मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है। मथुरा को श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा में 20 से भी ज्यादा ऐसे टूरिस्ट प्लेस हैं जिन्हें जरूर देखना चाहिए। स्थानीय जगहों को आप दिन में किसी भी वक्त घूम सकते हैं। मथुरा में अगर आप ये जगहें देखना चाहते हैं तो आपको यहां दो या तीन दिन रुकना होगा।
कृष्ण जन्मभूमि मंदिरः कृष्ण जन्म भूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है। इस जगह को भगवान कृष्ण का जन्म स्थान माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि का ना केवल राष्द्रीय स्तर पर महत्व है बल्कि वैश्विक स्तर पर जनपद मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान से ही जाना जाता है। आज वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से यह एक भव्य आकर्षण मन्दिर के रूप में स्थापित है। पर्यटन की दृष्टि से विदेशों से भी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहां प्रतिदिन आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को विश्व में बहुत बड़ी संख्या में नागरिक आराध्य के रूप में मानते हुए दर्शनार्थ आते हैं।
विश्राम घाटः आध्यात्मिक नगरी में घाटों का अलग ही महत्व होता है। हरिद्वार, वाराणसी आदि शहरों की पहचान इसी से है। विश्राम घाट द्वारिकाधीश मंदिर से 30 मीटर की दूरी पर, नया बाजार में स्थित है। यह मथुरा के 25 घाटों में से एक प्रमुख घाट है। विश्राम घाट के उत्तर में 12 और दक्षिण में 12 घाट हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां अनेक संतों ने तपस्या की एवं इसे अपना विश्राम स्थल भी बनाया। विश्राम घाट पर यमुना महारानी का अति सुंदर मंदिर स्थित है। यमुना महारानी जी की आरती विश्राम घाट से ही की जाती है। विश्राम घाट पर संध्या का समय और भी आध्यात्मिक होता है।
प्रेम मंदिरः प्रेम मंदिर वृंदावन में स्थित है। इसका निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मंदिर के रूप में करवाया गया है। इस मंदिर में अगर आप संध्या में आते हैं तो आपको यहां किसी सपने जैसे दृश्य दिखाई देगा। लेजर लाइट से गीतों के जरिए दिखाई जाने वाली आकृति, रंग बिरंगी रोशनी से सजी मंदिर की दीवारें और यहां की अद्भुत संरचना आपका मन मोह लेगी। प्रेम मन्दिर का लोकार्पण १७ फरवरी को किया गया था। इस मन्दिर के निर्माण में ११ वर्ष का समय और लगभग १०० करोड़ रुपए की धन राशि लगी है। इसमें इटैलियन करारा संगमरमर का प्रयोग किया गया है और इसे राजस्थान और उत्तरप्रदेश के एक हजार शिल्पकारों ने तैयार किया है।
इस्कॉन मंदिरः प्रेम मंदिर से कुछ ही दूरी पर इस्कॉन मंदिर स्थित है। यह दूसरी कुछ मीटर की ही होगी। इस्कॉन मंदिर के प्रांगण में कदम रखते ही आपको एक शांति का अनुभव होगा। आप प्रेम मंदिर की तरह यहां भी काफी देर तक बैठकर मंत्रमुग्ध हो सकते हैं। यहां हरे रामा हरे कृष्णा का उच्चारण आपको भाव विभोर कर देगा। दिलचस्प बात ये है कि यहां विदेशी सैलानियों की अच्छी खासी मौजूदगी रहती है। आप यहां उन्हें भक्ति गीतों को गाते देख सकते हैं। कई विदेशी सैलानी भक्ति रस में डूबकर नृत्य करते हैं, आप उन्हें देख खुद को रोक नहीं पाएंगे।
जय गुरुदेव आश्रमः भारत के सुदूर गांवों में अगर आप कभी गए हों तो आपने जय गुरुदेव के नारे जरूर पढ़े होंगे। देश-विदेश में 20 करोड़ से अधिक अनुयायी वाले जय गुरुदेव के आश्रम को देखे बिना मथुरा का सफर अधूरा रह जाएगा। मथुरा में आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित जय गुरुदेव आश्रम की डेढ़ सौ एकड़ के लगभग भूमि पर संत बाबा जय गुरुदेव का एक अलग ही संसार है। गुरुदेव के अनुयायियों में अनपढ़ किसान से लेकर बुद्धजीवि वर्ग भी शामिल है। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को सुधारने हेतु जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था एवं जय गुरुदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट चला रहे हैं। इसके तहत कई लोक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। दूर दूर गौ हत्या को छोड़कर शाकाहार अपनाने का संदेश भी इसी के तहत दिया जाता है।
द्वारकाधीश मंदिरः मथुरा के मंदिरों में द्वारकाधीश मंदिर की विशेष महत्ता है। यहां की आरती विशेष रूप से दर्शनीय होती है। मंदिर में मुरली मनोहर की सुंदर मूर्ति विराजमान है। यहां मुख्य आश्रम में भगवान कृष्ण और उनकी प्रिय राधिका रानी की प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर में और भी दूसरे देवी देवताओं की प्रतिमाएं हैं। मंदिर के अंदर बेहतरीन नक्काशी, कला और चित्रकारी का अद्भुत नमूना है। होली और जन्माष्टमी में यहां भीड़ और भी बढ़ जाती है।
राधावल्लभ मंदिरः राधावल्लभ मन्दिर एक प्राचीन मन्दिर है। इस मंदिर की स्थापना श्री हरिवंश महाप्रभु ने की थी। वृंदावन के मंदिरों में से एक मात्र श्री राधा वल्लभ मंदिर में नित्य रात्रि को अति सुंदर मधुर समाज गान की परंपरा शुरू से ही चल रही है। सवा चार सौ वर्ष पहले इसे क्षतिग्रस्त कर दिया गया था, तब श्री राधा वल्लभ जी के श्रीविग्रह को सुरक्षा के लिए राजस्थान से भरतपुर जिले ले जाया गया। पूरे 123 वर्ष वहां रहने के बाद उन्हें फिर से यहां लाया गया। श्री राधा वल्लभ संप्रदायी वैष्णवों का मुख्य श्रद्धा केंद्र है। यहां की भोग राग, सेवा-पूजा श्री हरिवंश गोस्वामी जी के वंशज करते हैं।
गोवर्धन पर्वतः गोवर्धन पर्वत की कहानी आपने धारवाहिकों में देखी या किताबों में जरूर पढ़ी होगी। गोवर्धन व इसके आसपास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है। द्वापर युग में यहीं भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के वर्षा प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी अंगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज जी भी कहते हैं। आज भी दूर दूर से श्रद्धालु इस पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। यह ७ कोस की लंबी परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की है। भक्त इसे वाहनों की मदद से भी पूरा करते हैं। इस मार्ग में कई अन्य धार्मिक स्थन पड़ते हैं। इनमें आन्यौर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लोटा, दानघाटी इत्यादि हैं। परिक्रमा जहां से शुरु होती है वहीं एक प्रसिद्ध मंदिर भी है जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है।
निधिवनः दुनिया में आज भी कई ऐसे रहस्य हैं जहां आकर विज्ञान की सीमाएं खत्म हो जाती हैं। ऐसा ही एक रहस्य है वृंदावन का निधिवन। ऐसी मान्यता है कि इस अलौकिक वन में आधी रात को भगवान कृष्ण, राधा और गोपियां रास-लीला रचाते हैं। इस प्रेम लीला को जो भी मनुष्य देख लेता है वो अपनी नेत्रज्योति खो बैठता है या दिमागी संतुलन गंवा देता है। निधिवन में तुलसी के पेड़ हैं। हर पौधा जोड़े में है। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला के दौरान तुलसी के पौधे गोपियों का रूप ले लेते हैं। प्रातः होने पर ये गोपियां पुनः तुलसी का रूप ले लेती हैं।।
कंस किलाः यमुना के किनारे पर स्थित कंस का किला आज उजाड़ होकर खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस किले का नया निर्माण 16वीं सदी में राजा मानसिंह ने कराया था। इसके बाद महाराजा सवाई जय सिंह ने ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन करने के लिए एक वेधशाला का निर्माण भी कराया। यह किला बड़े क्षेत्र में फैला है और इसकी दीवारें काफी ऊंची हैं। यह आकृति द्वारा हिंदू धर्म और इस्लामिक वास्तुकला की बनावट का नमूना पेश करता है। ऐसा बताया जाता है कि यह किला कई हाथों से होकर गुजरा है। अंबर के राजा मान सिंह ने 16वीं शताब्दी में इसको वापस नया बनवा दिया था जबकि जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह ने वहां पर एक वेधशाला बनवाई। हालांकि, आज वहां वेधशाला का कोई नामोनिशान भी नहीं है।