भरत को अपने ऐतिहासिक किलों और महलों के लिए जाना जाता हैं जिसमें से कुछ अपनी भव्यता के चलते पर्यटन में अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। ऐसा ही एक महल है मैसूर का जिसकी सुंदरता और भव्यता दिन और रात दोनों समय में देखते ही बनती हैं। मैसूर पैलेस भारत के कर्नाटक राज्य में मैसूर शहर में स्थित एक ऐतिहासिक ईमारत है, जिसे अंबा विलास पैलेस के नाम से भी जाना जाता हैं। दिन के समय सूरज की रोशनी में इसके लाल रंग के गुंबद और विशाल परिसर का अद्भुत दृश्य आपको साफ़ नज़र आता है। रात के समय मैसूर महल में रंग बिरंगी लाइट्स की सजावट उसे हीरे सी चमकदार बनाती है। यह पैलेस कर्नाटक में स्थित अन्य पर्यटन स्थलों की तुलना में लोगों द्वारा काफी ज्यादा पसंद किया जाता है। आज इस कड़ी में हम आपको मैसूर पैलेस से जुड़ी रोचक जानकारी के बारे में बताने जा रहे हैं।
मैसूर पैलेस का इतिहास मैसूर पैलेस का अपना एक समृद्ध इतिहास है जिसका निर्माण वाडियार राजवंश ने 14वीं शताब्दी में किया था। साल 1638 में महल को आसमान से बिजली गिरने के कारण बहुत क्षति पंहुची थी जिसे वहाँ के शासको ने पुनपरिष्कृत करवाया था। 1793 में हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान द्वारा वाडियार राजा को हटा के मैसूर की सत्ता संभाल ली गई थी जिसके शासन के दौरान इस महल को मुस्लिम वास्तुकला शैली में ढाल दिया गया था। 1799 में जब टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई थी तो वाडियार राजवंश के पांच वर्ष के राजकुमार कृष्णराजा वाडियार तृतीय को राज सिंहासन पर बैठा दिया गया था जिसके बाद उन्होंने इस महल को पुन: हिंदू वास्तुकला शैली में बनवाया जो 1803 तक पूर्ण कर लिया गया था। 1897 में राजकुमारी जयलक्ष्स्मानी के विवाह समारोह के दौरान इस महल में आग लग गई थी जिसके कारण पूरा महल बर्बाद हो गया था। जिसके पुनर्निर्माण के लिए रानी केम्पा नानजमानी देवी ने प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन को नियुक्त किया। हेनरी इरविन ने महल को 1897 में बनाना शुरू कर दिया और लगभग 15 वर्षो के बाद 1912 में इसे पूर्ण रूप से बनाकर रानी को सौंप दिया था।
मैसूर पैलेस की संरचना मैसूर पैलेस में गुंबदों की स्थापत्य शैली को हिंदू, राजपूत, मुगल और गोथिक शैलियों के मिश्रण के साथ इंडो-सरैसेनिक के रूप में तैयार किया गया हैं। मैसूर किले की यह तीन मंजिला ईमारत में संगमरमर की गुम्बद और 145 फिट ऊंचे पत्थर की संरचना हैं। किला एक शानदार बगीचे से घिरा हुआ हैं। पैलेस की संरचना में मुख्य परिसर की लम्बाई 245 फुट और चौड़ाई 156 फुट फुट आंकी गई हैं। महल में तीन द्वार – पूर्वी द्वार, दक्षिण प्रवेश द्वार और पश्चिम प्रवेश द्वार हैं। मैसूर पैलेस के अंदर कई महत्वपूर्ण सुरंगे बनी हुई हैं। इसके अलावा धन, समृधि, भाग्य की देवी लक्ष्मी की मूर्ती भी स्थित हैं।
इस पैलेस के ऊपरी भाग में स्थित गुंबद गुलाबी रंग के स्लेटी पत्थर से निर्मित है। इस महल के अंदर बने हुए एक बड़े से दुर्ग का गुंबद सोने की चादर से सजी हुई है। इस मैसूर पैलेस में राजाओं के रहने के लिए अलग कक्ष एवं आम आदमी को रहने के लिए अलग कक्ष बने हुए हैं। पैलेस पर पड़ने वाली सुबह की पहली किरण इसकी खूबसूरती में निखार ला देती है। इस मैसूर पैलेस के एक हिस्से में कई पौराणिक गुड़ियों का संग्रह भी देखने को मिल जाता है। इस पूरे मैसूर पैलेस में वर्तमान समय में तकरीबन 97000 बल्ब लगे हुए हैं, जो अपनी रोशनी से इस पैलेस की खूबसूरती को निखार लाती है।
पहले लकड़ी का बना था ये महलअपने वर्तमान स्वरूप में यह महल जैसा नजर आता है, वैसा यह अपने मूल स्वरूप में नहीं था। दरअसल पहले यह महल पूरी तरह से लकड़ी का बना था। माना जाता है कि 1897 में राजकुमारी जयालक्ष्मी के विवाह के समय यह महल जलकर खाक हो गया था। माना जाता है कि उस समय मैसूर में दरासा उत्सव मनाया जा रहा था।
महल के भीतर बने हैं 12 मंदिरइस रॉयल पैलेस में कुछ 12 मंदिर बने हुए हैं और एक मंदिर 14वीं सदी से भी ज्यादा पुराना है। इनमें कोडी भाररावास्वामी मंदिर, श्वेत वराहस्वामी मंदिर और त्रिनयश्वरा स्वामी मंदिर प्रमुख हैं। इन मंदिरों की स्थापत्य कला भी बरबस ही आकर्षित करती है।
भारत में दूसरा सबसे ज्यादा भ्रमण किया गया पैलेसमैसूर पैलेस को अंबा विलास पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। ताज महल के बाद यह देश का दूसरा सबसे अधिक विजिट किया जाने वाला पैलेस है। कोरोना के संक्रमण के कारण लॉकडाउन के समय को छोड़ दें तो इस भव्य ऐतिहासिक इमारत को देखने के लिए यहां सालभर सैलानियों का तांता लगा रहता है। खासतौर पर दसारा के जश्न के दौरान यहां सैलानियों का उत्साह देखते ही बनता है।
मैसूर पैलेस घूमने जाने का अच्छा समय मैसूर पैलेस घूमने जाने के बारे में आप विचार कर रहे हैं, तो आप यहां पर दशहरे के दौरान जाएं। क्योंकि यहां पर दशहरा काफी धूमधाम से मनाया जाता है। यहां पर जाने का अच्छा समय अक्टूबर से लेकर मार्च के बीच के समय को माना जाता है। इसके अलावा मैसूर पैलेस की खूबसूरती को देखना चाहते हैं, तो आप यहां पर शाम के वक्त आयें आपको यह पैलेस किसी और रूप में ही दिखेगा। यह विजिटर्स के लिए रोज खुला रहता है और इसकी टाइमिंग सुबह 10 बजे से शाम 5:30 बजे तक है। वहीं इसके इल्यूमिनेशन (जगमगाहट) का टाइम शाम 7 बजे से 7:45 तक है।
कैसे पहुंचें मैसूर पैलेस
फ्लाइट के ज़रिए : मैसूर का सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट न्यू बेंगलुरू इंटरनैशनल एयरपोर्ट है, जोकि पैलेस से करीब 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
ट्रेन के जरिए : मैसूर पैलेस घूमने के लिए यदि आपने ट्रेन का चुनाव किया हैं। तो बता दें कि मैसूर शहर रेल मार्ग के माध्यम से भारत के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशन से अच्छी तरह से जुड़ा हैं। मैसूर रेलवे स्टेशन शहर के केंद्र से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
कार या कैब के ज़रिए : अगर कार या कैब के ज़रिए बेंगलुरू से मैसूर जाएं तो सिर्फ 3 घंटे लगते हैं। आप चाहे तो बेंगलुरू से बस, ट्रेन या फिर टैक्सी ले सकते हैं। अगर खुद बेंगलुरू से मैसूर खुद ड्राइव करके जाना चाहते हैं तो मैसूर रोड यानी SH 17 रूट लें। इसके अलावा आप कनकपुरा रोड (NH 209) का रूट भी ले सकते हैं।