प्राकृतिक सौंदर्य से भरा है मनाली, गर्मी की छुट्टियों में बना ले घूमने का प्रोग्राम

मनाली भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। मनाली कुल्लु घाटी के उत्तर में स्थित हिमाचल प्रदेश का लोकप्रिय पहाड़ी स्थल है। समुद्र तल से 2050 मीटर की ऊँचाई पर स्थित मनाली व्यास नदी के किनारे बसा है। गर्मियों से निजात पाने के लिए इस हिल स्टेशन पर हजारों की तादाद में सैलानी आते हैं। सर्दियों में यहां का तापमान शून्य डिग्री से नीचे पहुंच जाता है। आप यहां के खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों के अलावा मनाली में हाइकिंग, पैराग्लाइडिंग, राफ्टिंग, ट्रैकिंग, कायकिंग जैसे खेलों का भी आनंद उठा सकते है। यहां के जंगली फूलों और सेब के बगीचों से छनकर आती सुंगंधित हवाएं दिलो दिमाग को ताजगी से भर देती हैं।

पौराणिक ग्रंथों में मनाली को मनु का घर कहा गया है। कहा जाता है कि जब सारा संसार प्रलय में डूब गया था तो एकमात्र मनु की जीवित बचे थे। मनाली में आकर ही उन्होनें मनुष्य की पुर्नरचना की। इसलिए मनाली को हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल भी माना जाता है।

हिडिम्बा मंदिर

हिमाचल प्रदेश के मनाली में मौजूद यह मंदिर भारतीय महाकाव्य के महाभारत के भीम की पत्नी हिडिम्बा देवी को समर्पित है। यह सिर्फ मनाली का ही नहीं बल्कि समूचे हिमाचल प्रदेश का एक लोकप्रिय मंदिर है। जो भी सैलानी मनाली घूमने के लिए जाता है वो इस मंदिर के दर्शन के लिए जरूर पहुंचता है। यह प्राचीन मंदिर हिमालय पर्वतों के पास डुंगरी शहर के पास देवदार पेड़ों से घिरा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार भीम और पांडव मनाली से जब जा रहे हैं थे तब उन्होंने हिडिम्बा को राज्य की देखभाल करने का जिम्मा दिया था। एक अन्य कथा है कि जब उनका बेटा घटोत्कच बड़ा हुआ तो उसे राज्य का भार देकर वो जंगल में ध्यान करने चली गई। कई वर्षों बाद उनकी प्रार्थना सफल हुई और देवी को गौरव प्राप्त हुआ। इस स्थान पर महाराज बहादुर सिंह ने यह मंदिर 1553 ई. में बनवाया था। समुद्र तल से 1533 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर धूंगरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मई के महीने में यहां एक उत्सव मनाया जाता है। लकड़ी से निर्मित यह मंदिर पैगोड़ा शैली में बना है।

हिडिम्बा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पैगोडा शैली में किया गया है। पैगोडा शैली में निर्मित होने की वजह से यह सैलानियों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इस मंदिर का निर्माण पत्थर से नहीं बल्कि लकड़ी से किया गया है। इस मंदिर में चार छत है। नीचे तीन छत देवदार की लकड़ी से किया गया है और सबसे ऊपर धातु से निर्माण किया गया है। इस मंदिर का दरवाजा भी लकड़ी का है। दरवाजे पर जानवर और फूल-पत्ती की तस्वीर है, जिसे हिडिम्बा का ही रूप माना जाता है। यहां हर साल विशाल महोत्सव का भी आयोजन होता है। कहा जाता है कि यह उत्सव राजा बहादुर सिंह की याद में मनाया जाता है।

वशिष्ठ मंदिर

मनाली से 3 किलोमीटर दूर वशिष्ठ स्थित है। प्राचीन पत्थरों से बने मंदिरों का यह जोड़ा एक दूसरे के विपरीत दिशा में है। एक मंदिर भगवान राम को और दूसरा संत वशिष्ठ को समर्पित है। यह मंदिर वशिष्ठ नाम के एक गाँव में स्थित है, जो अपने शानदार गर्म पानी के झरनों के लिए प्रसिद्ध है और वशिष्ठ मंदिर गंधक के गर्म पानी के झरनों के लिए प्रसिद्ध है, जिसके पानी को महान चिकित्सा शक्तियाँ माना जाता है।

इस मंदिर में जाने पर गर्म पानी के झरनों में भी स्नान किया जाता है जो त्वचा रोग को ठीक कर सकता है। वशिष्ठ मंदिर ऋषि वशिष्ठ को समर्पित है, जो भगवान राम के गुरु थे। यह मंदिर मनाली के वशिष्ठ गांव में सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। वशिष्ठ मंदिर 4000 साल से भी ज्यादा पुराना है। मंदिर के अंदर धोती पहने ऋषि की एक काले पत्थर की मूर्ति है। वशिष्ठ मंदिर को लकड़ी पर उत्तम और सुंदर नक्काशी से सजाया गया है, इसके अलावा मंदिर के आंतरिक भाग को भी प्राचीन चित्रों से सजाया गया है। वशिष्ठ मंदिर के अलावा यहां एक और मंदिर है जिसे राम मंदिर के नाम से जाना जाता है। राम मंदिर के अंदर राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां विराजमान हैं। साथ ही, दशहरा यहां सात दिनों तक मनाया जाता है।

इस जगह की अन्य विशेषताएं गर्म पानी का प्राकृतिक स्रोत हैं। इनसे निकलने वाली भाप से गंधक की गंध आती है। गर्म पानी का झरना इस जगह के प्रसिद्ध आकर्षणों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस गर्म झरने का अपना औषधीय महत्व है। ये झरने कई चर्म रोगों को ठीक करने के लिए जाने जाते हैं। बहुत से लोग अपनी त्वचा के संक्रमण और बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए वशिष्ठ जलप्रपात में स्नान करने जाते हैं। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अलग-अलग बाथरूम भी हैं।

वशिष्ठ मंदिर के इस स्थान पर प्राचीन तीर्थस्थल और बावड़ी के कुछ अवशेष भी ध्यान आकर्षित करते हैं, जिसमें मध्यकालीन मंदिर वास्तुकला की कुछ विशेषताओं को दर्शाया गया है। यहां स्थित मंदिर का पुनरुद्धार भी देखने योग्य है। यह रचना कठकुनी शैली की सूचक है। इस देसी शैली में बिना घोल के सूखी चिनाई और देवदार के सांचे का इस्तेमाल किया गया है।

मणिकरण

समुद्र तल से 1700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित मणिकरण गर्म पानी का झरना है। कहा जाता है शिव की पत्नी पार्वती के कर्णफूल यहां खो गए थे। उसके बाद से इस झरने का जल गर्म हो गया। हजारों लोग यहां के जल में पवित्र डुबकी लगाने दूर-दूर से आते हैं। यहां का पानी इतना गर्म है कि इसमें चावल, दाल और सब्जियों को उबाला जा सकता है।

मणिकरण भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में कुल्लू जिले के भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के मध्य बसा है, जो हिन्दुओं और सिक्खों का एक तीर्थस्थल है। यह समुद्र तल से 1760 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और कुल्लू से इसकी दूरी लगभग 45 किमी है। भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है। भुंतर-मणिकर्ण सडक एकल मार्गीय (सिंगल रूट) है, पर है हरा-भरा व बहुत सुंदर। सर्पीले रास्ते में तिब्बती बस्तियां हैं। इसी रास्ते पर शॉट नाम का गांव भी है, जहां कई बरस पहले बादल फटा था और पानी ने गांव को नाले में बदल दिया था।

मणिकरण अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहाँ बार-बार आते हैं, विशेष रूप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। प्रति वर्ष अनेक युवा स्कूटरों व मोटरसाइकिलों पर ही मणिकर्ण की यात्रा का रोमांचक अनुभव लेते हैं।

बौद्ध मठ

मनाली के बौद्ध मठ बहुत लोकप्रिय हैं। कुल्लू घाटी के सर्वाधिक बौद्ध शरणार्थी यहां बसे हुए हैं। यहां का गोधन थेकचोकलिंग मठ काफी प्रसिद्ध है। 1969 में इस मठ को तिब्बती शरणार्थियों ने बनवाया था।

रोहतांग दर्रा

मनाली से 50 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 4111 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह दर्रा साहसिक पर्यटकों को बहुत रास आता है। दर्रे के पश्चिम में दसोहर नामक एक खूबसूरत झील है। गर्मियों के दिनों में भी यह स्थान काफी ठंडा रहता है। जून से नवंबर के बीच लाहौल घाटी से यहां पहुंचा जा सकता है। यहां से कुछ दूरी पर सोनपानी ग्लेशियर है।

व्यास कुंड

यह कुंड पवित्र व्यास नदी का जल स्रोत है। व्यास नदी में झरने के समान यहां से पानी बहता है। यहां का पानी एकदम साफ और इतना ठंडा होता है कि उंगलियों को सुन्न कर देता है। इसके चारों ओर पत्थर ही पत्थर हैं और वनस्पतियां बहुत कम हैं।

ओल्ड मनाली

मनाली से 3 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में ओल्ड मनाली है जो बगीचों और प्राचीन गेस्ट हाउसों के लिए काफी प्रसिद्ध है। मनालीगढ़ नामक क्षतिग्रस्त किला भी यहां देखा जा सकता है।

सोलंग नाला

मनाली से 13 किमी की दूरी पर स्थित सोलंग नुल्लाह 300 मीटर की स्की लिफ्ट के लिए लोकप्रिय है। इस खूबसूरत स्थान से ग्लेशियर और बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियों के मनोहर नजारे देखे जा सकते हैं। नजदीक ही मनाली की प्रारंभिक राजधानी जगतसुख भी देखने योग्य जगह है।

मनु मंदिर

ओल्ड मनाली में स्थित मनु मंदिर महर्षि मनु को समर्पित है। यहां आकर उन्होंने ध्यान लगाया था। मंदिर तक पहुंचने का मार्ग दुरूह और रपटीला है।

अर्जुन गुफा

कहा जाता है महाभारत के अर्जुन ने यहां तपस्या की थी। इसी स्थान पर इन्द्रदेव ने उन्हें पशुपति अस्त्र प्रदान किया था।

मनाली पहुँचने के मार्ग

वायुमार्ग


मनाली से 50 किलोमीटर की दूरी पर भुंतर नजदीकी एयरपोर्ट है। मनाली पहुंचने के लिए यहां से बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं।

रेलमार्ग

जोगिन्दर नगर नैरो गैज रेलवे स्टेशन मनाली का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो मनाली से 135 किलोमीटर की दूरी पर है। मनाली से 310 किलोमीटर दूर चंडीगढ़ नजदीकी ब्रॉड गेज रेलवे स्टेशन है।

सडक़ मार्ग

मनाली हिमाचल और आसपास के शहरों से सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से मनाली जाती हैं।