श्री सालासर बालाजी मंदिर को लेकर भक्तों में है गहरी आस्था, जानें इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

भारत देश में मंदिरों का बहुत महत्व हैं और हर मंदिर से जुड़ी अपनी अनोखी कहानी हैं। भक्तगण अपनी आस्था दिखाते हुए मंदिर के दर्शन करने पहुंचते हैं। ऐसा ही एक मंदिर हैं राजस्थान में श्री सालासर बालाजी का जिसके प्रति भक्तों में गहरी आस्था है।

सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के चूरू जिले की सुजानगढ़ पंचायत समिति के अंतर्गत आता है। राजस्थान के सीकर जिले से सालासर की दूरी मात्र 55 किलोमीटर है। सुजानगढ़ से सालासर की दूरी मात्र 27 किलोमीटर है।

राजस्थान की राजधानी जयपुर से सालसर की दूरी मात्र 171 किलोमीटर है। सालासर के पास घूमने की बात करें तो यहां हर्ष भेरू, जीणमाता, शाकम्भरी माता, लोहागर्जी, खाटू श्याम जी पर्यटक स्थल हैं।

श्री सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के सबसे बड़े धार्मिक तीर्थ स्थल में एक माना जाता है। सालासर बालाजी मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की यहाँ पर हनुमान जयंती के समय लगने वाले लक्खी मेले में सालासर बालाजी के दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु सालासर आते है।

सालासर बालाजी मंदिर निर्माण की कहानी संत मोहनदास जी और सालासर से 31 किलोमीटर दूर स्थित आसोटा गाँव में जमीन से प्रकट हुई हनुमानजी की प्राचीन मूर्ति से जुड़ी हुई है।

सालासर बालाजी मे लगने वाले विशाल मेले

सालासर बालाजी मंदिर में प्रति वर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है। यहाँ लगने वाले मेलों के समय लाखों की संख्या में श्रद्धालु बालाजी के दर्शन करने के लिए सालासर आते है। सालासर में पहला मेला साल के अप्रैल माह में आने हनुमान जयंती के समय लगता है। उसके बाद अक्टूबर महीने में शरद पूर्णिमा के समय भी सालासर में बहुत विशाल मेला लगता है। इन दोनों प्रमुख मेलों के अलावा हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहार होली, दिवालज और विजया दशमी के समय भी बहुत भारी संख्या में श्रद्धालु बालाजी के दर्शन करने के लिए सालासर आते है।

बाबा मोहन दास जी की समाधि

सालासर बालाजी मंदिर के मुख्य परिसर में उनके परम भक्त बाबा मोहनदास जी की समाधि बनी हुई है। मान्यता है कि मोहनदास जी की समाधि के दर्शन किये बिना सालासर बालाजी के दर्शन पूरे नहीं माने जाते है।

मोहनदास जी अपनी बहन कान्ही की सेवा करने के लिए ही सालासर आये थे। सालासर में बालाजी के मंदिर निर्माण के कुछ समय बाद ही उनकी बहन कान्ही का देहांत हो गया था। अपनी बहन की मृत्यु के कुछ समय बाद मोहनदास जी ने भी जीवित समाधि ले ली। ऐसा कहते है कि मोहनदास जी अपनी बहन की सेवा के लिए यहाँ आये थे और आज भी अपनी बहन की सेवा के लिए यहाँ पर है।

श्रद्धालुओं में ऐसा विश्वास है कि वह समाधि के रूप के आज भी यहाँ विराजमान है, समाधि लेने से पहले मोहनदास जी ने अपना चोला और बालाजी की पूजा का अधिकार अपने भांजे उदय को दे दिया था। आज भी सालासर बालाजी मंदिर में मोहनदास जी की समाधि पर मोहनदास जी की मंगल स्तुति का पाठ किया जाता है।

सालासर बालाजी की धूनी

सालासर बालाजी मंदिर से जुडी हुई मान्यता के अनुसार यहाँ पर बालाजी के दर्शन करने के बाद सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। मंदिर परिसर में हनुमान जी की धूनी भी है जिसके लिए यह माना जाता है बालाजी के दर्शन करने के बाद धूनी के धोक लगाना बहुत जरुरी माना जाता है।

श्रद्धालु मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से अंदर आने के बाद सबसे पहले धूनी के धोक लगा सकते है, और दर्शन के बाद भी धूनी के धोक लगा सकते है। ऐसा माना जाता है की धूनी की भभूत से हजारों तरह की बीमारियों का इलाज हो जाती है। यहाँ पर आने वाले अनेक श्रद्धालु लोहे की कील अपने साथ लेकर जाते है। श्रद्धालु अपनी साथ लाई हुई कील को धूनी के ऊपर से घुमा कर अपने घर के चारों कोनों में गाड़ देते है। श्रद्धालुओं में ऐसा विश्वास है की ऐसा करने पर घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। कई भक्त धूनी की भभूत को प्रसाद स्वरुप मान कर अपने घर भी लेकर जाते है।

माता अंजनी का मन्दिर सालासर बालाजी

बालाजी के मुख्य मंदिर से मात्र 2 किलोमीटर की दुरी पर स्थित अंजनी माता का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। अंजनी माता से जुडी हुई एक पौराणिक कथा के अनुसार रामायण के समय माता अंजनी ने अपनी दूध की धार से एक पहाड़ को चूर-चूर कर दिया था। मंदिर में अंजनी माता का विग्रह ऐसा है जिसमे माता अंजनी हनुमानस जी को अपनी गोद में बिठाये हुए है। माता जी के विग्रह के एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में कलश है।

श्रद्धालुओं द्वारा ऐसा माना जाता है की माता के दर्शन करने पर सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिल जाती है। अपने विवाह के बाद महिलाएं यहाँ सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करती है। स्थानीय लोगों के रीति रिवाज के अनुसार विवाह का सबसे पहला निमंत्रण अंजनी माता को दिया जाता है, ताकि वर-वधु दोनों का वैवाहिक जीवन सुखी रहे। सालासर में अंजनी माता मंदिर का जीर्णोद्धार 1963 में करवाया गया था।

सालासर बालाजी दर्शन का सबसे अच्छा समय

वर्ष में अक्टूबर से अप्रेल तक का समय सालासर बालाजी के दर्शन करने के लिए मौसम के हिसाब से सबसे अच्छा समय समझा जाता है। वैसे तो पुरे साल सालासर बालाजी महाराज के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। लेकिन सप्ताह में मंगलवार और शनिवार के दिन भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है। अगर आप ज्यादा भीड़ से बचना चाहते है तो मंगलवार, शनिवार और रविवार छोड़ कर सप्ताह के बाकी दिनों में बालाजी के दर्शन करने के लिए आ सकते है।

सालासर बालाजी महाराज के दर्शन व आरती का समय

मंदिर कपाट का खुलना – प्रातः 04:30 बजे
मंगल आरती – प्रातः 05:00 बजे
बालाजी महाराज का राजभोग – प्रातः 10:30 बजे
धूप और मोहनदास जी की आरती – साॅय 06:00 बजे
बालाजी की आरती – साॅय 07:30 बजे
बाल भोग – रात्रि 08:15 बजे
शयन आरती – रात्रि 10:00 बजे

सालासर बालाजी का स्थानीय बाजार

एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल होने की वजह से सालासर बालाजी के स्थानीय बाजार में अधिकांश आपको प्रसाद और हनुमान जी की मूर्तियों की दुकाने ज्यादा दिखाई देती है। प्रसाद और तश्वीरों की दुकानों के अलावा यहाँ पर आपको छोटे-बड़े रेस्टॉरंट भी खुले हुए मिल जाएगें। अपने घर के मंदिर की सजावट के लिए यहाँ से आप बहुत कुछ खरीद सकते है। सालसर के स्थानीय बाजार में आपको बच्चों के खिलोने की दुकानों के अलावा राजस्थान के प्रसिद्ध हस्तशिल्प से निर्मित उत्पाद भी मिल जाएंगे।

सालासर बालाजी कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग से सालासर बालाजी कैसे पहुंचे


सालासर के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर हवाई अड्डा है। जयपुर हवाई अड्डे से सालासर की दूरी मात्र 184 किलोमीटर है। जयपुर हवाई अड्डा भारत के प्रमुख शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा है। इसके अलावा दुनिया के कई देशों से भी जयपुर हवाई अड्डा बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा आप दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी सालासर बहुत आसानी से पहुँच सकते है। दिल्ली के हवाई अड्डे से सालासर की दूरी 367 किलोमीटर है। इन दोनों हवाई अड्डों से आप टैक्सी और कैब की सहायता से बहुत आसानी से सालासर पहुँच सकते है।

रेल मार्ग से सालासर बालाजी कैसे पहुंचे

सालासर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन सुजानगढ़ रेल्वे स्टेशन है। सुजानगढ़ रेलवे स्टेशन से सालासर बालाजी की दूरी मात्र 27 किलोमीटर है। दिल्ली से सालासर बालाजी के दर्शन करने आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए नियमित रेल सेवा सुजानगढ़ के लिए उपलब्ध है। इसके अलावा अगर आप मुम्बई से सालासर दर्शन करने के लिए आ रहे तो दो साप्ताहिक ट्रैन चलती है। इसके अलावा आप जयपुर, सीकर और रतनगढ़ के रेलवे स्टेशन से भी आप बहुत आसानी से सालासर पहुँच सकते है। दिए गए सभी रेल्वे स्टेशन से आप कैब, टैक्सी और बस के द्वारा सालासर बहुत आसानी से पहुंच सकते है।

सड़क मार्ग से सालासर बालाजी कैसे पहुंचे


अगर आप अपने निजी वाहन या फिर टैक्सी और बस के द्वारा सालासर आना चाहते है तो दिल्ली और जयपुर जैसे शहरों से सालासर सड़क मार्ग के द्वारा बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इन दोनों से शहरों से सालासर के लिये नियमित सरकारी बस और निजी बस सेवा उपलब्ध रहती है।