श्रद्धालुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है अमरनाथ, देखने को मिलते हैं विहंगम दृश्य

आसमान को छूते देवदार के हरे पेड़, कल-कल बहती नदियां, बर्फ से ढकी चोटियां, ग्लेशियर के नीचे से निकली पतली जलधारा जहां किसी को भी मोह ले, वहीं पथरीले पहाड़ की ढलान पर बना संकरा रास्ता और उसके नीचे गहरी खायी, जो डराती कम रोमांच ज्यादा पैदा करती है, इस तरह के प्राकृतिक दृश्यों को अपने दामन में समेटे अगर कोई यात्रा या स्थान है तो वह सिर्फ समुद्रतल से करीब 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा की तीर्थयात्रा। अमरनाथ धाम श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक महत्‍व और पुण्‍य की यात्रा है। जिसने भी इस यात्रा के बारे में जाना या सुना है, वह कम से कम एक बार जाने की इच्छा जरूर रखता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं।

हिम शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं भगवान शिव

अमरनाथ की गुफा का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यहां हिम शिवलिंग का निर्माण होता है। इस गुफा का महत्व इसलिए भी है क्‍योंकि इसी गुफा में भगवान शिव ने अपनी पत्नी देवी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया था। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव साक्षात श्री अमरनाथ गुफा में विराजमान रहते हैं।

अमरनाथ की पौराणिक कथा

इस स्थान का वर्णन संस्कृत, कि 6 वी सदी की निलामाता पुराण में किया गया है। इस पुराण में कश्मीर के निवासियों के कर्मकांडों और सांस्कृतिक जीवन शैली का वर्णन है। 34 बी।सी में कश्मीर के राजा बने आर्यराजा का अमरनाथ स्थान संग गहरा रिश्ता था। इन्होंने अपने राजा अधिकार त्याग कर, गर्मियों में अक्सर बर्फ से बने इस “शिवलिंग” की पूजा करने जाया करते थे। राजतरंगिणी में अमरनाथ को अमरेश्वर भी कहा गया है।

पिस्सु घाटी

पिस्सु टाप पथरीला रास्ता और खड़े पहाड़ों के बीच अगला पड़ाव पिस्सु घाटी है। चंदनबाड़ी से करीब चार किमी। की दूरी पर समुद्रतल से करीब 11500 फीट की ऊंचाई पर स्थित पिस्सु घाटी के शिखर पर खड़े पहाड़ को पिस्सु टाप कहते हैं। किवंदितयों के मुताबिक, भगवान शिव ने यहीं पर पिस्सु नामक एक जीवाणु को अपने शरीर से उतार छोड़ा था। एक अन्य कथा के मुताबिक, यह पहाड़ राक्षसों की हड्डियों से बना है। कहा जाता है कि देवता और असुर इसी रास्ते से भगवान शंकर की पूजा के लिए अमरेश्र्वर गुफा में जाते थे। एक बार रास्ते में देवता और असुर आपस में लड़ पड़े। देवताओं ने राक्षसों का यहां संहार किया और उनकी हड्डियों को जब एक जगह जमा किया गया तो यह पहाड़ बन गया।

अमरनाथ यात्रा रूट

पहलगाम या बालटाल तक आप किसी भी वाहन से पहुंच सकते हैं लेकिन इससे आगे का सफर आपको पैदल ही करना होगा। पहलगाम और बालटाल से ही अमरनाथ की पवित्र गुफा तक पहुंचने के दो रास्ते निकलते हैं। ये दोनो ही स्थान श्रीनगर से अच्छी तरह जुड़े हैं इसलिए अधिकतर श्रद्धालु श्रीनगर से ही अपनी यात्री की शुरुआत करते हैं। पहलगाम से अमरनाथ की पवित्र गुफा की दूरी करीब 48 किलोमीटर और बालटाल से 14 किलोमीटर है।

पंचतरणी में किया पांचों तत्‍वों का परित्‍याग

भगवान शिव जब पार्वती को अमरकथा सुनाने ले जा रहे थे, तब उन्होंने रास्ते में सबसे पहले पहलगाम में अपने नंदी (बैल) का परित्याग किया। इसके बाद चंदनबाड़ी में अपनी जटा से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील पर पहुंच कर उन्होंने गले से सर्पों को भी उतार दिया। प्रिय पुत्र श्री गणेश जी को भी उन्होंने महागुणस पर्वत पर छोड़ देने का निश्चय किया। फिर पंचतरणी नामक स्थान पर पहुंच कर भगवान शिव ने पांचों तत्वों का परित्याग किया।