दूर-दूर तक फैले घास के मैदान और लकड़ी के बने पुल को पार करने के बाद जब आप इस झरने को देखते हैं तो रास्ते की सारी थकान मिट जाती है। तुरतुक गांव में ठहरने के लिए होटल कम मिलेंगे। लेकिन यहां के लोगों के घर में होमस्टे की सुविधा मिलेगी।
खूबानी के खेती-लद्दाख के इस खूबसूरत गांव में सबसे ज्यादा खुबानी की खेती होती है। यहां के बागानों में आपको खुबानी से लगदग पेड़ मिलेंगे। जो देखने में बहुत सुंदर लगते हैं। इसके साथ ही यहां पर अखरोट के भी बहुत से पेड़ नजर आ जाएंगे।