आप प्रकृति प्रेमी हैं और घुमक्कड़ भी तो हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का कालाटोप आपकी मंजिल हो सकता है। चंबा को वैसे तो प्रकृति ने कई नेमत बख्शी हैं, मगर इस जिले के कई इलाके प्रकृति के सान्निध्य में बसे होने के गौरव को जीते हैं। आप प्रकृति से सीधा साक्षात्कार करने के आकांक्षी हैं तो कालाटोप आना आपको भरपूर आनंद देगा। यहां की आबोहवा आपको लौटने नहीं देगी। आसमान छूते देवदार के पेड़ और खामोश वातावरण को छेड़ती पक्षियों की आवाजें आपको मंत्रमुग्ध कर देंगी। करीब बीस वर्ग किलोमीटर में फैला कालाटोप जंगल हर पल आपको ताजगी का एहसास करवाता है।
चंबा का संरक्षित वन्यजीव अभयारण्य कालाटोप किसी भी आगंतुक को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम है। कालाटोप सेंक्चुरी खज्जियार और डलहौजी के बीच स्थित है। दिसंबर के अंत और जनवरी में यहां काफी बर्फबारी भी होती है, मानों चारों ओर चांदी ही चांदी बिखरी पड़ी हो।
पंडित जवाहरलाल नेहरू जब इस क्षेत्र के दौरे पर (1954 में) आए थे, तब उन्होंने धौगरी समुदाय के लोगों को स्थायी रूप से यहां रहने की इजाजत दी थी और तब से ये सेंक्चुरी शायद पहली ऐसी सेंक्चुरी है, जिसमें मानव बस्ती है। हालांकि यहां मात्र 75 के करीब ही घर हैं। दअसल लॉर्ड डलहौजी के नाम पर बसे डलहौजी शहर में जब अंग्रेजों ने रहना शुरू किया, तब कालाटोप के घने जंगलों से कोयला बनाने की योजना थी। कालाटोप में जो मानव बस्ती है, उसका नाम लकड़मंडी है। इस नाम के पीछे वजह यह बताई जती है कि देवदार के घने जंगलों से लकड़ी काट कर यहां रखी जती थी। कालाटोप जंगल के बीच में प्राकृतिक ट्रैकिंग रूट ट्रैकर्स के लिए बेहद रोमांचकारी है। कई वन्य पक्षी भी इस जंगल में रहते हैं, जिनमें विलुप्त हो रहे चकोर जसे पक्षी सैलानियों का ध्यान आकर्षित करते हैं। इस जंगल में कई प्रकार की जड़ी-बूटियों का खजना भी है, जिसमें ब्रह्मी, टैक्सस और बेकाय के पेड़ प्रमुख हैं।
ठहरने के लिए कालाटोप जंगल के बीच दो कमरों का विश्राम गृह है, जिसे डाक बंगले की संज्ञा दी गई है। यहां ठहरने के लिए आपको चंबा के वाइल्ड लाइफ अधिकारी (डीएफओ), जो इसके वार्डन भी हैं, से संपर्क करना होगा। इसके अलावा यहां से 11 कि.मी. दूर खज्जियार और 26 कि.मी. दूर डलहौजी के होटलों में ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था है। मार्च से नवंबर के बीच आप कभी भी यहां घूमने आ सकते हैं, मगर ठंडा मौसम होने की वजह से गर्म कपड़े और रेन-कोट इत्यादि ले जाना न भूलें।
दिल्ली से यहां की दूरी 520 कि.मी. और चंबा से 24 कि.मी. है। अगर आप रेलगाड़ी से आ रहे हैं तो पठानकोट आकर आप टैक्सी या बस द्वारा यहां पहुंच सकते हैं। हवाई जहाज से भी आप पठानकोट तक ही पहुंच सकते हैं और गगल हवाई अड्डे पर उतर कर आप 125 कि.मी. का सफर टैक्सी या बस द्वारा तय कर सकते हैं। प्रकृति की गोद में बसे कालाटोप के जंगल आपको सन्नाटे की लोरियां सुनाते हैं तो वन्य प्राणियों की आवाजें आपकी नींद खोलती हैं। ऐसे नजरे की कल्पना नहीं की ज सकती, बल्कि रू-ब-रू होकर ही प्रकृति से सीधा साक्षात्कार किया ज सकता है। लेकिन हां, जंगल में जब भी घूमने निकलें तो चीते, भालू, जंगली गाय से सावधान रहें। यहां आप प्रकृति के मेहमान हैं तो खतरे से सावधान रहना आपका दायित्व है। काले भालू सर्दियों में अक्सर मानव बस्तियों का रुख करते हैं। यहां का शानदार मौसम और कान खुजलाते सन्नाटे का आनंद आपको कुछ और दिन रहने का आग्रह जरूर करेगा।