आज नवरात्रि के त्योहार का अंतिम दिन हैं और सभी भक्तगण मातारानी के दर्शन करने के लिए मंदिरों में जाते हैं। आज हम आपको मुंबई के मुंबा देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ नवरात्रि के दिनों में देश के हर कोने से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। शेर पर विराजमान माता के इस मंदिर की वजह से ही मुंबई का नामकरण हुआ हैं। यह मंदिर एकता का प्रतीक भी माना जाता हैं। आज नवरात्रि के उपलक्ष्य में हम आपको इस मंदिर के बारे में पूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
मुंबई में शुरू में मछुआरों की बस्ती थी। इन्हें यहां कोली कहते हैं। मुंबादेवी इसी समाज की कुलदेवी हैं। अपने कुलदेवी के कृपा के चलते कोली समाज को समुद्र से कोई नुकसान नहीं हुआ। अतीत में जिस कुलदेवी की पूजा-अर्चना कोली समाज के लोग करते हैं। वहां पर आज सबसे अधिक उत्तर भारतीय समाज के लोग दूर-दूर से दर्शन करते हैं। साथ ही मुंबादेवी में अन्य समाज के लोग उतनी श्रद्धा है, जितनी कोली और उत्तरभारतीयों की है। इसे लोग देश के एकता का प्रतीक भी मानते हैं।
मंदिर में 6 बार आरती की जाती है। देवी के भोग लगाने के लिए मंदिर के ऊपरी मंजिल पर रसोई में पकवान बनता है। भोग में पूरी भाजी, दो सब्जी, दाल, चावल और एक मिठाई नियमित रूप से बनाया जाता है। मंदिर में 16 पुजारी कार्यरत हैं, लेकिन राहत में मंदिर में निवास करना वर्जित है। मंदिर बंद करने के बाद पुजारी अपने घर जाते हैं, सुबह चार बजे आ जाते हैं। मंदिर के ऊपर लगे पताके को हर महीने में बदला जाता है।
मंदिर में प्रतिदिन 10 से 15 हजार श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं, छुट्टी के दिनों में यह संख्या दो से तीन गुना बढ़ जाती है, जबकि चैत्र और आश्विन नवरात्र में श्रद्धालुओं की संख्या 75 हजार से अधिक होती है। नवरात्र और विशेष अवसरों पर मंदिर को फूलों से सजाया जाता है, भीड़ संभालने के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं। मंदिर में पटोत्सव के रूप में फरवरी में विशेष कार्यक्रम के आयोजन किए जाते हैं। चढ़ावे के रूप में जो सोने-चांदी की वस्तुएं चढ़ाई जाती है, उसका मंदिर प्रबंधन देवी के लिए आभूषण बनवाती है। साथ ही नकद राशि आए चढ़ावे का उपयोग चैरिटी में भी किया जाता है।
कोली समाज ने बोरीबंदर में मुंबादेवी की स्थापना की थी। वर्तमान में जहां सीएसटी स्टेशन (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) इमारत है, पहले ठीक उसी स्थान पर मुंबादेवी मंदिर था। लेकिन अंग्रेजों के शासनकाल में सन 1918 में मुंबादेवी को मरीन लाइंस के पास स्थित कालबादेवी के बीच बाजार में स्थानांतरित कर दिया। यहां पर पूरे विधि से मंदिर में मुंबादेवी की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। जब मंदिर यहां स्थानांतरित हुआ था, तब इसके तीन तरफ बड़े तालाब थे, जो अब नहीं है।