अभी महाबलीपुरम का 'कृष्णा बटर बॉल' सुर्ख़ियों में बना हुआ हैं जहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग घूमने के लिए गए थे। यह एक बड़ी चट्टान हैं जो अभी सुर्ख़ियों में बनी हुई है साथ ही यह काफी लम्बे समय से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। क्योंकि यह 250 टन वजनी पत्थर हैं जो बिना किसी सहारे के एक ही स्थान पर टिका हुआ हैं। यह पत्थर करीब 45 डिग्री के स्लोप पर पिछले 1300 साल से महाबलिपुरम में है। कई प्राकृतिक आपदाओं और मानवीय प्रयास के बाद भी सभी विफल साबित हुए हैं। इस पत्थर का संबंध श्रीकृष्ण से भी जुड़ा हुआ हैं।
इस पत्थर पर गुरुत्वाकर्षण का भी कोई असर नहीं है। उधर, स्थानीय लोगों का मानना है कि या तो ईश्वर ने इस पत्थर को महाबलीपुरम में रखा था जो यह साबित करना चाहते थे कि वह कितने शक्तिशाली हैं या फिर स्वर्ग से इस पत्थर को लाया गया था। वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि यह चट्टान अपने प्राकृतिक स्वरूप में है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि धरती में आए प्राकृतिक बदलाव की वजह से इस तरह के असामान्य आकार के पत्थर का जन्म हुआ है। 'भगवान कृष्ण का माखन'
इस बीच हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों का मानना है कि भगवान कृष्ण अक्सर अपनी मां के मटके से माखन चुरा लेते थे और यह प्राकृतिक पत्थर दरअसल, श्रीकृष्ण द्वारा चुराए गए मक्खन का ढेर है जो सूख गया है। कृष्णा बॉल को देखकर ऐसा लगता है कि यह कभी भी गिर सकता है लेकिन इस पत्थर को हटाने के लिए पिछले 1300 साल में कई प्रयास किए लेकिन सभी विफल रहे। पहली बार सन 630 से 668 के बीच दक्षिण भारत पर शासन करने वाले पल्लव शासक नरसिंहवर्मन ने इस हटाने का प्रयास किया। उनका मानना था कि यह पत्थर स्वर्ग से गिरा है, इसलिए मूर्तिकार इसे छू न सकें। पल्लव शासक का यह प्रयास विफल रहा।सात हाथी मिलकर भी नहीं हटा सके यह पत्थर
वर्ष 1908 में ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास के गवर्नर आर्थर लावले ने इसे हटाने का प्रयास शुरू किया। लावले को डर था कि अगर यह विशालकाय पत्थर लुढ़कते हुए कस्बे तक पहुंच गया तो कई लोगों की जान जा सकती है। इससे निपटने के लिए गवर्नर लावले ने सात हाथियों की मदद से इसे हटाने का प्रयास शुरू किया लेकिन कड़ी मशक्कत के बाद भी यह पत्थर टस से मस नहीं हुआ। अतत: गवर्नर लावले को अपनी हार माननी पड़ी। अब यह पत्थर स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।