कलाप्रेमियों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं अजंता-एलोरा की गुफाएं

विश्वप्रसिद्ध अंजता-एलोरा की गुफाएँ हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रही हैं। यहाँ की सुंदर चित्रकारी व मूर्तियाँ कलाप्रेमियों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं हैं। हरीतिमा की चादर ओढ़ी यहाँ की चट्टानें अपने भीतर छुपे हुए इतिहास के इस धरोहर की गौरवगाथा बयाँ कर रही हैं। विशालकाय चट्टानें, हरियाली, सुंदर मूर्तियाँ और इस पर यहाँ बहने वाली वाघोरा नदी जैसे यहाँ की खूबसूरती को परिपूर्णता प्रदान करती है।अजंता-एलोरा की गुफाएँ महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप स्थित‍ हैं। ये गुफाएँ बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। 29 गुफाएँ अजंता में तथा 34 गुफाएँ एलोरा में हैं। अब इन गुफाओं को वर्ल्ड हेरिटेज के रूप में संरक्षित किया जा रहा है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी भी भारतीय कला की इस उत्कृष्ट मिसाल को देख सके।

प्रार्थना के लिए होता है इस्तेमाल

यहां 2 तरह की गुफाएं हैं- विहार और चैत्य गृह।।। विहार, बौद्ध मठ हैं जिसका इस्तेमाल रहने और प्रार्थना के लिए किया जाता था। यहां स्क्वेर शेप के छोटे-छोटे हॉल और सेल बने हुए हैं। सेल्स का इस्तेमाल बौद्ध भिक्षुओं द्वारा आराम करने और दूसरी गतिविधियों के लिए होता था जबकि बीच में मौजूद स्क्वेर स्पेस का इस्तेमाल प्रार्थना के लिए होता था। चैत्य गृह गुफाओं का इस्तेमाल प्रार्थना के लिए होता था। इन गुफाओं के आखिर में स्तूप बने हुए हैं जो भगवान बुद्ध का प्रतीक हैं।

गुफाओं का विकास

गुफाओं का विकास 200 ई।पू। से 650 ईस्वी के मध्य हुआ था। वाकाटक राजाओं जिनमें हरिसेना एक प्रमुख था, के संरक्षण में अजंता की गुफाएँ बौद्ध भिक्षुओं द्वारा उत्कीर्ण की गई थीं। अजंता की गुफाओं की जानकारी चीनी बौद्ध यात्रियों फ़ाहियान (चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान 380- 415 ईस्वी) और ह्वेन त्सांग (सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 606 - 647 ईस्वी) के यात्रा वृतांतों में पाई जाती है।

धार्मिक कला के उत्कृुष्टा नमूने

यूनेस्कोस द्वारा 1983 से विश्वक विरासत स्थ,ल घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्वीुरें और शिल्पनकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्कृरष्ट9 नमूने माने गए हैं और इनका भारत में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। रंगों का रचनात्मपक उपयोग और अभिव्य क्ति की स्वकतंत्रता के उपयोग से इन गुफाओं की तस्वी रों में अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए हैं, उन्हेंत कलात्मनक रचनात्मेकता का एक उच्चन स्तार माना जा सकता है। एलोरा में एक कलात्मजक परम्पररा संरक्षित की गई है जो आने वाली पीढियों के जीवन को प्रेरित और समृ‍द्ध करना जारी रखेंगी। न केवल यह गुफा संकुल एक अनोखा कलात्मीक सृजन है साथ ही यह तकनीकी उपयोग का भी उत्कृाष्टर उदाहरण है। परन्तु ये शताब्दियों से बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म के प्रति समर्पित है। ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है।

कैसे पहुँचें अजंता-एलोरा

औरंगाबाद से अजंता की दूरी - 101 किलोमीटर।औरंगाबाद से एलोरा की दूरी - 30 किलोमीटर। मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, नासिक, इंदौर, धूले, जलगाँव, शिर्डी आदि शहरों से औरंगाबाद के लिए बस सुविधा उपलब्ध है। सोमवार का दिन छोड़कर आप कभी भी अंजता- एलोरा जा सकते हैं। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से दिल्ली व मुंबई के लिए ट्रेन सुविधा भी आसानी से मिल जाती है। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन के पास महाराष्ट्र पर्यटन विभाग का होटल है। इसके अलावा आप शिर्डी या नासिक में भी रात्रि विश्राम कर सकते हैं।