विश्व के सबसे रोचक इतिहासों में से एक हैं भारत का इतिहास जिसमें कई ऐसी इमारतें विकसित हुई जो दुनियाभर में आज भारत की पहचान बनी हुई है। इन्हीं में से एक हैं 'गेटवे ऑफ इंडिया' जिसे मुंबई का ताजमहल भी कहा जाता हैं। गेटवे ऑफ इंडिया भारत में 20 वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया एक ऐतिहासिक स्मारक है। कोई भी मौसम हो गेटवे ऑफ इंडिया पर्यटकों के लिए पसंदीदा हैंगआउट स्पॉट में से एक है। भारतीय इतिहास में मुगल वास्तुकला के बाद यूरोपीय वास्तुकला सबसे अधिक देखी जा सकती है जिसका सबसे अच्छा उदाहरण गेटवे ऑफ इंडिया है। आज इस कड़ी में हम आपको 'गेटवे ऑफ इंडिया' से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे।
गेटवे ऑफ इंडिया का इतिहास गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण 1911 में तब शुरू किया गया जब इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम और उनकी पत्नी रानी मेर्री भारत भ्रमण पर आए थे। मुंबई बंदरगाह पर स्मृतिपत्र के रूप में इसका निर्माण वास्तुकार जॉर्ज विटेट ने किया। हालांकि जॉर्ज पंचम और उनकी पत्नी रानी मेर्री ने गेटवे ऑफ़ इंडिया की संरचना का मॉडल ही देख सके क्यूंकि इसका निर्माण 1915 तक शुरू नहीं हुआ था, यह 1924 में बनकर तैयार हुआ।
गेटवे ऑफ इंडिया का आर्किटेक्चरयह गेटवे पीले बेसाल्ट और कंक्रीट के साथ बनाया गया था। गेटवे ऑफ इंडिया का संरचनात्मक डिजाइन 26 मीटर की ऊंचाई के साथ एक बड़े मेहराब के रूप में बनाया गया है। गेटवे ऑफ इंडिया की स्थापत्य शैली भारत-सरसेनिक शैली में डिज़ाइन की गई है। ग्रैंडियोज़ भवन की संरचना में शामिल मुस्लिम वास्तुशिल्प शैलियों के भी निशान पाए जा सकते है। स्मारक के केंद्रीय गुंबद का व्यास लगभग 48 फीट है, जिसमें 83 फीट की कुल ऊंचाई है। गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण कार्य गैमन इंडिया लिमिटेड ने किया गया था। क्योकि उस समय में वह सिविल इंजीनियरिंग के सभी क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त भारत की एकमात्र निर्माण कंपनी थी।
गेटवे ऑफ इंडिया के भव्य मेहराब की खासियतगेटवे के भव्य मेहराब की ऊंचाई 85 फीट है जबकि केंद्रीय गुंबद की ऊंचाई 83 फीट और व्यास 48 फीट है। गेटवे के मेहराब के दोनों ओर बड़े-बड़े हॉल हैं जिनमें एक बार में 600 लोग आसानी से बैठ सकते हैं। मेहराब के प्रत्येक तरफ 600 लोगों की क्षमता वाले बड़े हॉल बने हैं। मुख्य रूप से इंडो-सरैसेनिक वास्तुकला शैली में निर्मित इस स्मारक का मेहराब मुस्लिम शैली का है। लेकिन सजावट हिंदू शैली की है। रात के समय यह स्मारक और भी शानदार हो जाता है जब इसे रोशन किया जाता है। यह अरब सागर और ताज होटल के शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है जो पास में ही स्थित हैं। वर्तमान में, स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के कंट्रोल में है।
गेटवे ऑफ इंडिया के रोचक तथ्य - भारत को आजादी मिलने के बाद अंतिम ब्रिटिश सेना गेटवे ऑफ इंडिया के द्वार से होकर ही वापस गई थी। यह स्मारक अरब सागर से होकर आने वाली जहाजों के लिए भारत का द्वार कहलाता है।
- गेटवे ऑफ इंडिया के निर्माण में कुल 21 लाख रूपये का खर्च आया था और संपूर्ण खर्च भारत सरकार द्वारा उठाया गया था।
- गेटवे ऑफ इंडिया के चार बुर्ज हैं जिसे जाली से बनाया गया था।
- गेटवे ऑफ इंडिया मुंबई शहर की भव्यता को परिभाषित करता है जो ऐतिहासिक और आधुनिक सांस्कृतिक वातावरण दोनों की परिणति है।
- गेटवे ऑफ इंडिया के सामने मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा लगी है जो मराठाओं के गर्व और साहस के प्रतीक को प्रदर्शित करती है।
- माना जाता है कि गेटवे ऑफ इंडिया की ऊंचाई आठ मंजिल के बराबर है।
गेटवे ऑफ इंडिया के आसपास घूमने की जगह
हाथी गुफा : गेटवे ऑफ इंडिया के बेहद नजदीक हाथी गुफा स्थित है जहां मोटर बोट से जाया जाता है। यदि आप गेटवे ऑफ इंडिया देखने जा रहे हैं तो हाथी गुफा भी जरूर देखना चाहिए। इसके अलावा ताज महल होटल, जो भारत का सबसे प्रतिष्ठित और शानदार होटल है और गेटवे ऑफ इंडिया के करीब स्थित है।
कोलाबा कॉजवे मार्केट : यह बाजार मुंबई में सड़क खरीदारी का आनंद लेने के लिए सबसे अच्छा है। आप यहां से बहुत कम दरों पर कपड़े खरीद सकते हैं। ब्रिटिश समय से कई फैशनेबल बुटीक और इमारतें हैं जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।
वाल्केश्वर मंदिर : यह बाण गंगा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध वालकेश्वर मंदिर दक्षिण मुंबई में मालाबार हिल के पास स्थित है। यह शहर का सबसे ऊंचा स्थान भी है। मंदिर के नजदीक एक छोटा तालाब है। उसका नाम बाणगंगाटैंक है। यह मंदिर की कथा रामायण से जुडी हुई है और बाण गंगा नाम पौराणिक कथा से जुड़ी एक कहानी से लिया गया है। मंदिर में अमावस्या और पूर्णिमा के दिन बहुत भीड़ रहती है।
नेहरू विज्ञान केंद्र : आप यहां कला कार्यक्रमों, विज्ञान प्रदर्शनियों और कुछ अंतर्राष्ट्रीय स्तर की घटनाओं को देख सकते हैं। अगर आपके अंदर विज्ञान की भावना है तो यह जगह आपको जरूर पसंद आएगी।
छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय : 1900 में स्थापित हुआ यह संग्रहालय मुंबई में एक प्रसिद्ध संग्रहालय है। संग्रहालय की स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य एडवर्ड VIII और प्रिंस ऑफ वेल्स की भारत यात्रा के लिए उनका स्वागत करना था। यह स्थल गेटवे ऑफ इंडिया के निकट स्थित है। पहले संग्रहालय पश्चिमी भारत के प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय के नाम से जाना जाता था, लेकिन 1998 में छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय का नाम दिया गया है।
गेटवे ऑफ इंडिया घूमने जाने का सबसे अच्छा समयपर्यटक दिन के किसी भी समय स्मारक देखने के लिए जा सकते हैं। गेटवे ऑफ इंडिया पर जाने का सबसे अच्छा समय नवंबर से मार्च की अवधि के दौरान होता है। क्योंकि मानसून के बाद का मौसम बहुत सुखद और सुहावना होता है। और उस समय बारिश की संभावना बहुत कम होती है। गेटवे ऑफ इंडिया पूरे हफ्ते खुला रहता है। और उसके साथ साथ यह भी बतादे की यहाँ कोई टिकट या शुल्क नहीं लगता है। गेटवे ऑफ इंडिया सुबह 7 बजे खुलता एव शाम को 5:30 बजे बंद होता है। यहा लोग आकर्षक फोटोग्राफी और घूमने के लिए आया करते है। क्योकि यह स्थल अपने इतिहास के कारण प्रसिद्ध है।