हिमाचल प्रदेश की शान बढ़ाता हैं चंबा, देखने को मिलती हैं मनमोहक खूबसूरती

हिमाचल प्रदेश का चंबा एक खूबसूरत टूरिस्ट प्लेस है। यं तो इस पहाड़ी प्रदेश में कई जगहें घूमने लायक है लेकिन चंबा की अपनी अलग खासियत है। हिमाचल प्रदेश राज्य में रावी नदी के किनारे पर एक समतल पहाडी पर बसा चंबा बेहद ही खूबसूरत पर्यटन स्थल है। चंबा को हिमाचल प्रदेश का जिला होने का भी गोरव प्राप्त है। डलहौजी से चंबा की दूरी लगभग 56 किलोमीटर है। यह मनमोहक हिल स्टेशन चंबा समुंद्र तल से लगभग 996 मीटर की ऊचाई पर बसा है। इस शहर का यह सौभाग्य भी रहा है कि यहा एक से बढकर एक कलाप्रिय धार्मिक व कृपालु राजाओ ने शासन किया था। आइये जानते हैं चम्बा के बारे में-

नाम के पीछे की कहानी

दिल चुराने वाले चंबा का मौसम आपकी हर तकलीफ को दूर कर देगा। कहा जाता है कि चंबा शहर का नाम वहां की राजकुमारी चंपावती के नाम पर पड़ा। कहा जाता है कि राजकुमारी चंपावती हर दिन शिक्षा के लिए एक साधु के पास जाती थी। इससे राजा को शक हो गया और वो एक दिन राजकुमारी के पीछे-पीछे आश्रम पहुंच गया। वहां उसे कोई नहीं मिला, लेकिन उसे शक करने की सजा मिली और उससे उसकी बेटी छीन ली गई। आसमान में आकाशवाणी हुई कि प्रायश्चित करने के लिए राजा को यहां मंदिर बनवाना होगा। राजा ने चौगान मैदान के पास एक सुंदर मंदिर बनवाया। चंपावती मंदिर को लोग चमेसनी देवी के नाम से पुकारते हैं।

भूरीसिंह संग्रहालय

यह भारत के 5 प्रमुख संग्रहालयो में से एक है। यहा चंबा घाटी की ही कला देखने को मिलती है। इस संग्रहालय का निर्माण यहा के नरेश भूरिसिंह ने डच डॉक्टर बोगले की प्रेरणा से करवाया था। इस संग्रहालय में 5 हजार से अधिक दुर्लभ कलाकृतियां संग्रहीत है। इन कलाकृतियो में भित्तिचित्र, मूर्तिया, पाडुलिपियां और धातुओ से निर्मित वस्तुओ के अलावा विश्व प्रसिद्ध चंबा रूमाल भी है। चम्बा के रूमालो की मुख्य खासियत यह है कि इन पर धर्म ग्रंथो के प्रसंगो का चित्रण बडी ही खुबसुरती से किया गया है।

लोकगीतों में गुनगुनाता है चंबा

'माये नी मेरिये शिमले दी राहें चंबा कितनी दूर। शिमले नी बसणा, कसौली नी बसणा, चंबे ता बसणा जरूर।।।' लोकगीतों में कुछ इसी तरह से पिरोया गया है हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत इलाके चंबा को। फिल्मों में आपने इसकी खूबसूरती कई बार देखी होगी, लेकिन अनगिनत कुदरती सौगातों के साथ-साथ यहां मिलती है लोकरंग और ग्रामीण संस्कृति की नायाब झलक भी। कल-कल बहती रावी और साहल नदियों के बीच बसा है चंबा। गीतों में, कहावतों में इसका नाम कई बार आया है। फिल्म 'महबूबा' (1976) का गीत 'पर्वत के पीछे चंबे दा गांव।।' जैसे गीत कानों में रस घोलते रहे हैं। कहते हैं 'चंबा एक अचंभा है', जहां अजूबों और चकित कर देने वाली चीजें हर तरफ पसरी हुई हैं।

चंबा का दिल है चौगान

चंपावती मंदिर के सामने एक विशाल मैदान है, जिसे चौगान कहते हैं। एक तरह से चौगान चंबा शहर का दिल है। किसी समय चौगान का यह मैदान बहुत बड़ा था लेकिन बाद में इसे पांच हिस्सों में बांट दिया गया। मुख्य मैदान के अलावा अब यहां चार छोटे-छोटे मैदान हैं। चौगान मैदान में ही हर साल जुलाई में चंबा का मशहूर पिंजर मेला लगता है। चंबा के आसपास कुल 75 प्राचीन मंदिर हैं। इन मंदिरों में प्रमुख लक्ष्मीनारायण मंदिर, हरिराय मंदिर, चामुंडा मंदिर हैं।

बारिश के मौसम में जायें चंबा

आधुनिकता के रंगों में रंग जाने के बाद भी यहां लोकरंग जीवंत रूप में नजर आता है। घाटी में देवी-देवता आस्था का विषय ही नहीं हैं, बल्कि ये यहां की जीवनशैली में घुल-मिल गए हैं। प्राचीन मंदिरों और उत्सवों-परंपराओं को सहेजने की कला बखूबी जानते हैं यहां के सीधे-सरल लोग। हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बसे होने के कारण चंबा में हिमाचल के साथ-साथ पंजाब, जम्मू और जनजातीय क्षेत्र की संस्कृति का भी प्रभाव दिखाई देता है। कहा तो यह भी जाता है कि जो एक बार चंबा गया, वह पूरा महीना यहां गुजार देना चाहता है। बारिश यानी मानसून में आप कुदरत के सजीले रंगों के साथ-साथ यहां की रंगा-रंग संस्कृति, उत्सवों-मेलों का लुत्फ भी उठा सकते हैं।