श्री राम का साथ देने वाले विभीषण का एकमात्र मंदिर बना है यहां, होली के दूसरे दिन किया जाता है हिरण्यकश्यप का दहन

कैथून नगर आज कोटा शहर का ही उपनगर बन गया है लेकिन उसका इतिहास कोटा के बसने से भी हजारों साल पुराना है। उसके साथ प्राचीन काल से किवदंतीया जुड़ी है लेकिन अपनी तीन विशेषताओं के लिए कैथून जगत विख्यात है। पहली विशेषता तो कोटा मसूरिया या डोरिया की साड़ियां हैं। जिन्होंने देश विदेश में अपनी पहचान बनाई है। दूसरी विशेषता यहां का विभीषण मंदिर है जो देश का एकमात्र मंदिर है। तीसरी बड़ी विशेषता यह है कि होलिका दहन के अगले दिन यानी धूलंडी की शाम को हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन भी किया जाता है।

यहां बना है देश का एकमात्र विभीषण का मंदिर

कैथून नगर में देश का एकमात्र विभीषण मंदिर बना हुआ है। के एक विशाल चबूतरे पर विशाल छतरी के मध्य महाराज विभीषण जी की विशाल प्रतिमा है। जिसका धड़ से ऊपर का भाग दिखाई देता है। शेष भाग जमीन में धंसा हुआ है। लोगों का कहना है कि यह प्रतिमा भी हर साल दाने के बराबर जमीन में धंसती जा रही है। छतरी के बारे में कहा जाता है कि इसे महाराव उम्मेद सिंह प्रथम सन 1770 -1821 ने बनवाया था। मंदिर के समीप एक प्राचीन कुंड है। जिसके पास विक्रम संवत 1815 का शिलालेख लगा हुआ है। जिसका जीर्णोद्धार महाराजा दुर्जन सिंह के समय गौतम परिवार ने करवाया था। उसी गौतम परिवार के सदस्य आज भी नवरात्र के दौरान यहाँ पूजा करने आते हैं। हर साल मेले के लिए 10 लाख से अधिक का चंदा इकट्ठा होता है। जिसमें समस्त आयोजनों के बाद जो धनराशि बचती है वह मंदिर व धर्मशाला पर खर्च की जाती है।

होली के अगले दिन किया जाता है हिरण्यकश्यप का दहन

यहाँ के लोग दोपहर 1:00 बजे तक धुलेंडी खेलते हैं। इसके बाद नहा धोकर धर्मशाला से शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें चारभुजा मंदिर, जागों, सुनारों और तेलियों के मंदिर से विमान शामिल होते हैं। इसके बाद विशाल जनसमूह और के बीच हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन किया जाता है। रात्रि में स्वर्णकार समाज के लोग विभीषण मंदिर पर एकत्र होते हैं। जिन भी परिवारों में बीते साल में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है, वह लड्डू बांटते हैं। स्वर्णकार समाज अपनी इस परंपरा को 500 साल से भी अधिक समय से निभाता आ रहा है।

इसके पीछे है पौराणिक कहानी

केवल धर्म का साथ देने की वजह से ही विभीषण का मंदिर कैथून में बना हो ऐसा नहीं है इसके पीछे भी एक प्राचीन किवदंती है। दशरथ नंदन श्री राम के राज्याभिषेक के समय समस्त लोकों से देवी-देवता, ऋषि मुनि, राजा महाराजा अयोध्या पधारे थे। इस अवसर पर भगवान शंकर ने हनुमान जी से भारत भ्रमण की इच्छा व्यक्त की। इस वार्तालाप को विभीषण ने सुना तो उन्होंने निवेदन किया कि मैं आप दोनों को कावड़ में बिठाकर यात्रा करने की इच्छा रखता हूं। उन्होंने रामस्नेही विभीषण की यह विनती स्वीकार कर ली लेकिन साथ ही यह शर्त भी लगा दी कि इस यात्रा के दौरान कावड़ जहां भी भूमि से टिक जाएगी वहां यात्रा समाप्त हो जाएगी विभीषण जी ने लकड़ी की एक विशाल कावड़ जिसकी एक सिरे से दूसरे सिरे की लंबाई 8 कोस यानी 32 किलोमीटर थी। इस के एक पल्ले में भगवान शंकर और दूसरे में हनुमान जी को बिठाकर विभीषण जब प्राचीन नगर कौथुनपुर या कनकपुरी से गुजर रहे थे तो उसी समय भगवान महादेव वाला जमीन पर टिक गया। यह स्थान कैथून से चार कोस यानी 16 किलोमीटर दूर स्थित चार चोमा में है। यहां भगवान महादेव ने अपनी यात्रा समाप्त कर दी। यहां चोमेश्वर महादेव के नाम से अति प्राचीन मंदिर स्थित है। यहां सोरती के नाम से मेला भरता है। मंदिर की सीढ़ियों के बाई और कावड़ का अभी भी रखा हुआ है।

5000 साल से अधिक पुराना है मंदिर

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। यह करीब 5000 साल पुरानी बात है। ऐसे में यह विभीषण मंदिर भी उनके राजा बनने के बाद ही स्थापित किए जाने का अनुमान है। स्थानीय लोगों का भी यह मानना है और यहां दर्शाए गए इतिहास में भी यही बताया गया है।