यदि आप एक ऐसे गंतव्य की यात्रा करना चाहते हैं जो सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, और मनोरंजन से भरा हो तो आपको कांचीपुरम अवश्य आना चाहिए। कांचीपुरम तमिलनाडु राज्य में स्थित प्रमुख धार्मिक स्थल है, जिसे एक हजार मंदिरों के सुनहरे शहर के रूप में भी जाना जाता है। इस शहर को दक्षिण की काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां का हर मंदिर द्रविड़ विरासत और शहर के गौरवशाली इतिहास को भली-भांति प्रदर्शित करता है। कांचीपुरम को आध्यात्मिकता का केंद्र माना जाता है, जहाँ कई विदेशी पर्यटक भी भारतीय संस्कृति का अनुभव करने के लिए आते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं कांचीपुरम के प्रमुख मंदिरों के बारे में जहां आप अपने परिवार संग आकर आध्यात्मिकता के सागर में डूबने पर मजबूर हो जाएंगे। आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...
वरदराजा पेरुमल मंदिरभगवान विष्णु को समर्पित वरदराजा पेरुमल मंदिर उन 108 मंदिरों में से एक है, जो भगवान विष्णु के अलवारों द्वारा देखे गए थे। वरदराजा पेरुमल मंदिर कांचीपुरम के सबसे प्राचीन मंदिर में से एक है, इसीलिए यह मंदिर पुराने पत्थरों के खम्बो से घिरा हुआ है। इतिहासकारों की माने तो इस मंदिर का निर्माण 1053 में चोल वंश द्वारा करबाया गया था। इसी वजह से यह मंदिर धार्मिक यात्रियों के साथ साथ इतिहास शोकिनो और कला प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यकीन माने आप जब वरदराजा पेरुमल मंदिर की यात्रा पर आएंगे तो भगवान विष्णु के दर्शन के साथ साथ मंदिर परिसर की भव्य वास्तुकला और जटिल नक्काशी देखकर मंत्रमुग्ध हो जायेंगे।
एकंबरेश्वर मंदिरभगवान शिव को समर्पित एकंबरेश्वर मंदिर कांचीपुरम के प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाता है। दूसरी शताब्दी के तमिल कवियों द्वारा इस विशेष मंदिर का काफी वर्णन किया गया है। प्रारंभिक समय से लेकर अबतक मंदिर के कई संरचनात्मक बदलाव हो चुके हैं। पल्लव राजाओं के शासन काल के दौरान इस मंदिर के प्रारंभिक मूल स्वरूप को हटाकर नया स्वरूप प्रदान किया गया था। चोल वंश के शासन काल के दौरान भी इस मंदिर में कई बदलाव किए गए। मंदिर की संरचना का अंतिम बदलाव कृष्णदेवाराय के समय में किया गया। कृष्णदेवाराय दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध राजा माने जाते हैं। मंदिर के 40 फीट लंबे विशाल दरवाजे देखने लायक हैं। यह भव्य मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का एक अनूठा उदाहरण पेश करता है। मंदिर परिसर में एक आम का पेड़ है जो लगभग 3500 वर्ष पुराना बताया जाता है।
कामाक्षी अम्मन मंदिर कामाक्षी मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो देवी ललिता महा त्रिपुरसुंदरी के अंतिम रूप कामाक्षी को समर्पित है। कामाक्षी अम्मन मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है, जो स्वर्ग से देवी सती की लाश से गिरने वाले शरीर के अंगों के चारों ओर बने पवित्र मंदिर हैं। कामाक्षी अम्मन मंदिर बहुत प्राचीन काल का है, जो 7वीं शताब्दी का है। यह श्रद्धेय भारतीय गुरु आदि शंकराचार्य के तत्वावधान में स्थापित किया गया था। भव्य मंदिर 5 एकड़ के क्षेत्र में फैला एक बहुस्तरीय संरचना है। इसके प्रवेश द्वार पर एक हस्ताक्षर गोपुरम है, जो एक विशाल संरचना है जिसे प्राचीन देवताओं के भित्तिचित्रों से सजाया गया है। तमिल हिंदू के अनुसार, ‘मासी’ का महीना आमतौर पर फरवरी से मार्च तक भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। रविवार की सुबह की यात्रा आदर्श होगी क्योंकि कोई भी देवी को उनके असली, बिना अलंकृत रूप में निजा स्वरूपम के रूप में देख सकता है।
कैलासनाथर मंदिरदक्षिण भारत में पल्लव राजवंश के शासनकाल के दौरान कैलासनाथर मंदिर स्थापत्य उत्कृष्टता का प्रमाण है। यह कांचीपुरम की सबसे पुरानी इमारत माना जाता है और यह भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर को बलुआ पत्थर से बनाया गया है और यह एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके परिसर में विभिन्न देवताओं के लिए समर्पित 58 उप-मंदिर हैं। यहाँ मूर्तिकला और खूबसूरत पेंटिंग यहाँ आने वाले लोगों को मंत्रमुग्ध कर सकती हैं। फरवरी या मार्च के महीने में महा शिवरात्रि महोत्सव के दौरान हज़ारों लोग इस मंदिर में प्रार्थना करने के लिए आते हैं। माना जाता है कि पल्लव राजा कला के काफी ज्यादा प्रेमी थे, इसलिए उनके समय बनाए गए सभी मंदिर अपनी बेहतरीन स्थापत्य कला के लिए जाने जाते हैं। मंदिर में पत्थरों और चट्टानों को काट कर की गई कारीगरी का कोई जवाब नहीं। अगर आप ऐतिहासिक वास्तुकला के प्रेमी हैं तो यहां एक बार जरूर आएं। कैलासनाथ मंदिर नक्काशी और वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है।
देवराजस्वामी मंदिरकांचीपुरम में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक देवराजस्वामी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस विशाल मंदिर में एक विवाह भवन है जो भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के विवाह की याद में बनाया गया था। एक पानी की टंकी भी है जिसमें पानी के अंदर भगवान विष्णु की एक बड़ी मूर्ति है। हर 40 बर्षो में एक बार उस टैंक को खाली किया जाता है जिस दौरान 10 मीटर ऊंची प्रतिमा देखी जा सकती है, जिसे 48 दिनों के लिए दर्शन के लिए स्थापित भी किया जाता है। इस मंदिर में दो मीनारें या गोपुरम हैं। ये टॉवर लगभग 1000 साल पुराने बताए जाते हैं। विभिन्न राजवंशों के अलग-अलग शासकों ने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया है। भगवान विष्णु की मूर्ति के साथ, एक अन्य देवता हैं जिन्हें अष्ठी लकड़ी से बने भगवान अष्ठी वरदार के रूप में जाना जाता है।
प्रसन्ना वेंकटेश पेरुमल मंदिरइस दीप्तिमान मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की एक अनूठी मूर्ति है जो एक शिव लिंग पर खड़ी दिखाई देती है। गौरवशाली मंदिर लगभग 500 साल पहले बनाया गया था और हिंदू समुदाय के लिए इसका अत्यधिक धार्मिक महत्व है। भक्त अक्सर घी के दीपक जलाते हैं, तुलसी अर्चना करते हैं और भगवान पेरुमल को प्रसन्न करने के लिए फूल और माला चढ़ाते हैं। इतिहास के अनुसार चंद्रा की पत्नी ने उस समय तपस्या की थी जब उनकी चमक फीकी पड़ रही थी। भगवान पेरुमल उसके समर्पण से प्रसन्न हुए और थिरुवोनम तारे के दिन चंद्र को श्राप से मुक्त कर दिया। मंदिर में एक शांत और दिव्य खिंचाव है जिसके बारे में पर्यटक अक्सर बात करते हैं क्योंकि यह उन्हें सर्वशक्तिमान के करीब लाता है। विशेष रूप से वैकुंठ एकादशी के दिन बड़ी संख्या में पर्यटक यहां भगवान से आशीर्वाद लेने आते हैं। कांचीपुरम के किसी भी हिस्से से सड़क मार्ग द्वारा प्रसन्ना वेंकटेश पेरुमल मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। पर्यटक मंदिर तक पहुंचने के लिए बस की सवारी कर सकते हैं, टैक्सी और कैब उनके लक्ष्य तक पहुंचने का एक और तरीका है।
वैकुंठ पेरुमल मंदिरकांचीपुरम के प्रमुख तीर्थ स्थल में शुमार वैकुंठ पेरुमल मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। वैकुंठ पेरुमल मंदिर का निर्माण 7 वीं शताब्दी के दौरान पल्लव राजा नादिवर्मन द्वितीय द्वारा करबाया गया था। जब भी आप अपनी कांचीपुरम की यात्रा में वैकुंठ पेरुमल मंदिर आयेंगे, तो आप यहाँ भगवान के दर्शन के साथ साथ मंदिर और शहर के इतिहास को बताने वाले शिलालेख को भी दीवारों पर देख सकेगें। जिस कारण भारत का पुरातत्व विभाग इस मंदिर की देखभाल करता है। यदि आप कांचीपुरम में घूमने की जगहें सर्च कर रहे है और कांचीपुरम के इतिहास को जानने के बारे में दिलचस्पी रखते है, तो आपको इस मंदिर की यात्रा जरूर करनी चाहिये।