आने वाले दिनों में 21 जून को साल 2020 का सबसे बड़ा सूर्यग्रहण लगने जा रहा हैं। सुबह 9 बजकर 15 मिनट और 58 सेकंड पर इसकी शुरुआत होनी हैं और इससे 12 घंटे पहले से ही सूतक काल की शुरुआत हो जाती हैं। सूतक काल के दौरान मंदिरों को भी बंद रखा जाता हैं ताकि ग्रहण का असर भगवान की मूर्ती पर ना पड़े। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ मंदिर ऐसे हैं जिन्हें ग्रहण के दौरान भी बंद नहीं रखा जाता हैं। तो आइये जानते हैं उन मंदिरों के बारे में। कालाष्ठी स्थित कालहटेश्वर मंदिर
ग्रहण के वक्त देश के सभी मंदिर जहां बंद कर दिए जाते हैं वहीं एक मंदिर ऐसा है जहां पूजा-पाठ होती रहती है। यह दक्षिण भारत के श्री कालाष्ठी में स्थित कालहटेश्वर मंदिर है। यह देश का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां राहु और केतु की पूजा होती है, इसलिए ग्रहण के वक्त इस मंदिर को बंद नहीं किया जाता है। बताते हैं कि कालसर्पदोष से पीड़ित लोग भी इस मंदिर में आते हैं। यहां पर राहु-केतु के साथ-साथ कालसर्प की भी पूजा होती है। यहां पर भक्त राहु-केतु की पूजा के बाद भगवान शिव और देवी ज्ञानप्रसूनअंबा की भी पूजा करते हैं। उज्जैन का महाकाल मंदिर
ग्रहण के वक्त उज्जैन के महाकाल मंदिर के कपाट भी बंद नहीं होते हैं। हालांकि यहां ग्रहण के दौरान शिवलिंग को स्पर्श नहीं करते और पूजापाठ व भोग नहीं लगता। मगर मंदिर के कपाट को खोलकर रखा जाता है। इसके पीछे मान्यता यह है कि सूर्य या चंद्रग्रहण के दौरान वैष्णव मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और शैव मंदिरों के कपाट खुले रहते हैं। ग्रहण की अवधि समाप्त होने के बाद पूरे मंदिर को गंगाजल छिड़ककर उसका शुद्धिकरण किया जाता है और उसके बाद पूजापाठ के कार्य आरंभ किए जाते हैं। ग्रहण के दौरान पुजारी भी मंदिर के अंदर ही रहते हैं और जप करते हैं। ग्रहण के बाद यहां पर भक्त शिप्रा नदी में स्नान करके खुद को पवित्र करते हैं।