पूरी दुनिया में भारत को अपने पर्यटन के लिए जाना जाता हैं जहां एक से बढ़कर एक अनोखी कलाकृति, भव्य और खूबसूरत इमारतें देखने को मिलती हैं। इन इमारतों में कुछ किले हैं तो कुछ मंदिर। आज हम बात करने जा रहे हैं मस्जिदों की। मस्जिद खुदा की इबादतगाहें हैं। भारत में ऐसी कई मस्जिदें हैं, जो अपनी स्थापत्य, डिजाइन और अपनी कई आकर्षित वास्तुकला के लिए जानी जाती हैं। आज इस कड़ी में हम आपको देश की कुछ ऐसी ऐतिहासिक मस्जिदों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी खूबसूरती सभी को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। ये मस्जिदें पुराने वास्तुशिल्प और कला को बेहद खूबसूरती से बयां करती हैं। पर्यटन के लिए जाते हैं, तो आपको इनका दीदार जरूर करना चाहिए। आइये जानते हैं देश की इन खूबसूरत मस्जिदों के बारे में...
भोपाल की ताज-उल-मस्जिदभोपाल की ताज-उल-मस्जिद भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है। इस आलीशान मस्जिद की संरचना बेहद आकर्षक और भव्य है। यह मस्जिद करीब 5।68 एकड़ जमीन पर बनाई गई है। भोपाल में ताज-उल-मस्जिद को गुलाबी मस्जिद भी कहा है, जिसके कीमती पत्थरों को सीरियाई मस्जिद से लाया गया था। इस मस्जिद को काफी अलग तरीके से बनाया गया है, इसकी अनोखी बनावट ही इसे देखने में बेहद खूबसूरत और आकर्षक बनाती है। यहां आपको कई इस्लामिक शिलाएं और विशाल मीनारे भी देखने को मिलती है।
दिल्ली की जामा मस्जिदशायद आप में से बहुत काम लोगों को इस मस्जिद का असल नाम मालूम नहीं होगा। दिल्ली की जामा मस्जिद का असल नाम 'मस्जिद-ए-जहान नुमा' है। 1650 से 1656 के बीच इस मस्जिद का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहां ने करवाया था। उस वक़्त इसके निर्माण में क़रीब दस लाख रूपए का ख़र्च आया था। मस्जिद के निर्माण में लाल पत्थर और सफ़ेद मार्बल का इस्तेमाल किया गया और क़रीब पच्चीस हज़ार मजदूरों ने इस काम में हिस्सा लिया था। मस्जिद का उद्द्घाटन बुख़ारा (उज़्बेकिस्तान) के सैयद अब्दुल ग़फ़ूर शाह बुख़ारी ने किया था। लेकिन देश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान रख-रखाव के अभाव में मस्जिद की हालत खराब हो गई थी। 1948 में मस्जिद के एक चौथाई हिस्से की मरम्मत के लिए हैदराबाद के सातवें निजाम से 75000 रूपए की मांग की गई थी। लेकिन निज़ाम ने कुल तीन लाख रूपए दिए। उनका कहना था कि मैं यह नहीं चाहता के मस्जिद का सिर्फ एक चौथाई हिस्सा ख़ूबसूरत लगे।
अहमदाबाद की जामा मस्जिदजामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी और प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक है, जिसे बादशाह सुल्तान अहमद शाह ने बनवाया था। जामा मस्जिद देखने में बहुत खूबसूरत लगती है, इस मस्जिद की विशेषता है, की इस में बादशाह सुल्तान की रानी और बेटे की कब्र है। इसके अलावा यहां की इंडो-इस्लामिक वास्तुकला देखने में काफी आकर्षक और यादगार है।
हैदराबाद की मक्का मस्जिदभारत की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक, मक्का मस्जिद 1694 में मक्का से निर्यात की गई मिट्टी और ईंटों से बनी है। 75 फीट ऊंची मस्जिद में एक समय में 10,000 लोगों को समायोजित करने की क्षमता है। मस्जिद चौमहल्ला पैलेस, लाड बाजार और चारमीनार के ऐतिहासिक स्थलों के पास स्थित है। अब आप सोच रहे होंगे के मस्जिद का नामा 'मक्का मस्जिद' क्यों है ? तो हम आपको बताते हैं। क़ुतुब शाही राजवंश के पांचवें शासक मोहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह ने मस्जिद निर्माण के लिए मुसलमानों के पवित्र शहर मक्का से मिट्टी मंगाई थी। मस्जिद के केंद्रीय कमान में उसी मिट्टी से बनी ईंट को लगाया गया है।
बैंगलोर की जुम्मा मस्जिदजुम्मा मस्जिद सफेद रंग के खूबसूरत पत्थरों से निर्मित है, जिसे 1790 में टीपू सुल्तान को समर्पित कर बनवाया गया था। यहां रमजान के महीने में लाखों लोग मन्नत मांगने आते हैं, जिसकी काफी मान्यता है। आप रमजान के महीने में यहां का प्लान बना सकते हैं।
आगरा की जामा मस्जिदमुगल बादशाह शाहजहां ने अपने दौर में निर्माण कार्यों पर खूब ध्यान दिया। उसी का एक उदाहरण आगरा की जामा मस्जिद है। शाहजहां ने अपने बड़ी बेटी जहान आरा की याद में 1648 में इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस मस्जिद को'जामी मस्जिद' भी कहते हैं। मस्जिद की पश्चिमी दीवार की मेहराबें निहायत ही खूबसूरत हैं। इस मस्जिद के दिलकश नज़ारे की वजह से ही इसकी तुलना सातवें आसमान पर मौजूद मोतियों और माणिक से बनी मस्जिद 'बैतुल-मामूर' से की जाती है।
लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ालखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा देखने में खूबसूरत होने के साथ साथ काफी बड़ा है, जिसे देश की सबसे बड़ी इमारतों में गिना जाता है। इस खूबसूरत और आकर्षक इमारत को लखनवी ईटों से तैयार किया गया है, जो देखने में काफी अलग और हटकर लगती है।
अजमेर स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़ाअजमेर शरीफ की दरगाह के बारे में आपने जरूर सुना होगा, यहां देशभर से लाखों लोग मन्नत मांगने और घूमने आते हैं। नाम सुनकर बड़ा ही अजीब लगता है और झोपड़ा शब्द सुनकर मन में किसी झोपड़े की ही आकृति बनती है, लेकिन अजमेर स्थित इस मस्जिद का नाम यही है अढाई दिन का झोपड़ा। कमाल की बात है कि इसके नाम के साथ ही इसके निर्माण को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। जैसे की नाम से ही पता चलता है कि इसे बनाने में तकरीबन ढाई दिन का समय लगा, तो इसे अढाई दिन का झोपड़ा कहा जाने लगा। वहीं दूसरे लोग यह मानते हैं कि यहां चूंकि ढाई दिन का मेला लगता है कि इसलिए इसे अढाई दिन का झोपड़ा कहा गया। बहरहाल, भारतीय इस्लानमिक समुदाय में यह एक मुख्य स्थान रखती है। इस मस्जिद को मोहम्मद गौरी ने 1198 में बनवाया था।