किलों, झीलों, हेरिटेज हवेलियों और प्रकृति भंडार के चलते पर्यटन का केन्द्र है अलवर, फिर भी प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार

अलवर भारत के राजस्थान राज्य का एक नगर है। अलवर नगर दिल्ली से 150 किमी दक्षिण में और जयपुर से 160 किमी उत्तर में स्थित है। यह भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है व राजस्थान में अलवर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। अलवर कई किलों, झीलों, हेरिटेज हवेलियों और प्रकृति भंडार के साथ पर्यटन का एक केंद्र है। यह नगर राजस्थान के जयपुर अंचल के अंतर्गत आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 160 किमी की दूरी पर है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। अलवर के प्राचीन नाम 'मत्स्यनगर', 'अरवलपुर', 'उल्वर', ' शालवापुर', 'सलवार', 'हलवार ' रहे हैं। यह चारदीवारी और खाई से घिरे नगर में एक पर्वतश्रेणी की पृष्ठभूमि के सामने शंक्वाकार छन्द की पहाड़ी पर स्थित बाला क़िला इसकी विशिष्टता है। 1775 में इसे अलवर रजवाड़े की राजधानी बनाया गया था। वर्तमान में अलवर राजस्थान का महत्त्वपूर्ण औद्योगिक नगर है तथा आठवाँ बड़ा नगर है। अलवर को राजस्थान का सिंह द्वार भी कहते हैं। अलवर यादव बाहुल्य जिला है। मतस्य प्रदेश अथवा अलवर का राठ क्षेत्र (बहरोड, बानसूर तथा नीमराना और मुंडावर का क्षेत्र) पूरे जिले में अपना अलग ही प्रभाव रखता है। राठ के बारे में एक बात कही जाती है ना राठ नवै, ना राठ मनै। अर्थात् राठ ना तो झुकाने से झुकता है और ना ही मनाने से मानता है ,राठ क्षेत्र अपनी मर्जी से चलता है।

अलवर के पर्यटन स्थल

पूरे अलवर को एक दिन में देखा जा सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं, कि अलवर में देखने लायक ज्यादा कुछ नहीं है। अलवर ऐतिहासिक इमारतों से भरा पड़ा है। यह दीगर बात है कि इन इमारतों के उत्थान के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। इसका जीता जागता उदाहरण है नगर की सिटी पैलेस इमारत। इस पूरी इमारत पर सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, कहने मात्र के लिए इसके एक तल पर संग्रहालय बना दिया गया है, विजय मंदिर पैलेस पर अधिकार को लेकर कानूनी लडाई चल रही है। इसी झगडे के कारण यह बंद पड़ा है, बाला किला पुलिस के अधिकार में है। फतहगंज के मकबरे की स्थिति और भी खराब है, सब कुछ गार्डो के हाथों में है, वे चाहें तो आपको घूमने दें, या मना कर दें। घूमने के लिहाज से अलवर की स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं, पर अलवर का सौन्दर्य पर्यटकों को बार-बार यहाँ आने के लिए प्रेरित करता है। यह गुज्जर किला है।

फतहगंज गुम्बद

फतहगंज का मकबरा पाँच मंजिला है और दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है। खूबसूरती के मामले में यह हूमाँयु के मकबरे से भी सुन्दर है। यह भरतपुर रोड के नजदीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित है। यह मकबरा एक बगीचे के बीच में स्थित है और इसमें एक स्कूल भी है। यह प्राय 9 बजे से पहले भी खुल जाता है। इसे देखने के बाद रिक्शा से मोती डुंगरी जा सकते हैं। मोती डुंगरी का निर्माण 1882 में हुआ था। यह 1928 तक अलवर के शाही परिवारों का आवास रहा। महाराजा जयसिंह ने इसे तुड़वाकर यहाँ इससे भी खूबसूरत इमारत बनवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने यूरोप से विशेष सामान मंगाया था, लेकिन दुर्भाग्यवश जिस जहाज में सामान आ रहा था, वह डूब गया। जहाज डूबने पर महाराज जयसिंह ने इस इमारत को बनवाने का इरादा छोड़ दिया। इमारत न बनने से यह फायदा हुआ कि पर्यटक इस पहाड़ी पर बेरोक-टोक चढ़ सकते हैं और नगर के सुन्दर दृश्य का आनंद ले सकते हैं।

पुर्जन विहार

यह एक खूबसूरत बाग है, जिसके बीच में एक बड़ा हरित हाऊस है जिसे शिमला कहा जाता है। महाराज शियोधन सिंह ने 1868 में इस बगीचे को बनवाया और महाराज मंगल सिंह ने 1885 में शिमला का निर्माण कराया। इस बगीचे में अनेक छायादार मार्ग हैं और कई फव्वारे लगे हुए हैं। आगे दिया शीर्षक कंपनी बाग़ इसी का वर्णन है।

कम्पनी बाग

कम्पनी बाग साल के बारह मास खुला रहता है। शिमला (हरित हाउस) में घूमने का समय सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है। कम्पनी बाग देखने के बाद आप चर्च रोड की तरफ जा सकते हैं। यहां सेंट एन्ड्रयू चर्च है लेकिन यह अक्सर बंद रहता है। इस रोड के अंतिम छोर पर होप सर्कल है, यह नगर का सबसे व्यस्त स्थान है और यहां अक्सर ट्रैफिक जाम रहता है। इसके पास ही बहुत सारी दुकानें हैं और बीच में ऊपर एक शिव मंदिर है। होप सर्कल से सात सड़कें विभिन्न स्थलों तक जाती हैं। एक घंटाघर तक जाती है जहाँ पर कलाकंद बाजार भी है। एक सड़क त्रिपोलिया गेट से सिटी पैलेस कॉम्पलेक्स तक जाती है। त्रिपोलिया में कई छोटे-मोटे मंदिर हैं। सिटी पैलेस की तरफ जाते हुए रास्ते में सर्राफा बाजार और बजाजा बाजार पड़ते हैं। यह दोनों बाजार अपने सोने के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध हैं।

सिटी पैलेस

सिटी पैलेस एक खूबसूरत परिसर है: गेट के पीछे एक मैदान में कृष्ण मंदिर हैं। इसके बिल्कुल पीछे मूसी रानी की छतरी और अन्य दर्शनीय स्थल हैं। इस महल का निर्माण 1793 में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। पर्यटक इसकी खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। पूरी इमारत में जिलाधीश और पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट आदि के सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है। वैसे इस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर तीन हॉल्स में विभक्त संग्रहालय भी है जिसे देखने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक है, शुक्रवार को अवकाश रहता है। पहले हॉल में शाही परिधान और मिट्टी के खिलौने रखे हैं, दूसरे हॉल में मध्य एशिया के अनेक जाने-माने राजाओं के चित्र लगे हुए हैं। इस हॉल में तैमूर से लेकर औरंगज़ेब तक के चित्र लगे हुए हैं। तीसरे हॉल में आयुद्ध सामग्री प्रदर्शित है। इस हॉल का मुख्य आकर्षण अकबर और जहांगीर की तलवारें हैं। इसी संग्रहालय की 'एक मियान में दो तलवार' यहाँ का विशेष आकर्षण है।

सिटी पैलेस के बिल्कुल पीछे एक छोटा खूबसूरत जलाशय है, जिसे सागर कहते हैं। इसके चारों तरफ दो मंजिला खेमों का निर्माण किया गया है। तालाब के पानी तक सीढियाँ बनी हैं। इस जलाशय का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता था। यहां कबूतरों को दाना खिलाने की परंपरा है। जलाशय के साथ मंदिरों की एक शृंखला भी है। दायीं तरफ राजा बख्तावर सिंह का स्मारक और शहीदों की याद में बना संगमरमर का स्मारक भी है। इसका नाम राजा बख्तावर सिंह की पत्नी मूसी रानी के नाम पर रखा गया है, जो राजा बख्तावर सिंह की चिता के साथ सती हो गई थी।

विजय मंदिर झील महल

यह खूबसूरत महल 1918 में बनाया गया था। यह महाराजा जयसिंह का आवास था। इसका ढांचा परंपरागत इमारतों से बिल्कुल अलग है। इसके अंदर एक राम मंदिर भी है। सामने से पूरी तरह दिखाई नहीं देता लेकिन इसके पीछे वाली झील से इस महल का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। महल को देखने के बाद झील के साथ वाले मार्ग से बाल किला पहुंचा जा सकता है। ऑटो वाले इन दोनों स्थलों तक पहुंचाने के लिए 200 रु लेते हैं। पारिवारिक झगड़े के कारण यह महल आजकल बंद है, यहां पर्यटकों को घूमने की अनुमति नहीं है।

बाला किला, अलवर

सिटी पैलैस परिसर अलवर के पूर्वी छोर की शान है। इसके ऊपर अरावली की पहाड़ियाँ हैं, जिन पर बाला किला बना है। बाला किले की दीवार पूरी पहाड़ी पर फैली हुई है जो हरे-भरे मैदानों से गुजरती है। पूरे अलवर नगर में यह सबसे पुरानी इमारत है, जो लगभग 928 ई० में निकुम्भ राजपूतों द्वारा बनाई गई थी। अब इस किले को देख नहीं सकते, क्योंकि इसमें पुलिस का वायरलैस केन्द्र है। अलवर अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से यहां तक अच्छा सड़क मार्ग है। दोनों तरफ छायादार पेड़ लगे हैं। रास्ते में पत्थरों की दीवारें दिखाई देती हैं, जो बहुत ही सुन्दर हैं। किले में जयपोल के रास्ते प्रवेश किया जा सकता है। यह सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। कर्णी माता का मंदिर इसी के रास्ते में है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह मंगलवार और शनिवार की रात को 9 बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश करने के लिए तब पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं पडती। पर्यटकों को केवल संतरी के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना होता है। इसके बाद वह किले में घूम सकते हैं। आपातकाल के समय आप पर्यटक सुपरिटेण्डेन्ट के कार्यालय में फोन कर सकते हैं।

जय समन्द झील

हरी-भरी पहाडियाँ केवल अलवर में ही नहीं है, इसके पास के इलाकों में भी अनेक खूबसूरत झीलें और पहाडियाँ हैं। यहाँ घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून है। नगर के सबसे करीब जय समन्द झील है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने 1910 में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था। झील के साथ वाले रोड पर केन से बने हुए घर बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह झील का सबसे सुन्दर नजारा है। जय समन्द रोड बहुत ही परेशान करने वाला है। अत: जय समन्द, सिलीसेड और अलवर घूमने के लिए ऑटो के स्थान पर टैक्सी लीजिए। यह चार-पांच घंटे में आपको अंतर्राज्यीय बस अड्डे से अलवर पहुंचा देगी। इसके लिए टैक्सी वाले पर्यटकों से 500 रु लेते हैं। झील के पास रुकने की कोई व्यवस्था नहीं है।

सिलीसेढ झील

सिलीसेड झील अलवर की सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर झील है। इसका निर्माण महाराव राजा विनय सिंह ने 1845 में करवाया था। इस झील से रूपारल नदी की सहायक नदी निकलती है। मानसून में इस झील का क्षेत्रफल बढ़कर 10.5 वर्ग किमी हो जाता है। झील के चारों ओर हरी-भरी पहाडियाँ और आसमान में सफेद बादल मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इस झील को राजस्थान का नंदनकानन भी कहते हैं इस झील की भराव क्षमता लगभग 28 फीट है। वर्षा ऋतु में यहाँ पर बहुत पर्यटक आते हैं। इस झील के पूर्व दिशा में एक अन्य झील जयसमंद स्थित है।

कुण्डला

कुण्डला गाँव चारों ओर से पर्वत से घिरा हुआ है। यहाँ का दृश्य बहुत हरा-भरा रहता है। इस स्थान को गरबा जी भी कहा जाता है । यह स्थान पर्वतारोहियों के लिये भी विख्यात है। विभिन्न प्रकार की कैडैट्स यहाँ पर पर्वत रोहण के लिए आते हैं । यहाँ पर एक झरना भी है जिसमें नहा कर लोग आनंद की अनुभूति करते हैं।

झिलमिलदेह झील अजबगढ

दौसा अलवर वाया अजबगढ थानागाजी रोड़ पर यह झील चारों ओर से अरावली श्रृंखलाओं से घिरे अजबगढ बाँध के एकदम नीचे ( नहर क्षेत्र में ) स्थित है यहाँ पर एक छोटा सा घाट बना हुआ है जहाँ पर लोग कूद-कूद कर नहाने का मौका नहीं गवाँते हैं। लेकिन वर्तमान में वर्षा के अभाव की वजह से यह झील अपना अस्तित्व बचाने की मुश्किल में है। इस झील के एक तरफ भारत की जानी पहचानी पाँच सितारा होटल अमनबाघ है जो विदेशी पर्यटकों को अजबगढ भानगढ की ऐतिहासिक धरा पर बुलाने के लिए विश्व विख्यात है। वर्षा के दिनों में यदि अजबगढ बाँध पूर्ण रूप से भर जाए तो यहाँ का दृश्य मुम्बई और शिमला दोनों के मिश्रण जैसा हो जाता है क्योंकि अजबगढ बाँध समुद्र जैसा दृश्य दिखाने व इसके अन्दर पुरानी छत्तरियाँ टापू की तरह और बाँध के ऊपरी छोर पर अजबगढ के 27 गुवाड़ा (गाँव) बसे हुए हैं जिसमें गुवाड़ा बिरकड़ी की सीमाओं में पाँच सितारा होटल अमनबाग है जो प्रकृति की छँटाओं का आनंद लेने का अनोखा स्थान है। इसके अलावा अलवर में नैहड़ा की छतरी जिसमें मुख्यतः अजबगढ, प्रतापगढ व थानागाजी के ऐतिहासिक खण्डर व किले महल शामिल हैं, ऐतिहासिक नगर भानगढ, पवित्र पूजनीय धाम नारायणी माता व ऋषि पाराशर महाराज का मंदिर है जो एक आस्था के साथ प्रकृति का सौंदर्य लिये क्षेत्रीय लोगों के दिलों में बसा हुआ है। यहाँ का सुप्रसिद्ध नारायणी माता का मंदिर सती धाम है जिसकी शक्ति का आभास वहाँ जाते ही हो जाता है, क्योंकि माँ की शक्ति की वजह से मंदिर के आगे आज भी पवित्र जल धारा बहती है जो नदी नाले से नहीं बल्कि समतल धरा से अपने आप निकल रही है, खास बात यह है कि यह धारा रूकी हुई नहीं बल्कि लगातार गतिशील है राजस्थान में यह धाम श्रद्धा के लिए व मनोकामना के लिए सुप्रसिद्ध है।