राजस्थान में जब भी कभी घूमने जाने की बात आती हैं तो ऐतिहासिक किलों का नाम सबसे ऊपर आता हैं जो पने गौरवान्वित इतिहास के लिए जाने जाते हैं। ऐसा ही एक किला हैं कुम्भलगढ़ का जिसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया हैं। इसी के साथ यह दुनिया में चीन के दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी दीवार के कारण भी प्रसिद्ध है। पूरे किले में लगभग 360 मंदिर है जिनमें से 300 जैन मंदिर और 60 हिन्दू मंदिर है जिनमे में विस्तृत रूप से और नाजुक नक्काशीदार संरचनाएं उपस्थित हैं। राणा कुम्भा के प्रभुत्व में 84 किले थे जिसमें से राणा कुंभा ने उनमें से 32 का निर्माण किया था, जिनमें से कुंभलगढ़ सबसे बड़ा और सबसे विशाल है।
कुम्भलगढ़ किले को खतरे के समय मेवाड़ के शासकों की शरण स्थली के रूप में इस्तेमाल किया गया। महाराणा प्रताप की जन्मस्थली भी यही कुम्भलगढ़ किला है, इस किले के निर्माण के साथ ही इस किले पर वर्षों तक बाहरी आक्रमणकारियों ने हमला किया लेकिन किसी को भी सफलता प्राप्त नही हुई, इतिहास सिर्फ एक बार इस किले पर दुश्मनो के द्वारा विजय प्राप्त की गई है अकबर के सेनापति, शब्बाज़ खान ने 1576 में किले पर अधिकार कर लिया था। लेकिन इसे 1585 में गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से महाराणा प्रताप ने वापस ले लिया था। जून 2013 में कम्बोडिया के नोम पेन्ह शहर में विश्व धरोहर समिति की 37वीं बैठक के दौरान राजस्थान के छह किलों, अर्थात्, अंबर किला, चित्तौड़ किला, गागरोन किला, जैसलमेर किला, कुंभलगढ़ और रणथंभौर किला को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया।
कुम्भलगढ़ किले की भौगोलिक स्थितिघने पहाड़ो के बीच स्थिति कुम्भलगढ़ किला पश्चिमी भारत में राजस्थान राज्य के उदयपुर के पास राजसमंद जिले में अरावली पहाड़ियों की विस्तृत श्रृंखला के बीच में स्थित है। राजस्थान का ये ऐतिहासिक का विश्व धरोहर स्थल में शामिल है। 15 वीं शताब्दी के दौरान राणा कुंभा द्वारा इस किले का निर्माण किया गया था। सड़क मार्ग से कुम्भलगढ़ और उदयपुर की दूरी मात्र 82 किमी है।
चित्तौड़गढ़ किले के बाद कुम्भलगढ़ किला यह मेवाड़ राज्य का उस समय का सबसे महत्वपूर्ण किला है। अरावली पर्वतमाला पर समुद्र तल से 1,100 मीटर (3,600 फीट) की ऊँचाई पर निर्मित, विश्व में कुंभलगढ़ के किले पहचान इस किले के चारों तरफ़ बनी हुई दीवार हैं जो 36 किमी (22 मील) लंबी और 15 फीट चौड़ी है, जो इसे दुनिया की सबसे लंबी दीवारों में से एक बनाती है।
कुंभलगढ़ में सात किलेबंद द्वार हैं। पर्यटक अरेट पोल, हनुमान पोल और राम पोल के माध्यम से किले में प्रवेश कर सकते हैं। अरेट पोल दक्षिण में स्थित है जबकि राम पोल उत्तर में है। हनुमान पोल में हनुमान की छवि है जिसे राणा कुम्भा मंडावपुर से लेकर आये थे। किले के परिसर में भैरों पोल, निम्बू पोल और पगारा पोल के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। पूर्व की ओर स्थित किले में एक और द्वार दानिबट्ट है। किले के भीतर 360 से अधिक मंदिर हैं, 300 प्राचीन जैन और 60 हिंदू मंदिर हैं। महल के शीर्ष भाग से, अरावली पर्वतमाला रेंज में कई किलोमीटर तक देखा जा सकता है किले की दीवारों से थार रेगिस्तान के रेत के टीलों को देखा जा सकता है।
कुम्भलगढ़ किले की दिवारकुंभलगढ़ के प्राचीन किले को चारों तरफ से घेरे हुए यह दीवार भारत के सबसे छुपे हुए रहस्यों से भरी हुई है इस दीवार को लेकर स्थानीय लोगो में बहुत सारी कहानियां भी सुनने को मिलती है। प्रमुख रूप से इस दीवार के निर्माण का कारण एक विशाल किले की बाहरी आक्रमण से रक्षा करना था इस दीवार का निर्माण राणा कुम्भा ने कुंभलगढ़ किले निर्माण के साथ किया था। किले के चारों और इस स्थिति इस दीवार की लम्बाई 36 किलोमीटर है और चौड़ाई 15 मीटर है कहा जाता है की इस दीवार पर एक साथ 10 घोड़े दौड़ सकते है। अपनी इसी लम्बाई के कारण ग्रेट वॉल ऑफ चाइना great wall of china के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है। इस दीवार को ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया भी कहते है।
कुंभलगढ़ किले के दर्शनीय पर्यटक स्थल
बादल महल कुम्भलगढ़कुम्भलगढ़ किले में सबसे ऊपर बादल स्थिति है। बादल महल एक दो मंजिला महल है। बदल महल के पूरे भवन को दो अलग-अलग भागों में विभाजित किया है, जिन्हें मर्दाना महल और जनाना महल कहा जाता है। बादल महल की बनावट 19वीं शताब्दी जैसी है महल के अंदर सुंदर रंगीन कमरे हैं,महल को पस्टेल रंग के भित्ति चित्र बनाये गए हैं। महल के कमरे को फ़िरोज़ा, हरे और सफेद रंग से रंगवाया गया हैं। किले में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित होने के काऱण इस महल को पैलेस ऑफ़ क्लाउड्स भी कहते है। किले के अंदर ये एक मुख्य आकर्षण है जानना महल, महल के इस भाग में पत्थर के जाली का उपयोग किया गया हैं, इन जालियों का उपयोग रानी अदालत की कार्यवाही और अन्य मुख्य घटनाओं को देखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। महल के कमरो वातानुकूलन प्रणाली बड़ी रचनात्मक है, जिससे ठंडी हवा को सुंदर कमरों में प्रवेश करती रहती है।
कुंभलगढ़ किले के अंदर ऐतिहासिक दृष्टि से दो अन्य महत्वपूर्ण स्थान और हैं महाराणा प्रताप का जन्म स्थान जिसे पगडा पोल के पास झलिया का मालिया कहा जाता है और आखिरी किलेदार गेट, निम्बू पोल के पास स्थित है। यह वह जगह है जो वफादार नौकर पन्नाधाय के सर्वोच्च बलिदान की गवाही देती है, जिन्होंने अपने पुत्र चंदन का बलिदान कुंवर उदयसिंह के प्राण बचाने के लिए कर दिया था और उनको सुरक्षित स्थान पर भेजकर युवा-महाराजा उदय सिंह को बचाया था।
नीलकंठ महादेव मंदिर कुम्भलगढ़ किले में सबसे महत्वपूर्ण और पूजनीय मंदिर नीलकंठ महादेव का मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इसके विशाल गोल गुंबद, जटिल नक्काशीदार छत पर 24 खंभे, चौड़े आंगन और 5 फीट ऊंचे लिंगम के साथ, मंदिर एक बेजोड़ स्थापत्य कला का नमूना पेश करता है। मान्यता है की महाराणा कुंभा भगवान शिव में गहरी आस्था थी इसलिए वे अपने दिन की शुरुआत भगवान शिव की प्रार्थना के बिना नहीं करते थे। एक दिलचस्प कहानी वहाँ पर ये भी सुनने को मिलती है की राणा कुम्भा की लंबाई इतनी थी के जब वह प्रार्थना करने बैठते थे तब उनकी आँखें मंदिर में स्थापित भगवान मूर्ति के आंखों के बराबर ही होती थी। महल के शिलालेख से पता चलता है कि मंदिर का नवीनीकरण राणा सांगा द्वारा किया गया था।
वेदी मंदिर कुम्भलगढ़वेदी मंदिर एक जैन मंदिर है जिसमें तीन मंजिला हैं और अष्टकोणीय आकार में बनाया गया था। मंदिर राणा कुंभा द्वारा बनाया गया था और यह हनुमान पोल के पास स्थित है। इस मंदिर का निर्माण मुख्यतया यज्ञ और हवन करने के लिए गया था वर्तमान में अपनी तरह का ये एकलौता मंदिर है। मंदिर में जाने के लिए लोगों को सीढ़ियों के माध्यम से मंदिर जाना पड़ता है। मंदिर की छत 36 खंबो पर टिकी हुई है और इसके सबसे ऊपर वाले भाग पर एक गुंबद है। राणा फतेह ने अपने शासनकाल के दौरान इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
पार्श्वनाथ जैन मंदिर कुम्भलगढ़ पार्श्वनाथ एक जैन तीर्थंकर थे और उनकी पूजा करने के लिए, नर सिंह पोखड़ ने एक मंदिर बनवाया था। पार्श्वनाथ की प्रतिमा यहां स्थापित की गई है, जिसकी ऊंचाई तीन फीट है।
बावन देवी मंदिर कुम्भलगढ़एक ही परिसर में 52 मंदिर हैं होने के कारण इसे बावन देवी मंदिर नाम दिया गया है। मंदिर में प्रवेश के लिए केवल एक ही द्वार है जिसके माध्यम से भक्त प्रवेश कर सकते हैं। 52 मूर्तियों में से दो बड़ी हैं और बाकी छोटी हैं और उन्हें दीवार के चारों ओर रखा गया है। एक जैन तीर्थंकर की एक मूर्ति भी गेट के ललाटबिंब पर स्थिति है।
गोलारे जैन मंदिर कुम्भलगढ़ गोलारो समूह का मंदिर बावन देवी मंदिर के पास स्थित है, जिसकी दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं।
मामदेव मंदिर कुम्भलगढ़ मामदेओ मंदिर को कुंभ श्याम मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। यह वही जगह है जहां राणा कुंभा की हत्या उनके बेटे ने की थी जब वह घुटने टेक कर प्रार्थना कर रहे थे। मंदिर में चारों तरफ स्तंभो से बना हुआ मण्डप है और एक सपाट छत का गर्भगृह है। इसके साथ ही दीवारों में देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं। यहां पर एक शिलालेख भी जिसमें है जिसमें राणा कुंभा ने कुंभलगढ़ के इतिहास का विवरण दिया है।
पितल शाह जैन मंदिर कुम्भलगढ़ पितलिया देव मंदिर, पितलिया जैन सेठ द्वारा निर्मित एक जैन मंदिर है। यहाँ पर भी स्तम्भों पर आधारित मण्डप और एक गर्भगृह है और लोग चारों दिशाओं से यहाँ प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर में देवी-देवताओं, अप्सराओं और नर्तकियों की प्रतिमाएं भी बनाई गई हैं।
कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान राज्य का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल और अभयारण्य है, जो राजसमंद जिले में 578 वर्ग किमी के कुल सतह क्षेत्र को कवर करता है। यह वन्यजीव अभयारण्य अरावली पर्वतमाला के पार उदयपुर, राजसमंद और पाली के कुछ हिस्सों को घेरता है। इस अभयारण्य में कुंभलगढ़ किला भी शामिल है और इसी किले के नाम पर इस क्षेत्र का नाम कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य पड़ा है।
कुम्भलगढ़ का यह पहाड़ी और घना जंगल राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र से बिलकुल अलग है, इस पार्क का हरा भरा हिस्सा राजस्थान दो हिस्सों मेवाड़ और मारवाड़ के बीच एक विभाजन रेखा का काम करता है। आपको बता दें कि आज जिस जगह पर यह अभयारण्य स्थित है वो जगह कभी शाही शिकार का मैदान था और 1971 में इसे एक अभयारण्य के रूप में बदल दिया गया था। यहां बहने वाली बनास नदी अभयारण्य की शोभा बढ़ाती है और इसके लिए पानी का एक प्राथमिक स्त्रोत भी है। कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य एक बहुत ही विशाल वन क्षेत्र है यहाँ अनेक वन्यजीव जंतु पाए जाते है और यहां की घनी वनस्पतियों से भरपूर जंगल देखने के लिए पूरे साल पर्यटक आते रहते है।