धर्मशाला का दर्शनीय स्थल है भागसूनाग, शिव को समर्पित है एक ऐतिहासिक मंदिर

हिमाचल प्रदेश की गोद में ऐसी कई अद्भुत, खूबसूरत और अनसुनी जगहें मौजूद हैं जहां भारतीय सैलानी घूमने के बाद जन्नत की तरह अनुभव करते हैं। ऐसा ही एक धार्मिक स्थान हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में है, जिसे भागसूनाग मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के बारे में काफी कम लोग जानते हैं। इस मंदिर की खूबसूरती का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित भागसूनाग मंदिर काफी लोकप्रिय है। इस मंदिर के नाम से लेकर इसका इतिहास भी काफी खास है। प्राचीन भागसूनाग मंदिर देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के मनोहारी पर्यटक स्थल धर्मशाला के ऊपरी हिस्से मैक्लॉडगंज से भी करीब दो किलोमीटर ऊपर स्थित है।

भागसूनाग मंदिर धर्मशाला में एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। हिंदू भगवान शिव को समर्पित है, और मंदिर मध्यकाल की कला और संस्कृति को दर्शाता है। भागसूनाग मंदिर, एक प्रमुख धार्मिक केंद्र, समुद्र तल से 1770 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। हिंदू भगवान शिव को समर्पित, मंदिर मध्यकाल की कला और संस्कृति को दर्शाता है। यह प्राचीन मंदिर हिंदू और गोरखा समुदायों द्वारा पवित्र माना जाता है।

मंदिर के परिसर के भीतर सुंदर तालाब हैं। यात्री तालाब में कई बाघ के सिर से पानी के झरने देख सकते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इन तालाबों में पानी भरने की क्षमता है। इसके अलावा, मंदिर में स्थापित मूर्तियों को माना जाता है कि उनके पास अविश्वसनीय शक्तियां हैं।

परिसर में एक दो मंजिला विश्राम गृह है जहां मंदिर में आने वाले तीर्थयात्री ठहर सकते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण राजा भागसू ने करवाया था। लोककथाओं के अनुसार, राजा भागसू और नागराजा, जिसे नाग देवता के रूप में भी जाना जाता है, ने एक लड़ाई लड़ी, क्योंकि राजा ने नाग डल झील से पानी चुराया था। बाद में, राजा भागसू ने नाग देवता से इस मंदिर का निर्माण करवाया।

भागसूनाग मंदिर के साथ ही आपको यहां भागसूनाग वाटरफॉल भी देखने को मिलता है। यहां साल भर सैलानी आते रहते हैं।

मंदिर का नाम भागसू क्यों रखा गया

कहा जाता है कि दैत्य का नाम भागसू था और नाग देवता से दैत्य ने वरदान लिया था कि उसका नाम श्रद्धालु पहले लें, इसी वजह से दैत्य भागसू का नाम पहले आता है और नाग का बाद में लिया जाता है। ऐसे में इस स्थान का नाम भागसूनाग रखा गया।

द्वापर युग से जुड़ा है किस्सा

कहा जाता है कि द्वापर युग के मध्यकाल में दैत्यों के राजा भागसू की राजधानी अजमेर देश में थी। उनके राज्य में पानी की समस्या चल रही थी। ऐसे में यहां रहने वाले लोगों का कहना था कि भागसू या तो आप पानी का प्रबंध करें या फिर हम इस देश को छोडक़र चले जाएंगे। दैत्य राज भागसू ने प्रजा को कहा कि वह खुद पानी की तलाश में जाएंगे फिर क्या था अगले दिन ही दैत्य राज भागसू पानी की तलाश में निकल गए।

नाग डल कब मिला

भागसू 2 दिनों में नाग डल के पास पहुंच गए। नाग डल पहाड़ की चोटी पर 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसे में भागसू ने अपनी मायावी शक्ति के चलते नाग डल का सारा पानी कमंडल में भर लिया व स्वयं विश्राम करने लगा। जब नाग देवता ने देखा कि उनका डल सूखा है वह काफी ज्यादा गुस्सा हुए। ऐसे में नाग देवता और भागसू के बीच युद्ध हुआ और नाग देवता ने भागसू को पराजित कर दिया। ऐसे में युद्ध के बाद पानी जैसे ही डल में गिरा डल फिर से भर गया। वहीं भागसू ने कहा था कि वह चाहते है कि उनका नाम भी इस जगह को दिया जाएं जिसके बाद नाग ने कहा था कि उनके नाम के आगे आपका नाम अवश्य आएगा।

भागसूनाग मंदिर की स्थापना कब हुई

भागसूनाग मंदिर की स्थापना 5080 वर्ष पहले हुई थी। इस पवित्र स्थान में स्नान करने के लिए दूर-दूर से यहां भक्त पहुंचते है। साथ ही यहां साधु संतों के लिए हर रोज लंगर लगाया जाता है।

कैसे जाएं भागसूनाग मंदिर

पर्यटक रेल मार्ग से कांगड़ा तक पहुंच कर वहां से बस ले सकते हैं। बस धर्मशाला तक पहुंचाएगी। धर्मशाला से मैक्लोडगंज के लिए मुद्रिका बस हैं जो मैक्लोडगंज तक पहुंचाएगी। मैक्लोडगंज से आटो भागसूनाग के लिए मिल जाएगा।