ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर और राज्य का का एक प्रमुख शहर है। भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर म.प्र. राज्य के उत्तर में स्थित है। यह शहर और इसका प्रसिद्ध दुर्ग उत्तर भारत के प्राचीन शहरों के केन्द्र रहे हैं। यह शहर गुर्जर-प्रतिहार राजवंश, तोमर तथा कछवाहा की राजधानी रही है । ग्वालियर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होने वाले सौ भारतीय शहरों में से एक के रूप में चुना गया है।
ग्वालियर शहर के नाम के पीछे एक इतिहास छिपा है। छठी शताब्दी में एक राजा हुए सूरजसेन, एक बार वे एक अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हो मृत्युशैया पर थे, तब ग्वालिपा नामक सन्त ने उन्हें ठीक कर जीवनदान दिया। उन्हीं के सम्मान में इस शहर की नींव पड़ी और इसे नाम दिया ग्वालियर। कहते है, सूरजसेन पाल के 83 वंशजों ने किले पर राज्य किया, लेकिन 84 वें, जिसका नाम तेज करण था, इसे हार गया।
ग्वालिया जहाँ अपने इतिहास के चलते चर्चाओं में रहता है वहीं इसका पर्यटन की दृष्टि से एक अलग मुकाम है। आज हम अपने पाठकों को इसके कुछ ऐसे स्थानों की जानकारी देने जा रहे हैं, जो घूमने की दृष्टि से बेहतरीन हैं।
महाराजा मान सिंह का क़िला (ग्वालियर का किला)सेन्ड स्टोन से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता और शहर का प्रमुखतम स्मारक है। एक उँचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिये एक बेहद ऊंची चढाई वाली पतली सडक़ से होकर जाना होता है। इस सडक़ के आसपास की बडी-बडी चट्टानों पर जैन तीर्थकंरों की विशाल मूर्तियां बेहद खूबसूरती से और बारीकी से गढी गई हैं। किले की तीन सौ फीट उंचाई इस किले के अविजित होने की गवाह है। इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं। पन्द्रहवीं शताब्दि में निर्मित गूजरी महल उनमें से एक है जो राजपूत राजा मानसिंह तोमर और गुर्जर रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है। इस महल के बाहरी भाग को उसके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सप्रयास सुरक्षित रखा है किन्तु आन्तरिक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है जहां दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं जो कार्बन डेटिंग के अनुसार प्रथम शती ए डी की हैं। ये दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं। ग्वालियर का किला से आगरा 120 कि॰मी॰ दूर स्थित है। इसे 'भारत का जिब्राल्टर' कहा जाता है।
तेली का मंदिर
9वीं शताब्दी में निर्मित एक अद्वितीय स्थापत्यकला का नमूना विष्णु जी का तेली का मन्दिर है, जो की 100 फीट की ऊंचाई का है। यह द्रविड स्थापत्य और आर्य स्थापत्य का बेजोड़ संगम है।
मानमन्दिर महलइसे 1486 से 1517 के बीच ग्वालियर के प्रतापी राजा मानसिंह द्वारा बनवाया गया था। सुन्दर रंगीन टाइलों से सजे इस किले की समय ने भव्यता छीनी जरूर है किन्तु इसके कुछ आन्तरिक व बाह्य हिस्सों में इन नीली, पीली, हरी, सफेद टाइल्स द्वारा बनाई उत्कृष्ट कलाकृतियों के अवशेष अब भी इस किले के भव्य अतीत का पता देते हैं।राजा मानसिंह पराक्रमी योद्धा होने के साथ ही ललित कला प्रेमी व स्थापत्य शैली के जानकार भी थे। उनके शासनकाल को ग्वालियर का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस किले के विशाल कक्षों में अतीत आज भी स्पंदित है। यहां जालीदार दीवारों से बना संगीत कक्ष है, जिनके पीछे बने जनाना कक्षों में राज परिवार की स्त्रियां संगीत सभाओं का आनंद लेतीं और संगीत सीखतीं थीं। इस महल के तहखानों में एक कैदखाना है, इतिहास कहता है कि औरंगज़ेब ने यहां अपने भाई मुराद को कैद रखवाया था और बाद में उसे समाप्त करवा दिया। जौहर कुण्ड भी यहां स्थित है। इसके अतिरिक्त किले में इस शहर के प्रथम शासक के नाम से एक कुण्ड है ' सूरज कुण्ड। विष्णु जी का एक मन्दिर है 'सहस्रबाहु का मन्दिर' जिसे अब सास-बहू का मंदिर नाम से भी जानते हैं। इसके अलावा यहां एक सुन्दर गुरूद्वारा है जो सिखों के छठे गुरू गुरू हरगोबिन्द जी की स्मृति में निर्मित हुआ, जिन्हें जहांगीर ने दो वर्षों तक यहां बन्दी बना कर रखा था।
जयविलास महल और संग्रहालययह सिंधिया राजपरिवार का वर्तमान निवास स्थल ही नहीं, बल्कि एक भव्य संग्रहालय भी है। इस महल के 35 कमरों को संग्रहालय बना दिया गया है। इस महल का ज्यादातर हिस्सा इटेलियन स्थापत्य से प्रभावित है। इस महल का प्रसिध्द दरबार हॉल इस महल के भव्य अतीत का गवाह है, यहां लगा हुए दो फानूसों का भार दो-दो टन का है, कहते हैं इन्हें तब टांगा गया जब दस हाथियों को छत पर चढा कर छत की मजबूती मापी गई। इस संग्रहालय की एक और प्रसिद्ध चीज है, चांदी की रेल जिसकी पटरियां डाइनिंग टेबल पर लगी हैं और विशिष्ट दावतों में यह रेल पेय परोसती चलती है। और इटली, फ्रान्स, चीन तथा अन्य कई देशों की दुर्लभ कलाकृतियां यहाँ हैं।
तानसेन स्मारक
तानसेन भारत के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में से एक थे और पूरे मध्य युग में अकबर के दरबार में एक प्रमुख गायक थे। वह भी मुगल दरबार के नौ मोतियों में से एक था। किंवदंती के अनुसार, तानसेन जादू को बुला सकते थे, बारिश ला सकते थे और यहां तक कि अपने गीत के साथ जानवरों को भी मोहित कर सकते थे। उन्होंने एक शिक्षक मोहम्मद गौस से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा, जो उनके शिक्षक थे। उन्होंने ग्वालियर घराने की संगीत शैली की रचना की और ध्रुपद शैली का समर्थन किया। उन्हें उनके गुरु के पास एक शानदार स्थापत्य स्मारक स्थान पर दफनाया गया था। हर साल नवंबर में, तानसेन संगीत समारोह यहां आयोजित किया जाता है, जिसमें देश भर के जाने-माने कलाकार आते हैं विभिन्न शास्त्रीय प्रदर्शनों में खेलते हैं।
गोपाचल पर्वतगोपाचल पर्वत ग्वालियर के किले के अंचल में, प्राचीन कलात्मक जैन मूर्ति समूह का अद्वितीय स्थान है। यहाँ पर हजारों विशाल दि. जैन मूर्तियाँ सं. 1398 से सं. 1536 के मध्य पर्वत को तराशकर बनाई गई हैं। इन विशाल मूर्तियों का निर्माण तोमरवंशी राजा वीरमदेव, डूँगरसिंह व कीर्तिसिंह के काल में हुआ। अपभ्रंश के महाकवि पं॰ रइधू के सान्निध्य में इनकी प्रतिष्ठा हुई।
झाँसी महारानी लक्ष्मीबाई समाधि स्थानरानी लक्ष्मीबाई स्मारक शहर के पड़ाव क्षैत्र में है। कहते हैं यहां झाँसी की रानी वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की सेना ने अंग्रेजों से लड़ते हुए पड़ाव डाला और यहां के तत्कालीन शासक महाराजा जयाजीराव शिंदे उर्फ सिंधिया से सहायता मांगी किन्तु सदैव से मुगलों और अंग्रेजों के प्रभुत्व में रहे यहां के शासक उनकी मदद न कर सके और वे यहां 17 जून 1858 को सुर्यास्त के समय कोटा की सराय के फुलबाग में वीरगति को प्राप्त हुईं। बाबा गंगादास महाराज के मठ में महारानी लक्ष्मीबाई का गुप्तरूप से अंतिम संस्कार हुआ। उनकी अंतिम संस्कार में व्यत्यय ना आये इसलिये ७४५ साधूओं ने अंग्रेजों से लोहा लिया और सदा के लिये अमर हुये। उसी स्थान पर उनका भव्य अश्वारूढ पुतला का स्मारक है।
18 जून, 1858 की शाम को अंग्रेजों ने ग्वालियर में महारानी लक्ष्मीबाई की खोज की रानी लक्ष्मीबाई का कुछ भी पता न चलने पर शाम के समय महारानी लक्ष्मीबाई को अधिकारीक रूप से मृत घोषित किया गया। 11 जून को यह जानकारी फोर्ट विल्यम तथा रानी विक्टोरिया को टेलिग्राफ द्वारा हॅमिल्टन ने दी। 20 जून को न्युज पेपर के जरिये पुरे हिंदुस्थान तथा इंग्लैंड और अमरिका में रानी लक्ष्मीबाई के मृत्यु की जानकारी थी गयी।
सास बहू मंदिरग्वालियर में स्थित सास बहू मंदिर का वास्तविक नाम विष्णु भगवान पर आधारित सहस्त्रबाहु मंदिर है। हालांकि, कालांतर में गलत उच्चारण के कारण इस मंदिर को सास बहू मंदिर कहा जाने लगा है। 9वीं शताब्दी में बने इस मंदिर का नाम ग्वालियर के फेमस पर्यटन स्थलों में शुमार है। वहीं, सहस्त्रबाहु मंदिर अपनी शानदार नक्काशी के चलते पर्यटकों की पसंदीदा जगहों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण कच्छपघाट राजवंश के राजा महिपाल के शासनकाल में किया गया था, जिन्होंने भगवान ब्रह्मा से एक समृद्ध और सफल राज्य की कामना की थी।
सूर्य मंदिरग्वालियर के दर्शनीय स्थलों में शामिल यहां का सूर्य मंदिर भगवान सूर्य देव को समर्पित हैं। सूर्य मंदिर ग्वालियर के सबसे शानदार मंदिरों में से एक है और साथ ही साथ इस मंदिर में शानदार वास्तुशिल्प है जो आश्चर्यचकित कर देती हैं। सूर्य मंदिर का निर्माण वर्ष 1988 के दौरान एक प्रसिद्ध उद्योगपति जीडी बिड़ला के द्वारा करबाया गया था। सूर्य मंदिर में आने वाले पर्यटकों की लम्बी कतार वर्ष भर लगी रहती हैं।