शिवभक्ति का सबसे बड़ा सबूत हैं शिव का एक धाम, 'बैजनाथ धाम'

सावन के इस महीने में भोले भंडारी अपने भक्तों की इच्छाओं को सुनते हैं और उन्हें पूरी करने का वरदान देते हैं। हांलाकि बाकी दिनों में भी भोले भंडारी अपने भक्तों की सुनते हैं, लेकिन सावन के दिनों में की गई भगवान शिव की भक्ति विशेष फल प्रदान करती हैं। शिव अपने भक्तों की सुनते हैं, तभी तो शिव भक्तों के भी प्रिय देवता हैं और लोग शिवभक्ति में तल्लीन रहते हैं। शिवभक्ति का सबसे बड़ा सबूत हैं शिव का एक धाम, बैजनाथ धाम। शिव के इस धाम को उसके सबसे बड़े भक्त अर्थात रावण के लिए भी जाना जाता हैं। तो आइये जानते हैं इस धाम के बारे में।

हिमाचल की खूबसूरत और हरी-भरी वादियों में धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसा प्राचीन शिव मंदिर महादेव के सबसे बड़े भक्त की भक्ति की कहानी सुनता है। यहीं पर स्थापित है वो शिवलिंग, जो देखने में तो किसी भी आम शिवलिंग की तरह है। लेकिन इसका स्पर्श भक्तों को अनूठा एहसास देता है। इस शिवलिंग की आराधना भक्तों में असीम शक्ति भर देती है क्योंकि ये रावण का वो शिवलिंग है, जिसकी वो पूजा करता था। किवदंतियों की मानें तो रावण इसी शिवलिंग को अपने साथ लंका ले जाना चाहता था।

हिमाचल के कांगड़ा से 54 किमी और धर्मशाला से 56 किमी की दूरी पर बिनवा नदी के किनारे बसा है बैजनाथ धाम। जो अपने चारों ओर मौजूद प्राकृतिक सुंदरता की वजह से एक विशिष्ट स्थान रखता है। कहते हैं 12वीं शताब्दी में मन्युक और आहुक नाम के दो व्यापारियों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था उसके बाद राजा संसार चंद मे इस मंदिर का जीर्णोंद्धार करवाया।

पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में रावण ने शिवजी की तपस्या की थी। कठोर तप के बाद भी जब महादेव प्रसन्न नहीं हुए तो अंत में रावण ने एक-एक कर अपने सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर भगवान शिव को अर्पित करना शुरू कर दिया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया और एक वैद्य की तरह ही रावण के सभी सिरों को पुन:स्थापित कर दिया।
रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। शिवजी ने तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गए। अंतर्ध्यान होने से पहले शिवजी ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह रावण को देने से पहले कहा था कि इन्हें जमीन पर मत रखना। जब रावण लंका को चला तो रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र में पहुंचा तो रावण को लघुशंका लगी। उसने बैजु नाम के ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकडा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के वजन को ज्यादा देर न सह सका और उन्हें धरती पर रख कर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण के दोनों शिवलिंग रखे थे उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था वह चन्द्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से जाना गया।