आज 5 अगस्त, 2020 का दिन ऐतिहासिक हो चुका हैं क्योंकि आज के दिन अयोध्या में राममंदिर भूमिपूजन किया गया। यह भूमिपूजन देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भूमिपूजन के बाद भाषण भी दिया गया जिसमें उन्होनें राम की अद्भुत शक्ति का व्याख्यान किया। राम के अस्तित्व की बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि राम आज भी हमारे मन में बसे हैं, हमारी संस्कृति के आधार हैं। अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कुछ तीर्थस्थलों का भी जिक्र किया गया और कहा, 'कन्याकुमारी से क्षीरभवानी तक, कोटेश्वर से कामाख्या, जगन्नाथ से लेकर केदारनाथ, सोमनाथ से लेकर काशी विश्वनाथ तक, आज पूरा देश भगवान राम में डूबा हुआ है। हम आपको इन तीर्थ स्थलों की महत्ता के बारे में बताने जा रहे हैं।
कन्याकुमारी
यह भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा है। कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसके मुताबिक प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्रियां थीं और एक पुत्र था। उनमें से एक का नाम कुमारी था, जिन्हें देवी शक्ति का अवतार माना जाता था। चूंकि राजा भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया था। ऐसे में दक्षिण का हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला था। उनकी ही याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को आज कन्याकुमारी के नाम से जाना जाता है। यह घूमने के लिहाज से बहुत ही खूबसूरत जगह है। यहां पर हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का संगम स्थल है। दूर-दूर तक फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा तो देखते ही बनता है।
क्षीर भवानी
श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर तुलमुल्ला गांव में स्थित है क्षीर भवानी मंदिर। यह मंदिर कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण एक बहती हुई धारा पर किया गया है। इस मंदिर के चारों ओर पेड़-पौधे और नदियों की धाराएं यहां की खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक किवंदती भी है। कहा जाता है कि भगवान राम ने अपने निर्वासन के समय इसी जगह पर पूजा की थी, जहां पर आज मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने ही हनुमानजी को यहां देवी की मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया था। यहां एक जलकुंड है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह वक्त के साथ-साथ अपना रंग बदलता रहता है।
कोटेश्वर
गुजरात के कच्छ जिले में स्थित यह एक प्राचीन बंदरगाह और सुप्रसिद्ध यात्राधाम है। सिंधु नदी और सागर का जहां संगम होता है, उसी के तट पर स्थित यह तीर्थ स्थल पवित्र यात्राधाम नारायण सरोवर से चार किमी। की दूरी पर है। इस जगह का नाम कोटेश्वर इसलिए पड़ा था, क्योंकि यहां 1000 शिवलिंग थे। यहां कोटेश्वर मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। आज भी यहां अनेक शिवलिंग हैं। कहते हैं कि प्राचीन काल में रावण की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपना आत्मलिंग उसे दिया था। दरअसल, रावण उसे अपनी राजधानी लंका में स्थापित करना चाहता था, लेकिन बीच रास्ते में ही उसने आत्मलिंग को जमीन पर रख दिया। कथा के अनुसार, कोटेश्वर मंदिर में आत्मलिंग आज भी स्थापित है जो खुद भगवान शिव ने दिया था।
कामाख्या
कामाख्या मंदिर का नाम तो शायद आपने सुना भी होगा। यह असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से लगभग 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती को समर्पित है। प्राचीन काल से ही यह भारत के सर्वोच्च तीर्थस्थलों में से एक है। नीलांचल या नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के 51 शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। कहते हैं कि जो भी भक्तजन जीवन में तीन बार यहां माता के दर्शन कर लेते हैं, उन्हें सांसारिक बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
जगन्नाथ
जगन्नाथ पुरी की गिनती हिंदू धर्म के चार धामों में होती है। ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव विश्व प्रसिद्ध है। इसके अलावा इस मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई भी है, जिसे भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जाना जाता है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोईए और उनके 300 सहयोगी काम करते हैं।
केदारनाथ
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। 12 ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ यह चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर महीने के बीच ही दर्शन के लिए खुलता है। कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने कराया था जबकि आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। कहते हैं कि करीब 1000 साल से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है।
सोमनाथ
सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। इसे आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह पर स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण खुद चंद्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। लोककथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं पर देहत्याग किया था। इस कारण इस स्थान का और भी महत्व बढ़ गया।
काशी विश्वनाथ
काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहा जाता है कि यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि प्रलयकाल में भी इस जगह लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। इस जगह को आदि सृष्टि स्थली भी कहा जाता है।