Mahashivratri 2022: महाशिवरात्रि के दिन करें इस शिव मंदिर के दर्शन, विवाह संबंधित सभी समस्याएं होंगी दूर

आज 1 मार्च 2022 महाशिवरात्रि है। शिवरात्रि का महापर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। वैसे तो हर महीने मासिक शिवरात्रि आती है लेकिन फाल्गुन मास में आने वाली इस शिवरात्रि का महत्व काफी ज्यादा होता है। माना जाता है ये दिन भगवान शिव और पार्वती के विवाह का दिन है। शिव पुराण में ये भी कथा है कि इसी दिन भगवान शिव ने पहली बार ज्योतिर्लिंग के रूप में दर्शन दिए थे। शिव भक्ति के लिए यह दिन काफी अच्छा माना जाता है। ऐसे में आज हम आपको भगवान शिव के एक अनोखे और इकलौते मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ नंदी पर विराजमान है। आइए जानते हैं-

जबलपुर शहर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भेडाघाट मौजूद है यहां नर्मदा नदी का सबसे विहंगम नजारा देखने को मिलता है। आपको बता दे, नर्मदा नदी के तट मां रेवा की भक्ति के लिए ही नहीं बल्कि भगवान शिव के लिए भी प्रसिद्ध माने जाते हैं। कहा जाता है कि नर्मदा का हर कंकर शंकर के समान होता है यही वजह है कि नर्मदा नदी के किनारे तमाम शिव मंदिरों का न केवल पौराणिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है। संगमरमर वादियों के बीच भगवान शिव और माता पार्वती का एक ऐसा अनोखा मंदिर स्थापित है जिसका महत्व जितना पौराणिक है उतना ही ऐतिहासिक भी। इस मंदिर में भगवान शिव की एक ऐसी प्रतिमा के दर्शन होते हैं जो विश्व में और कहीं नहीं है। भगवान शिव की इस प्रतिमा की खास बात यह है कि नंदी पर विराजमाव इस प्रतिमा में भगवान शंकर और माता गौरी एक दूसरे से वार्तालाप की मुद्रा में दिखते हैं और पूरी प्रतिमा ऐसी नजर आती है जैसे भगवान शंकर दूल्हे और माता पार्वती दुल्हन के रूप में नंदी में विराजमान है।

कहा जाता है चौंसठ योगिनी मंदिर

भगवान शिव की इस अद्भुत रूप को कल्याण सुंदरम के नाम से भी जाना जाता है यह मंदिर चौंसठ योगिनीओं के मध्य स्थित है। दरअसल, इस पूरे मंदिर को ही चौंसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है चौंसठ योगिनी मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान गौरी शंकर भगवान का विवाह के समय का अद्भुत और विरलतम विग्रह है। यह गोलाकार मंदिर है। मंदिर की संरचना इस प्रकार है कि इस पर कई भूकम्प के झटके झेलने के बाद भी यह मंदिर सुरक्षित है। यह भूकंपीय क्षेत्र तीन में है।

इस अद्भुत मंदिर का निर्माण करीब 100 फीट की ऊंचाई पर किया गया है और पहाड़ी पर स्थित यह गोलाकार मंदिर किसी उड़न तश्तरी की तरह नजर आता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के बीच में एक खुले मंडप का निर्माण किया गया है जिसमें एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। बताया जाता है कि यह मंदिर 700 साल पुराना है। इस मंदिर का निर्माण कच्छप राजा देवपाल ने 1323 ई (विक्रम संवत 1383) में करवाया था। इस मंदिर में सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित की शिक्षा दी जाती थी जिसका यह मुख्य केंद्र था।

इस अनोखे मंदिर के पीछे एक कथा भी है

शिव पुराण के मुताबिक, इस पहाड़ी पर सुपर्ण नाम के एक ऋषि तपस्या किया करते थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए। यह वह लम्हा था जब भगवान शिव माता पार्वती के साथ विवाह कर कैलाश धाम लौट रहे थे। रास्ते में ऋषि सुपर्ण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वर देने का निर्णय किया। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि भगवान शिव और माता पार्वती यहीं विराजमान हो गए। लगभग 1200 साल पहले कलचुरी कालीन शासकों ने चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण कराया था। यहां भगवान शंकर नंदी पर विराजमान होकर गौरी माता को विवाह के बाद विदा कर ले जाते हुए दर्शन देते हैं यही वजह है कि इस मंदिर में नव दंपत्ति जरूर आते हैं इसके साथ-साथ जिनके जीवन में विवाह संबंधी समस्याएं होती हैं उनकी मुरादें भी इस मंदिर में आकर जरूर पूरी होती हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के अद्भुत छवि की झलक पाने के लिए यहां सदियों से श्रद्धालु उत्साह मनाते आ रहे हैं। आपको बता दे, शिव-पार्वती की गृहस्थी को आदर्श माना जाता है। बेटे कार्तिकेय और गणेश के साथ उनका परिवार और प्रेम आधुनिक परिवारों को क्या सिखाता है। कैसे हम पति-पत्नी, माता-पिता और संतानों के संबंधों को प्रेमपूर्ण रख सकते हैं, ये सारी बातें शिव परिवार में है।

चौंसठ योगिनी मंदिर का अपना ही एक विशेष महत्व है। इस मंदिर का जितना ऐतिहासिक महत्व है उतना ही पौराणिक महत्व भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती की सुरक्षा के लिए माता पार्वती ने यहां चौंसठ योगिनीओं को बुला लिया था जो भगवान शिव के मंदिर की रक्षा करती हैं इसके साथ-साथ मंदिर के चारों और भगवान शिव ने शिव योनियों को स्थापित किया है।