आज सावन शुक्ल पंचमी हैं जिसे नागपंचमी के पर्व के रूप में पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं। इस दिन सभी भक्तगण नागदेवता की पूजा करते हैं और उन्हें दूध अर्पित करते हैं। इससे नागदेवता के खुश होने के साथ ही शिव भी प्रसन्न होते हैं। आज के इस ख़ास मौके पर हम आपको एक विशेष मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो सिर्फ नागपंचमी के दिन ही खुलता हैं और इस दिन यहाँ विशेष पूजा की जाती हैं। हम बात कर रहे हैं नागचंद्रेश्वर मंदिर के बारे में जिसके लिए माना जाता हैं कि नागपंचमी के दिन नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में मौजूद रहते हैं और लोगों को दर्शन देते हैं। तो आइये जानते है इस मंदिर के बारे में।
इस मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, जिसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। ऐसी माना जाता है कि इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाई गई थी। ऐसी प्रतिमा दुनिया में सिर्फ उज्जैन में है। इसके अलावा ऐसी प्रतिमा कहीं भी नहीं है। ऐसी मान्यता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और माँ पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। इसके अलावा भगवान शंकर के गले व भुजाओं में भी सर्प लिपटे हुए हैं।भगवान शंकर को मनाने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। कहा जाता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। लगभग दो लाख से ज्यादा लोग नागपंचमी के दिन यहां दर्शन करने के लिए आते हैं।