आज भी अस्तित्व में हैं महाभारत काल की ये जगह, जानें इनसे जुड़े रहस्य

पुराणों में महाभारत की पौराणिक कथा सुनने को मिलती हैं जिसमें कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच धर्मयुद्ध हुआ और पांडवों ने जीत दर्ज की। महाभारत प्राचीन भारत के दो प्रमुख महाकाव्यों में से एक हैं। महाभारत हमेशा से रहस्य से भरी कहानियों और पात्रों के लिए जाना गया हैं। माना जाता हैं कि आज से 5000 साल पहले महाभारत का युद्ध हुआ था, लेकिन आज भी उस समय से जुड़ी जगहें अस्तित्व में हैं। आज इस कड़ी में हम आपको महाभारत काल की उन्हीं जगहों की जानकारी देने जा रहे हैं जिन्हें आप आज भी देख सकते हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में...

व्यास गुफा

व्यास गुफा उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में स्थित है। यह ब्रदीनाथ से 5 किलोमीटर दूर है। यह सरस्वती नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन गुफा है। आपको बता दें कि माणा भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित भारत का आखिरी गांव है। ऐसा माना जाता है कि ऋषि व्यास ने भगवान गणेश की मदद से यहां महाभारत की रचना की थी। यहां गुफा में व्यास की मूर्ति भी स्थापित है। वहीं पास में ही गणेश जी की गुफा भी है। माणा वह जगह है जहां से होकर पांडव स्वर्गरोहिणी तक गए थे।

कामख्या

गुवाहाटी से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामख्या एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। भागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर बदहवाश इधर-उधर भाग रहे थे, तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के कई टुकड़े कर दिए। सती के अंगों के 51 टुकड़े जगह-जगह गिरे और बाद में ये स्थान शक्तिपीठ बने। कामख्या भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है।

पांडुकेश्वर

पांडुकेश्वर गांव उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। मान्यता है कि जोशीमठ से लगभग 20 किलोमीटर और बद्रीनाथ से करीब 25 किलोमीटर दूर इसी गांव में पांच पांडवों का जन्म हुआ था और राजा पांडु की मृत्यु भी हुई थी। कहते हैं कि यहां राजा पांडु ने मोक्ष प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है कि पांडवों के पिता राजा पांडु ने संभोग कर रहे 2 हिरणों को मारने के बाद श्राप का प्रायश्चित करने के लिए यहां तपस्या की थी। वह दो हिरण ऋषि और उनकी पत्नी थे। उत्तराखंड की राजधानी दहरादून या फिर ऋषिकेश से आप यहां पर आसानी से पहुंच सकते हैं।

उज्जानिक

महाभारत में जिस उज्जानिक नामक स्थान का जिक्र किया गया है वह वर्तमान काशीपुर है जो उत्तराखंड में स्थित है। यहां पर गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों और पांडवों को शिक्षा दिया था। यहां स्थित द्रोणसागर झील के बारे में कहा जाता है कि पांडवों ने गुरु दक्षिणा के तौर पर इस झील का निर्माण किया था।

वृंदावन

महाभारत काल का वृन्दावन आज भी इसी नाम से जाना जाता है। मथुरा से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित, वृंदावन भगवान कृष्ण भक्तों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, यह वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के अधिकांश दिन गोपियों के साथ खेलते हुए बिताए थे। यहां आपको कृष्ण और राधा को समर्पित कुछ सबसे खूबसूरत मंदिर देखने को मिल जाएंगे।

बरसाना

ऐसा कहा जाता है कि मथुरा शहर में स्थित, बरसाना वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण, मोर के वेश में, अपनी राधा का दिल जीतने के लिए यहां नृत्य किया करते थे। अगर आप इस जगह पर जाते हैं, तो आपको राधा रानी श्रीजी मंदिर मिलेगा जो राधा कृष्ण को समर्पित है, जहां हजारों भक्त देखे जा सकते हैं। बरसाना में होली पर लट्ठमार उत्सव के दौरान एक ये जगह भव्य उत्सव स्थल में बदल जाती है।

हस्तिनापुर

महाभारत में सबसे ज्यादा महत्व अगर किसी जगह को दिया गया है, तो वो है हस्तिनापुर क्योंकि हस्तिनापुर कौरवों का राज्य हुआ करता था और महाभारत कथा हस्तिनापुर के आसपास ही घूमती है। ये तो आप सभी जानते होंगे हस्तिनापुर के लिए ही महाभारत का युद्ध हुआ था। ये जगह अभी मेरठ शहर में बसी हुई है। मेरठ शहर में स्थित हस्तिनापुर कुरु वंश की राजधानी थी। इस स्थान ने हर तरह के गौरवशाली दिनों को देखा और मनाया है। आज, यह भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।

वाणगंगा

कुरुक्षेत्र से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बाणगंगा। कहा जाता है कि महाभारत के भीषण युद्ध में घायल पितामह भीष्म को यहां बाण-सैय्या पर लिटाया गया था। महाभारत कथा के अनुसार भीष्मपितामह ने प्यास लगने पर जब जल माँगा तो अर्जुन ने अपने बाण से धरती पर प्रहार किया और गंगा की धारा फूट पड़ी। तभी से इस स्थान को वाणगंगा कहा जाता है।

कुरुक्षेत्र

अंबाला शहर में स्थित, ये वो स्थान है जहां महाकाव्य महाभारत युद्ध सीधे 18 दिनों तक चला था। ये जगह उन वीरों का साक्षी रही है जिन्होंने धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। शास्त्रों की मानें तो भगवान ब्रह्मा ने एक बार यहां एक अनुष्ठान किया था, यहां ब्रह्म सरोवर नामक एक तालाब भी है, जहां अभी तक भक्त सूर्य ग्रहण के दौरान पवित्र स्नान करने के लिए आते हैं।

इंद्रप्रस्थ

नई दिल्ली में स्थित, इंद्रप्रस्थ पांडवों की राजधानी के रूप में काम करता था। हस्तिनापुर से निकाले जाने के बाद पांडवों ने इंद्रप्रस्थ को ही अपनी राजधानी बना लिया था। शास्त्रों की मानें तो पांडवों ने खांडवप्रस्थ (जंगल) को नष्ट कर दिया था, जिस पर इंद्रप्रस्थ स्थित था। यह भी माना जाता है कि तब मौजूद इंद्रप्रस्थ की भूमि ठीक वही थी जहां आज पुराना किला खड़ा है।

पंच केदार

महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने भाइयों के साथ किए गए पापों से मुक्त होना चाहते थे। उन्होंने क्षमा मांगने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की थी, लेकिन शिव जी ने उन लोगों से नहीं मिले और हिमालय की तरफ रवाना हो गए। गुप्तकाशी की पहाड़ियों पर शिव जी को देखने के बाद पांडवों ने बैल को उसकी पूंछ से पकड़ने की कोशिश की, लेकिन बैल गायब हो गया और बाद में पांच स्थानों पर फिर से प्रकट हुआ। पांडवों ने इन सभी पांच स्थानों पर शिव मंदिरों की स्थापना की है और इन्हें ही पंचकेदार कहते हैं।