भारत के ये 8 मंदिर हुए थे मुस्लिम आक्रांताओं का शिकार, तोड़ने के बाद भी हैं इनका अस्तित्व

भारत का इतिहास बेहद उतार-चढ़ाव वाला रहा हैं जहां कभी मुगलों तो कभी अंग्रेजों ने राज किया। 7वीं सदी के प्रारंभ में मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत में इस्लामिक शासन की स्थापना करने के उद्देश्य से आक्रमण किया और 16वीं सदी तक लूटपाट करते हुए अपना साम्राज्य चलाया। इस दौरान कई मुग़ल शासक ऐसे आए जिन्होनें अपनी विचारधारा के चलते हिन्दू मंदिरों को नुकसान पहुंचाया और तोड़फोड़ की। इन क्रूर शासकों में सबसे ऊपर नाम औरंगजेब का आता है। हजारों सालों तक मुगलों ने भारत में मौजूद कई स्मारकों का विनाश किया। आज इस कड़ी में हम आपको कुछ चुनिंदा मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जो मुस्लिम आक्रांताओं का शिकार हुए और इन्हें तोड़ने के बाद भी आज इनका अस्तित्व हैं। आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...

मोढेरा सूर्य मंदिर

यह मंदिर गुजरात के अहमदाबाद से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है, जबकि पाटन नामक स्थान से 30 किलोमीटर दक्षिण की ओर 'मोढेरा' नामक गांव में नदी के तट पर प्रतिष्ठित है। इसका निर्माण सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ईस्वी में करवाया था। मुस्लिम आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था। यहां पर उसने लूटपाट की और मंदिर की अनेक मूर्तियों को खंडित कर दिया।

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर को 1194 में सबसे पहले मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वाया था। बाद में इसे एक गुजराती व्यापारी ने बनवाया लेकिन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने फिर तुड़वा दिया। बाद में 1585 में टोडरमल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। फिर 1632 में शाहजहां ने मंदिर तोड़ने के लिए सेना भेजी, लेकिन हिंदुओं के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो पाया। फिर 1669 में औरंगजेब ने एक फरमान जारी करते हुए मंदिर को तुड़वाया। औरंगजेब ने ही मंदिर की जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी।

सोमनाथ मंदिर

गुजरात में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग में सर्वप्रथम सोमनाथ मंदिर में 17 बार इस्लामिक आक्रमणकारियों ने हमला किया और इसे नष्ट किया। इस मंदिर का उल्लेख महाभारत, श्रीमद्भागवत पुराण तथा स्कंद पुराण में काफी विस्तार से आता है। सोमनाथ मंदिर को काफी बर्बरता के साथ मुगल शासकों द्वारा छह बार नष्ट किया गया था। लेकिन जितनी बार इसे तोड़ा गया, उतनी बार हिंदुओं द्वारा इसे बनवाया भी गया। आपको बता दें, मंदिर का विनाश दिल्ली के जुनैद, महमूद गजनी, और अंतिम मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा किया गया था। मंदिर के वर्तमान स्वरूप को भारत के स्वतंत्रता के पश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में पूरा किया गया।

हम्पी के मंदिर

भारत के कर्नाटक में स्थित हम्पी में दुनिया का विशालकाय मंदिर था। हालांकि, मुगल आक्रांताओं के आक्रमण के बाद ये खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। कृष्णदेव राय ने 1509 से 1529 के बीच यहां शासन किया था। उनकी मृत्यु के बाद बीदर, बीजापुर और अहमदनगर की मुस्लिम सेनाओं ने 1565 में हम्पी के मंदिरों पर हमला कर दिया। यहां मंदिर तोड़ने के साथ ही सारी संपत्ति भी लूट ली गई।

मार्तण्ड सूर्य मंदिर

यह कश्मीर के पुराने मंदिरों में शुमार होता है और श्रीनगर से 60 किलोमीटर दूर दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग जिले में है। यह मंदिर अनंतनाग से पहलगाम के बीच मार्तण्ड नाम के स्थान पर स्थित एक पठार पर है जिसे मटन कहा जाता है। कश्मीर घाटी में लगभग 8वीं शताब्दी में बने ऐतिहासिक और विशालकाय मार्तण्ड सूर्य मंदिर को मुस्लिम शासक सिकंदर बुतशिकन ने तुड़वाया था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इस मंदिर को कर्कोटा समुदाय के राजा ललितादित्य मुक्तिपाडा ने 725-61 ईस्वी के दौरान बनवाया था।

द्वारका मंदिर

मध्ययुगीन काल में, द्वारका पर सबसे पहले मोहम्मद शाह ने आक्रमण किया था और फिर उसे तोड़ दिया गया। मंदिर को नष्ट होने से बचाने के लिए, पांच ब्राह्मणों ने भी काफी संघर्ष किया, लेकिन आखिर में वो भी मारे गए। उसके बाद, महमूद बेगड़ा ने 1472 ईस्वी में शहर पर हमला किया और लूट लिया और द्वारका के मंदिर को नष्ट कर दिया, जिसे हिंदुओं द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।

मदन मोहन मंदिर

उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन नगर में वैष्णव संप्रदाय का मदन मोहन नामक मंदिर स्थित है। इसका निर्माण 1590 ई। से 1627 ईस्वी के बीच मुल्तान के रामदास खत्री या कपूरी द्वारा करवाया गया था। भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम मदन मोहन भी है। भगवान मदन गोपाल की मूल प्रतिमा आज इस मंदिर में नहीं है। मुगल शासन के दौरान इसे राजस्थान स्थानांतरित कर दिया गया था। आज मंदिर में उस प्रतिमा की प्रतिकृति की पूजा की जाती है, जबकि मूल प्रतिमा आज भी राजस्थान के कारौली में है, क्योंकि औरंगजेब काल में इस मंदिर को तोड़ दिया गया था। 1819 ईस्वी में नंदलाल वासु ने इसे पुन: बनवाया था। दूसरे प्राचीन निर्माणों की तुलना में यह मंदिर थोड़ा छोटा है, लेकिन इसमें की गई नक्काशी बेहद खूबसूरत है। इसका रंग लाल है और यह ऊंचा, लेकिन संकरा है। हालांकि इसे देखकर आपको भव्यता और दिव्यता का अहसास जरूर होगा।

मथुरा का कृष्ण मंदिर

महमूद गजनवी मथुरा पर आक्रमण करने वाले पहला मुगल आक्रांता था। उसने 1017-18 में शहर के मंदिरों को जलाकर मथुरा को लूटा था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव ने 1150 ईस्वी में बनवाया था। बाद में औरंगजेब ने 1660 में मथुरा के कृष्ण मंदिर को तुड़वाकर ईदगाह मस्जिद बनवाई। मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है और उसी जन्मभूमि के आधे हिस्से पर बनी है ईदगाह, जो कि आज भी विद्यमान है। 1669 में इस ईदगाह का निर्माण कार्य पूरा हुआ था।