इन मंदिरों से हैं उदयपुर की धार्मिक पहचान, दर्शन मात्र से मिलेगी मन को शांति

राजस्थान के पर्यटन स्थलों की बात आती हैं तो ऐसे कई शहरों का नाम सामने आता हैं जिन्हें देशभर में पहचाना जाता हैं। इन्हीं शहरों में से एक हैं उदयपुर जिसे अपनी झीलों, महलों और शाही रहन-सहन के लिए जाना जाता हैं। उदयपुर शहर अपनी सांस्कृतिक पहचान के लिए राजस्थान में एक अलग पहचान रखता है। उदयपुर घूमने जाने वाले लोग यहां के प्राकृतिक सौंदर्य और सुंदरता का आनंद लेते हैं। लेकिन इसी के साथ ही यहां पर कई मंदिर भी हैं जो उदयपुर की धार्मिक पहचान बनते हैं। आज हम आपको यहां जिन मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं उनके दर्शन मात्र से ही मन को शांति सुर सुकून की प्राप्ति होती हैं। आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...

श्री जगदीश मंदिर

उदयपुर में सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक, श्री जगदीश मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह तीन मंजिला मंदिर 1651 में महाराणा जगत सिंह द्वारा बनवाया गया था। इंडो-आर्यन स्थापत्य शैली में डिज़ाइन किए गए इस मंदिर में एक पिरामिड शिखर, मंडप और बरामदा है। इस मंदिर का शिखर लगभग 79 फीट लंबा है और इसे आप दूर से आसानी से भी देख सकते हैं। मुख्य मंदिर में काले पत्थर में भगवान विष्णु की चार भुजाओं वाली मूर्ती है और इसके चारों ओर चार छोटे मंदिर भी मौजूद हैं। इस मंदिर के निर्माण में स्वप्न संस्कृति का बड़ा महत्वपूर्ण योग रहा है। इसलिए इसे सपने से बना मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर पंचायतन शैली में निर्मित है।

बोहरा गणेश मंदिर

यह मंदिर उदयपुर के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है जो कि 350 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है। यह गणपति नगर में मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के पास स्थित है। यहां पर खड़े गणेश जी की पूजा की जाती है। कहते हैं कि 80 वर्षों पूर्व आसपास के गाँवो के कुछ लोगों ने इस मंदिर के दर्शन किये थे और अपनी समस्या गणेश जी को बताई। उसके बाद उनकी सभी समस्याएं दूर हो गई। तब से यह मंदिर उदयपुर में अपनी एक अलग पहचान रखता है।

एकलिंग जी का मंदिर

ये मंदिर कैलाशपुरी में स्थित है इस मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने आठवीं सदी में करवाया था तथा इस मंदिर के परकोटे का निर्माण राणा मोकल ने करवाया था। एकलिंग जी को मेवाड़ के राजाओं का कुल देवता माना जाता है तथा मेवाड़ के महाराणा स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानते हैं। मंदिर को वर्तमान स्वरूप महाराणा रायमल ने प्रदान किया। यह उदयपुर राजाओं के कुलदेवता का मंदिर कहलाता है। मंदिर के चारों ओर विशाल परकोटा है। यहाँ शिवरात्रि को विशाल मेला लगता है। यह मंदिर राज्य में पाशुपत सम्प्रदाय का सबसे प्रमुख स्थल है।

महालक्ष्मी मंदिर

महालक्ष्मी मंदिर धन और समृद्धि की देवी को समर्पित है। देवी को श्रीमाली समाज की पारिवारिक देवी माना जाता है, और मंदिर को मैनेज श्रीमाली जाति संपति ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। हालांकि मंदिर में रोजाना कई भक्त आते हैं, लेकिन दिवाली के त्यौहार के दौरान यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है। श्राद्ध पक्ष के आठवें दिन देवी के जन्मदिन पर भी लंबी कतारें देखी जा सकती हैं, क्योंकि यह दिन यहां बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है।

करनी माता मंदिर

उदयपुर में दूध तलाई झील के पास मचला मगर की पहाड़ियों पर स्थित करनी माता का एक सुंदर मंदिर है। यहां पर आप सीढ़ियों से चढ़ाई करके या फिर रोपवे की सहायता से पहुँच सकते है। यह मंदिर अपनी जगह व यहां से मिलने वाले अद्भुत दृश्य के कारण भी प्रसिद्ध है। यहां से आपको उदयपुर शहर के खूबसूरत नज़ारे के साथ-साथ अरावली की पहाड़ियों व पिछोला झील का मनोहर दृश्य दिखाई देगा।

महाकालेश्वर मंदिर

महाकालेश्वर मंदिर उदयपुर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह फतेह सागर झील के पास, पन्ना विलास के सामने एक शानदार बैकग्रॉउंड के साथ स्थित है। मंदिर भगवान शिव (महाकाल) को समर्पित है और माना जाता है कि यह 900 वर्ष से अधिक पुराना है। लोककथाओं के अनुसार, लोकप्रिय संत और भगवान शिव भक्त गुरु गोरखनाथ ने इस धार्मिक स्थल पर पूजा की थी। इस खूबसूरत नक्काशीदार मंदिर के मुख्य मंदिर में काले पत्थर का शिवलिंग है। मंदिर में प्रतिदिन आरती की जाती है, लेकिन रुद्राभिषेक आरती मुख्य आकर्षण है, जो बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करती है। परिसर के भीतर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित कई अन्य छोटे मंदिर भी हैं।

अम्बा माता मंदिर

यह उदयपुर में फतेह सागर झील के किनारे स्थित माता अम्बा का प्रसिद्ध मंदिर है। इसके पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। कहते हैं कि 17वी सदी में महाराजा राज सिंह को आँख की एक भयानक बीमारी थी जिसके लिए वे गुजरात में स्थित प्रसिद्ध अम्बिका माता के मंदिर जाने वाले थे लेकिन उससे पहले ही माँ अम्बा ने उनके सपने में आकर उदयपुर में ही एक जगह बताई। अगले दिन राजा ने वहां की खुदाई करवाई जिसमे से माँ अम्बा की मूर्ति निकली। उसके बाद महाराजा ने वहां अम्बा माता का विशाल मंदिर बनवाया और उनकी आँख की समस्या भी पूरी तरह से ठीक हो गई।