Ganesh Chaturthi 2018 : इस मंदिर में अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं श्रीगणेश, माना जाता है विश्व का पहला गणेश मंदिर

गणेश चतुर्थी का पावन पर्व पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। इस दिन सभी लोग गणेशजी की प्रतिमाएं अपने घर में स्थापित करते हैं और मंदिरों में गणपति जी के दर्शन करने जाते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन इन मंदिरों में विशेष आयोजन किये जाते हैं। आज हम आपको गणपति जी के उस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां वे अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के रणथंभौर में स्थित प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश के बारे में। तो आइये जानते हैं इस मंदीर के बारे में।

हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर की। इसे रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर की। इसे रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचयाचल की पहाड़ियों में स्थित है। सबसे बड़ी खासियत यह यहां आने वाले पत्र। घर में शुभ काम हो तो प्रथम पूज्य को निमंत्रण भेजा जाता है। इतना ही नहीं परेशानी होने पर उसे दूर करने की अरदास भक्त यहां पत्र भेजकर लगाते है। रोजाना हजारों निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहां डाक से पहुंचती हैं। कहते है यहां सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी होती है।

महाराजा हम्मीरदेव चौहान व दिल्ली शासक अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध 1299-1301 ईस्वी के बीच रणथम्भौर में हुआ। इस दौरान नौ महीने से भी ज्यादा समय तक यह किला दुश्मनों ने घेरे रखा। दुर्ग में राशन सामग्री समाप्त होने लगी तब गणेशजी ने हमीरदेव चौहान को स्वप्न में दर्शन दिए और उस स्थान पर पूजा करने के लिए कहा जहां आज यह गणेशजी की प्रतिमा है। हमीर देव वहां पहुंचे तो उन्हे वहां स्वयंभू प्रकट गणेशजी की प्रतिमा मिली। हमीर देव ने फिर यहां मंदिर का निर्माण कराया।

त्रिनेत्र गणेश जी का उल्लेख रामायण काल और द्वापर युग में भी मिलता है। कहा जाता हैं कि भगवान राम ने लंका कूच से पहले गणेशजी के इसी रूप का अभिषेक किया था। एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था। इस विवाह में वे गणेशजी को बुलाना भूल गए। गणेशजी के वाहन मूषकों ने कृष्ण के रथ के आगे-पीछे सब जगह खोद दिया। कृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया। तब गणेशजी हर मंगल कार्य करने से पहले पूजते है। कुष्ण ने जहां गणेशजी को मनाया वह स्थान रणथंभौर था। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है। मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे।

इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहां गणेश जी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है। देश में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम है। इस मंदिर के अलावा सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्दपुर सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है। यहां भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को मेला आयोजित होता है जिसमें लाखों भक्त गणेशजी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते है। इस दौरान यहां पूरा इलाका गजानन के जयकारों से गूंज उठता है।