जब भी कभी पर्यटन के लिए किसी धार्मिक स्थल की बात की जाती हैं तो बनारस का नाम जरूर आता हैं। यह उत्तर प्रदेश राज्य का सबसे प्राचीन नगर है जो देश की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा हुआ हैं। भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी यह काशी नगरी लोकप्रियता के चलते पर्यटकों को बहुत पसंद आती हैं। हर साल यहां लाखों पर्यटक पहुंचते हैं जिसमें भारतियों के अलावा विदेशी पर्यटक भी होते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको बनारस की कुछ प्रमुख जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बिना बनारस यात्रा अधूरी मानी जाती हैं। आप अपने परिवार या दोस्तों के साथ इन बनारस की इन जगहों की सैर करने जरूर पहुंचें। आइये जानते हैं इन जगहों के बारे में...
गंगा नदी बनारस की सबसे पवित्र और सबसे बड़ी नदी गंगा नदी है। बनारस इसी नदी के किनारे बसा हुआ है। यह नदी अपने आप में ही हमारे देश की एक सांस्कृतिक धरोहर को समेटे हुए है। बनारस के ज्यादातर मंदिर इसी नदी के आस-पास स्थित हैं। बनारस में कुल 88 घाट हैं जो की गंगा नदी के तट पर बसे हैं। देश-विदेश से हमारे श्रद्धालु भक्त और पर्यटक यहाँ गंगा नदी में स्नान करने आते हैं। हम सब जानते हैं की इंसान गलतियों का पुतला है और अपनी गलतियों के कारण ही जाने-अनजाने में कभी-कभी कुछ पाप भी कर बैठता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, गंगा नदी में स्नान मात्र से ही माँ गंगा सारे पाप धो देती है।
काशी विश्वनाथ मंदिरबहुत से लोग इसे वाराणसी में सबसे प्रमुख मंदिर के रूप में देखते हैं, और कुछ इसे पूरे देश में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर मानते हैं। आपको बता दें, इस मंदिर की कहानी तीन हजार पांच सौ साल से भी अधिक पुरानी है। काशी विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसके दर्शन करने के लिए हर साल लाखों संख्या में लोग यहां आते हैं। कई भक्तों का मानना है कि शिवलिंग की एक झलक आपकी आत्मा को शुद्ध कर देती है और जीवन को ज्ञान के पथ पर ले जाती है। हमारा मानना है कि आपको वाराणसी में घूमने की शुरुआत इसी जगह से करनी चाहिए।
दशाश्वमेध घाटबनारस के गंगा नदी के किनारे बसे हुए घाटों में से एक घाट है दशाश्वमेध घाट, जो की सबसे पुराण घाट मन जाता है और सबसे सुन्दर भी। दशाश्वमेध का अर्थ होता है दस घोड़ों की बलि । एक मान्यता के अनुसार यहाँ पर बहुत बड़ा यज्ञं करवाया गया था और उसमे दस घोड़ों की बलि दी गयी थी। वाराणसी के 88 घाटों में से पांच घाट सबसे ज्यादा पवित्र माने गए हैं। ये पांच घाट हैं: अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिका घाट। इन घाटों को सामूहिक रूप से ‘पंचतीर्थ’ कहा जाता है। यह घाट हर शाम आयोजित होने वाली गंगा आरती के लिए सबसे प्रसिद्ध है, और हर दिन सैकड़ों लोग इसे देखने आते हैं। गंगा आरती देखना एक ऐसा अनुभव है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आप चाहे वाराणसी अकेले आ रहे हैं या फैमिली के साथ जा रहे हैं, इस घाट का नजारा देखना बिल्कुल भी न भूलें।
अस्सी घाटयह वही घाट है जहाँ अस्सी नदी और गंगा नदी का संगम है। एक पौराणिक कथा के अनुसार माँ दुर्गा ने शुम्भ-निशुम्भ नाम के राक्षस का अपनी तलवार से वध करने के बाद उस तलवार को यहाँ फेंक दिया था जिसकी वजह से अस्सी नदी की उत्पत्ति हुई है। इसी घाट पे एक पीपल का बहुत बड़ा बृक्ष है जिसके नीचे भगवान शिव का शिवलिंग और भगवान अस्सींगमेश्वारा का मंदिर भी है जिसके दर्शन करने के लिए बहुत से श्रद्धालु आते हैं। अस्सी घाट वाराणसी और स्थानीय लोगों का दिल है, साथ ही पर्यटक गंगा में सूर्यास्त और सूर्योदय के अद्भुत दृश्य का आनंद लेने के लिए वहां आते हैं। स्थानीय युवाओं के बीच शाम को समय बिताने के लिए घाट एक प्रसिद्ध स्थान रहा है। घाट की सुबह की आरती बेहद ही शानदार होती है, देखने के लिए वैसे आपको सुबह जल्दी उठना पड़ेगा।
मणिकर्णिका घाटकहा जाता है की इंसान के मरने के बाद उसका दोबारा जन्म होता है और यह जीवन का जन्म-मृत्यु का चक्र हमेशा चलता रहता है। इसी जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए आत्मा को मोक्ष मिलना बहुत जरूरी होता है। हिन्दू धर्म में मणिकर्णिका घाट हिन्दुओ के लिए मोक्ष का स्थान है। मान्यता यह है की मृत्यु के बाद जिसका शव मणिकर्णिका घाट पे जलाया जाता है उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाती है और उसको जन्म-मृत्यु के चक्र से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। इस घाट पे चिता की आग कभी शांत नहीं होती है, हर वक़्त किसी न किसी शव का दाह-संस्कार हो रहा होता है।
संकट मोचन हनुमान मंदिर संकट मोचन हनुमान मंदिर अस्सी नदी के किनारे स्थित है और 1900 के दशक में स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा बनाया गया था। यह भगवान राम और हनुमान को समर्पित है। वाराणसी हमेशा संकट मोचन मंदिर से जुड़ा हुआ है और इस पवित्र शहर का एक अनिवार्य हिस्सा है। वाराणसी आने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस मंदिर में जाता है और हनुमान के दर्शन जरूर करता है। इस मंदिर में चढ़ाए जाने वाले लड्डू स्थानीय लोगों के बीच अनिवार्य रूप से प्रसिद्ध हैं। संकट मोचन का दौरा करते समय उन बंदरों से सावधान रहें जो मंदिर परिसर में आते हैं और प्रसाद को चुरा लेते हैं।
धमेख स्तूपधमेख स्तूप वाराणसी के सारनाथ में स्थित है। यह स्तूप सम्राट अशोक के समय में बना था। ऐसा माना जाता है की डिअर पार्क में स्थित धमेख स्तूप ही वह स्थान हैं जहाँ महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था। धमेख स्तूप एक ठोस गोलाकार बुर्ज की तरह दिखता है। इसका व्यास 28.35 मीटर (93 फुट) और ऊँचाई 39.01 मीटर (143 फुट) है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए कुछ खास नियम बनाये गए हैं जैसे कि स्तूप परिसर में हैं शांत रहना साथ ही चप्पल या जूते पहन के अंदर नहीं आना, इसके अलावा मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल भी यहां मना किया जाता है। यह भी एक वाराणसी में घूमने की जगह है, जहाँ आकर आपको हमारे इतिहास के कई पन्ने पलटने का मौका मिलता है।