चाय बागानों और प्राकृतिक सुन्दरता का अद्भूत खजाना है दार्जिलिंग, कभी था अंग्रेजों की आरामगाह

दार्जिलिंग भारत के राज्य पश्चिम बंगाल का एक नगर है। यह नगर दार्जिलिंग जिले का मुख्यालय है। यह नगर शिवालिक पर्वतमाला में लघु हिमालय में अवस्थित है। यहां की औसत ऊँचाई 2,134 मीटर (6,982 फुट) है। भारत में ब्रिटिश राज के दौरान दार्जिलिंग की समशीतोष्ण जलवायु के कारण से इस जगह को पर्वतीय स्थल बनाया गया था। ब्रिटिश निवासी यहां गर्मी के मौसम में गर्मी से छुटकारा पाने के लिए आते थे।

दार्जिलिंग अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर यहां की दार्जिलिंग चाय के लिए प्रसिद्ध है। दार्जिलिंग की दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे एक युनेस्को विश्व धरोहर स्थल तथा प्रसिद्ध स्थल है। यहां चाय की खेती 1856 से शुरू हुई थी। चाय उत्पादकों ने काली चाय और फ़र्मेण्टिड प्रविधि का एक सम्मिश्रण तैयार किया है जो कि विश्व में सर्वोत्कृष्ट है। दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे जो कि दार्जिलिंग नगर को समथर स्थल से जोड़ता है, को 1999 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। यह वाष्प से संचालित यन्त्र भारत में बहुत ही कम देखने को मिलता है।

दार्जिलिंग में ब्रिटिश शैली के निजी विद्यालय भी हैं, जो भारत और नेपाल से बहुत से विद्यार्थियों को आकर्षित करते हैं। सन 1980 की गोरखालैंड राज्य की मांग इस शहर और इस के नजदीक के कालिम्पोंग शहर से शुरू हुई थी। अभी राज्य की यह मांग एक स्वायत्त पर्वतीय परिषद के गठन के परिणामस्वरूप कुछ कम हुई है। हाल की दिनों में यहाँ का वातावरण ज्यादा पर्यटकों और अव्यवस्थित शहरीकरण के कारण से कुछ बिगड़ रहा है।

यह शहर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यहां सड़कों का जाल बिछा हुआ है। ये सड़के एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इन सड़कों पर घूमते हुए आपको औपनिवेशिक काल की बनी कई इमारतें दिख जाएंगी। ये इमारतें आज भी काफी आकर्षक प्रतीत होती है। इन इमारतों में लगी पुरानी खिड़कियां तथा धुएं निकालने के लिए बनी चिमनी पुराने समय की याद‍ दिलाती हैं। आप यहां कब्रिस्‍तान, पुराने स्‍कूल भवन तथा चर्चें भी देख सकते हैं। पुराने समय की इमारतों के साथ-साथ आपकों यहां वर्तमान काल के कंकरीट के बने भवन भी दिख जाएंगे। पुराने और नए भवनों का मेल इस शहर को एक खास सुंदरता प्रदान करता है। यहाँ घूमने के लिए जाया जा सकता है। यहाँ घूमने के लिए कई स्थल है जहाँ की खूबसूरती देखकर सभी का मन यही कहता है की बस यहीं रहे और कहीं न जाये।

हसीन वादियाँ, दिलकश नज़ारे, ऊँचे ऊँचे वृक्ष, ठंडी मंद मस्त हवाएँ, रंग बिरंगे फूल, उन फूलों की मदहोश करने वाली खुशबु, बर्फीली घाटियाँ और रूईनुमा उड़ती बर्फ के खुशनुमा एहसास से दार्जिलिंग का एक यादगार सफर तय किया जा सकता है। दार्जलिंग चाय के बागानों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की चाय विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ के देखने लायक स्थलों मे सक्या मठ, ड्रुग-थुब्तन-साङ्गग-छोस्लिंग-मठ, जापानी मंदिर (पीस पैगोडा), ट्वॉय ट्रेन, चाय उद्यान आदि प्रसिद्ध जगह है।

लेकिन फिर भी इस जगह को नक्सलियों द्वारा खराब किया जा रहा है। भाषा विवाद और अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर गोरखा जनमुक्ति मोरचा के आंदोलन से दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र में पैदा हुए हालात हो गए है। इस दौरान सैलानियों की कारों को निशाना बनाने और उनसे बदसलूकी की खबरें हैं। इसकी वजह से इसकी सुंदरता भी खत्म होती जा रही है। दार्जलिंग की हरी भरी घाटियों को देखने का मज़ा इन लोगो की वजह से किरकिरा हो गया है।

बरबतिया रॉक गार्डन

यह रॉक गार्डन दार्जिलिंग से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तक पहुंचने का रास्ता काफी घुमावदार और ऊंचे ऊंचे विशालकाय पर्वतों और जंगलों के बीच से होकर जाता है। पर्यटकों को सबसे ज्यादा आनंद इसी रास्ते पर आता है। प्रकृति का अद्भुत नजारा देशी और विदेशी पर्यटकों का मन मोह लेता है। रॉक गार्डन में बेहद खूबसूरत झरने और कल कल करते पानी की आवाज मन को अलग ही शांति प्रदान करती है।

हैप्पी वैली

हैप्पी वैली एक खूबसूरत चाय का बागान है, जो कई एकड़ जमीन में फैला हुआ है। इसकी हरियाली और सुंदरता देखकर पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यह पूरा इलाका बादलों से ढका हुआ है। यहां पहुंचने पर आपको ऐसा अनुभव होगा जैसे आप बादलों को अपने हाथ से छू सकते हैं। हैप्पी वैली की हसीन वादियां पर्यटकों के मन में बस जाने वाली होती है। आप दार्जिलिंग आए और यहां के चाय के बागान ना देखें ऐसा हो ही नहीं सकता।

चौरास्ता

दार्जिलिंग में चौरास्ता बेहद पॉपुलर प्लेस है। पर्यटकों के साथ-साथ यहां स्थानीय लोग भी घूमने आते हैं। यहां से दार्जिलिंग की ऊंची ऊंची घाटियां और शानदार व्यूप्वाइंट देखने को मिलता है, जिसकी वजह से इस स्थान पर बच्चे, बूढ़े सभी आना पसंद करते हैं। दार्जिलिंग की यात्रा पर निकले तो चौराहा जरूर घूमे। यहां पर आपको देसी चाय की चुस्की का भरपूर आनंद लेने मिलेगा। यहां से आप चाय की पत्ती खरीद कर भी ले जा सकते हैं। खास बात यह है के यहां पर ₹10 से लेकर ₹500 तक की चाय मिलती है।

सिमाना व्यू पॉइंट

सीमाना व्यू प्वाइंट से नेपाल का मनोरम दृश्य देखने मिलता है, यहां की वादियां आप का मन मोह लेंगी। जो कि पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है। यहाँ एक बड़ा मार्केट भी है, जहां से आप मनचाही वस्तुएं खरीद सकते हैं जिन्हें आप याद के तौर पर ले जा सकते हैं।

टाइगर हिल

टाइगर हिल का मुख्‍य आनंद इस पर चढ़ाई करने में है। आपको हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे। इसी के पास कंचनजंघा चोटी है। 1838 से 1849 ई. तक इसे ही विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था। लेकिन 1856 ई. में करवाए गए सर्वेक्षण से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि कंचनजंघा नहीं बल्कि नेपाल का सागरमाथा जिसे अंगेजों ने एवरेस्‍ट का नाम दिया था, विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी है। अगर आप भाग्‍यशाली हैं तो आपको टाइगर हिल से कंजनजंघा तथा एवरेस्‍ट दोनों चाटियों को देख सकते हैं। इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827 फीट का अंतर है। वर्तमान में कंचनजंघा विश्‍व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है। कंचनजंघा को सबसे रोमांटिक माउंटेन की उपाधि से नवाजा गया है। इसकी सुंदरता के कारण पर्यटकों ने इसे इस उपाधि से नवाजा है। इस चोटी की सुंदरता पर कई कविताएं लिखी जा चुकी हैं। इसके अलावा सत्‍यजीत राय की फिल्‍मों में इस चोटी को कई बार दिखाया जा चुका है।

तिब्‍बतियन रिफ्यूजी कैंप

तिब्‍बतियन रिफ्यूजी स्‍वयं सहायता केंद्र चौरास्‍ता से 45 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है। इस कैंप की स्‍थापना 1959 ई. में की गई थी। इससे एक वर्ष पहले 1958 ईं में दलाई लामा ने भारत से शरण मांगा था। इसी कैंप में 13वें दलाई लामा (वर्तमान में 14 वें दलाई लामा हैं) ने 1910 से 1912 तक अपना निर्वासन का समय व्‍यतीत किया था। 13वें दलाई लामा जिस भवन में रहते थे वह भवन आज भग्‍नावस्‍था में है।

आज यह रिफ्यूजी कैंप 650 तिब्‍बतियन परिवारों का आश्रय स्‍थल है। ये तिब्‍बतियन लोग यहां विभिन्‍न प्रकार के सामान बेचते हैं। इन सामानों में कारपेट, ऊनी कपड़े, लकड़ी की कलाकृतियां, धातु के बने खिलौन शामिल हैं। लेकिन अगर आप इस रिफ्यूजी कैंप घूमने का पूरा आनन्‍द लेना चाहते हैं तो इन सामानों को बनाने के कार्यशाला को जरुर देखें। यह कार्यशाला पर्यटकों के लिए खुली रहती है।

ट्वॉय ट्रेन

इस अनोखे ट्रेन का निर्माण 19वीं शताब्‍दी के उतरार्द्ध में हुआ था। डार्जिलिंग हिमालयन रेलमार्ग, इंजीनियरिंग का एक आश्‍चर्यजनक नमूना है। यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है। यह पूरा रेलखण्‍ड समुद्र तल से 7546 फीट ऊंचाई पर स्थित है। इस रेलखण्‍ड के निर्माण में इंजीनियरों को काफी मेहनत करनी पड़ी थी। यह रेलखण्‍ड कई टेढ़े-मेढ़े रास्‍तों त‍था वृताकार मार्गो से होकर गुजरता है। लेकिन इस रेलखण्‍ड का सबसे सुंदर भाग बताशिया लूप है। इस जगह रेलखण्‍ड आठ अंक के आकार में हो जाती है।

अगर आप ट्रेन से पूरे दार्जिलिंग को नहीं घूमना चाहते हैं तो आप इस ट्रेन से दार्जलिंग स्‍टेशन से घूम मठ तक जा सकते हैं। इस ट्रेन से सफर करते हुए आप इसके चारों ओर के प्राकृतिक नजारों का लुफ्त ले सकते हैं। इस ट्रेन पर यात्रा करने के लिए या तो बहुत सुबह जाएं या देर शाम को। अन्‍य समय यहां काफी भीड़-भाड़ रहती है।

घूम मठ (गेलुगस्)

टाइगर हिल के निकट ईगा चोइलिंग तिब्‍बतियन मठ है। यह मठ गेलुगस् संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ को ही घूम मठ के नाम से जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार इस मठ की स्‍थापना धार्मिक कार्यो के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक बैठकों के लिए की गई थी।

इस मठ की स्‍थापना 1850 ई. में एक मंगोलियन भिक्षु लामा शेरपा याल्‍तसू द्वारा की गई थी। याल्‍तसू अपने धार्मिक इच्‍छाओं की पूर्त्ति के लिए 1820 ई. के करीब भारत में आए थे। इस मठ में 1998 ई. में बुद्ध की 15 फीट ऊंची मूर्त्ति स्‍थापित की गई थी। उस समय इस मूर्त्ति को बनाने पर 25000 रु. का खर्च आया था। यह मूर्त्ति एक कीमती पत्‍थर का बना हुआ है और इसपर सोने की कलई की गई है। इस मठ में बहुमूल्‍य ग्रंथों का संग्रह भी है। ये ग्रंथ संस्‍कृत से तिब्‍बतीयन भाषा में अनुवादित हैं। इन ग्रंथों में कालीदास की मेघदूत भी शामिल है। हिल कार्ट रोड के निकट समतेन चोलिंग द्वारा स्‍थापित एक और जेलूग्‍पा मठ है। समय: सभी दिन खुला। मठ के बाहर फोटोग्राफी की अनुमति है।

माकडोग मठ

यह मठ चौरास्‍ता से तीन किलोमीटर की दूरी पर आलूबरी गांव में स्थित है। यह मठ बौद्ध धर्म के योलमोवा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ की स्‍थापना श्री संगे लामा ने की थी। संगे लामा योलमोवा संप्रदाय के प्रमुख थे। यह एक छोटा सा सम्‍प्रदाय है जो पहले नेपाल के पूवोत्तर भाग में रहता था। लेकिन बाद में इस सम्‍प्रदाय के लोग दार्जिलिंग में आकर बस गए। इस मठ का निर्माण कार्य 1914 ई. में पूरा हुआ था। इस मठ में योलमोवा सम्‍प्रदाय के लोगों के सामाजिक, सांस्‍‍कृतिक, धार्मिक पहचान को दर्शाने का पूरा प्रयास किया गया है।

जापानी मंदिर (पीस पैगोडा)

विश्‍व में शांति लाने के लिए इस स्‍तूप की स्‍थापना फूजी गुरु जो कि महात्‍मा गांधी के मित्र थे ने की थी। भारत में कुल छ: शांति स्‍तूप हैं। निप्‍पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर जो कि दार्जिलिंग में है भी इनमें से एक है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1972 ई. में शुरु हुआ था। यह मंदिर 1 नवम्बर 1992 ई. को आम लोगों के लिए खोला गया। इस मंदिर से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का अति सुंदर नजारा दिखता है।

भूटिया-‍‍बस्‍ती-मठ

यह डार्जिलिंग का सबसे पुराना मठ है। यह मूल रूप से ऑब्‍जरबेटरी हिल पर 1765 ई. में लामा दोरजे रिंगजे द्वारा बनाया गया था। इस मठ को नेपालियों ने 1815 ई. में लूट लिया था। इसके बाद इस मठ की पुर्नस्‍थापना संत एंड्रूज चर्च के पास 1861 ई. की गई। अंतत: यह अपने वर्तमान स्‍थान चौरासता के निकट, भूटिया बस्‍ती में 1869 ई. स्‍थापित हुआ। यह मठ तिब्‍बतियन-नेपाली शैली में बना हुआ है। इस मठ में भी बहुमूल्‍य प्राचीन बौद्ध सामग्री रखी हुई है।

यहां का मखाला मंदिर काफी आकर्षक है। यह मंदिर उसी जगह स्‍थापित है जहां भूटिया-बस्‍ती-मठ प्रारंभ में बना था। इस मंदिर को भी अवश्‍य घूमना चाहिए। समय: सभी दिन खुला। केवल मठ के बाहर फोटोग्राफी की अनुमति है।

हिमालय माउंटेनिंग संस्‍थान, दार्जिलिंग

हिमालय माउंटेनिंग संस्‍थान की स्‍थापना 1954 ई. में की गई थी। ज्ञातव्‍य हो कि 1953 ई. में पहली बार हिमालय को फतह किया गया था। तेंजिंग कई वर्षों तक इस संस्‍थान के निदेशक रहे। यहां एक माउंटेनिंग संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय में हिमालय पर चढाई के लिए किए गए कई एतिहासिक अभियानों से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है। इस संग्रहालय की एक गैलेरी को एवरेस्‍ट संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। इस गैलेरी में एवरेस्‍टे से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है। इस संस्‍थान में पर्वतारोहण का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

पदमाजा-नायडू-हिमालयन जैविक उद्यान

पदमाजा-नायडू-हिमालयन जैविक उद्यान माउंटेंनिग संस्‍थान के दायीं ओर स्थित है। यह उद्यान बर्फीले तेंदुआ तथा लाल पांडे के प्रजनन कार्यक्रम के लिए प्रसिद्ध है। आप यहां साइबेरियन बाघ तथा तिब्‍‍बतियन भेडिया को भी देख सकते हैं।

मुख्‍य बस पड़ाव के नीचे पुराने बाजार में लियोर्डस वानस्‍पतिक उद्यान है। इस उद्यान को यह नाम मिस्‍टर डब्‍ल्‍यू. लियोर्ड के नाम पर दिया गया है। लियोर्ड यहां के एक प्रसिद्ध बैंकर थे जिन्‍होंने 1878 ई. में इस उद्यान के लिए जमीन दान में दी थी। इस उद्यान में ऑर्किड की 50 जातियों का बहुमूल्‍य संग्रह है।

ऑरेंज वैली चाय बागान

रॉक गार्डन के रास्ते में पड़ने वाली चाय बागान यहां की फेमस चाय बागान है। यहां की खास बात यह है कि यहां आपको देसी चाय का स्वाद लेने मिलेगा। यहां की चाय संत्री के रंग की होती है और स्वाद बाकी चाय से काफी अलग होता है।

जोरपोखरी लेक

दार्जिलिंग स्थित एक छोटी सी झील जिसे सब जोर पोखरी लेक के नाम से जानते हैं। यह एक बहुत खूबसूरत झील है और फोटोग्राफी के लिए बेस्ट प्लेस है।

सक्या मठ

यह मठ दार्जिलिंग से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सक्या मठ सक्या सम्‍प्रदाय का बहुत ही ऐतिहासिक और महत्‍वपूर्ण मठ है। इस मठ की स्‍थापना 1915 ई. में की गई थी। इसमें एक प्रार्थना कक्ष भी है। इस प्रार्थना कक्ष में एक साथ 60 बौद्ध भिक्षु प्रार्थना कर सकते हैं।

दार्जिलिंग में खाने के लिए क्या क्या फेमस है

दार्जिलिंग के स्थानीय भोजन में वैसे तो बहुत से व्यंजन शामिल है लेकिन दम आलू की गाड़ी ग्रेवी वाली मसालेदार सब्जी यहां के विशेष व्यंजनों मैं सबसे ऊपर है। इसके अलावा यहां का स्ट्रीट फूड भी बेहद स्वादिष्ट होता है। यहां के कुछ प्रसिद्ध और स्थानीय भोजन जैसे कि

आलू दम
थुकपा
शाफले
नागा व्यंजन
ट्रेडिशनल नेपाली थाली
सेल रोटी
चुरपी
कवती
चेज
गुन्द्रक इत्यादि हैं।

दार्जिलिंग में रुकने की जगह

दार्जिलिंग में रुकने के लिए बहुत से होटल्स, होम स्टे और कैंपिंग का सहारा ले सकते हैं। यहां गांधी रोड पर कई होटल उपलब्ध है, जहां आपको ₹700 से शुरू होकर ₹10000 तक में कई सुविधाएं उपलब्ध हो जाएंगी और यहां से दार्जिलिंग घूमना काफी सुविधाजनक हो जाता है।

कैंपिंग की बात करें तो दार्जिलिंग से थोड़ी दूरी पर आपको कैंप की सुविधा भी मिल जाएगी, जहां आप रुक कर कम खर्चे में दार्जिलिंग घूमने का मजा ले सकते हैं। होटल्स ओर कैंपिंग के अलावा यहां पर एक अनोखी सुविधा उपलब्ध होती है, जो यहां आने वाले पर्यटकों के लिए होटल से भी ज्यादा सुविधाजनक है।

यहां पर स्थानीय लोग अपने घरों में पर्यटकों के लिए होटल जैसी सुविधाएं प्रदान करते हैं। यहां रुकने का किराया लगभग 300 से लेकर ₹500 के बीच होता है और ₹150 में आपको यहां के स्थानीय व्यंजन वाली थाली का भरपूर आनंद लेने भी मिलता है। होमस्टे की यह सुविधा दार्जिलिंग में बहुत फेमस है।

दार्जिलिंग घूमने के लिए सबसे अच्छा समय

यदि आप दार्जिलिंग घूमने का प्लान बना रहे हैं तो यहां जाने के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से लेकर अक्टूबर के बीच का माना जाता है। इस समय यहां का मौसम सुहावना होता है, जो कि यहां घूमने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए सुविधाजनक होता है।

दार्जिलिंग कैसे पहुँचे?

दार्जिलिंग पहुँचने के लिये आप बस का ट्रेन का और फ्लाइट का सहारा ले सकते हैं। आप अपनी लोकेशन और बजट के हिसाब से सड़क मार्ग, रेल मार्ग और हवाई मार्ग में से किसी को भी चुन सकते हैं।

सड़क मार्ग– दार्जिलिंग पहुंचने के लिए आप बस का उपयोग भी कर सकते हैं। दार्जिलिंग मिरिक और कलिंगपोंग पहुंचने के लिए तेनजिंग नोर्गे बस टर्मिनल सिलीगुड़ी से बस सेवाएं आपको मिल जाएंगी। यदि आप दार्जिलिंग तक का सफर बस से करना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको सिलीगुड़ी पहुंचना होगा। यहां से आप सीट शेयरिंग बसों से या जीप से आप 3 से 3:30 घंटों के बीच में दार्जिलिंग पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग– दार्जिलिंग से लगभग 88 किलोमीटर दूरी पर स्थित न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन है, जो यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है। यह जंक्शन देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है और उत्तर पूर्वी राज्यों की तरफ जाने वाली सारी ट्रेनें यहां रूकती है।

हवाई मार्ग– दार्जिलिंग से लगभग 88 किलोमीटर की दूरी पर बागडोगरा हवाई अड्डा स्थित है जो कि यहां का निकटतम हवाई अड्डा है। इसके माध्यम से लगभग 3:30 घंटे की यात्रा के बाद दार्जिलिंग पहुंचा जा सकता है। इसकी खास बात यह है कि हवाई अड्डा देश के सभी मेट्रो सिटी के हवाई अड्डे से जुड़ा हुआ है।